फसली विभिन्नता तथा स्वास्थ्य के लिए फलों की काश्त बढ़ाना ज़रूरी

कृषि में फसली-विभिन्नता लाने के लिए फलों का बहुत महत्व है। मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी फलों का इस्तेमाल बहुत ज़रूरी है। गर्मियों का मौसम है, प्रत्येक फल बहुत महंगा है। फलों की प्रति सदस्य खपत, स्वास्थ्य के पक्ष से आवश्यक मात्रा से बहुत कम है। फल महंगे होने के कारण आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं। सेब तथा बब्बू-गोशा 250 रुपये किलो बिक रहे हैं। आलू बुखारा तथा लीची150 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। अनार तथा खुरमानी 250 रुपये प्रति किलो, माल्टा 130 रुपये प्रति किलो, अंगूर हरा 200 रुपये तथा लम्बा 250 रुपये प्रति किलो, आड़ू 100 रुपये प्रति किलो, पपीता 60 रुपये प्रति किलो, खरबूजा 50 रुपये प्रति किलो, तरबूज़ 40 रुपये प्रति किलो तथा केला 60 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं। अमरूद जिसे प्रत्येक छोटा-बड़ा व्यक्ति खाता है, वह भी 250-300 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। 
आम आजकल मौसमी फल है। सफैदा आम मंडी में 100 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, परन्तु यह कैल्शियम कार्बईड मसाले से पकाया हुआ होता है। कैल्शियम कार्बईड का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और इसके इस्तेमाल पर ‘प्रिवैंशन ऑफ फूड एडलट्रेशन एक्ट’ के तहत पाबंदी लगी हुई है। इसके बावजूद व्यापारी तथा ठेकेदार इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें एस्टेलीन गैस होती है, जो आक्सीज़न की सप्लाई की मात्रा को कम करके नर्वस सिस्टम  पर दुष्प्रभाव डालती है। इस गैस से पकाये गए फल मुंह के छाले, अल्सर तथा पेट में जलन आदि पैदा करते हैं। सफैदा आम दक्षिण से आकर बिक रहा है। व्यापारी तथा विक्रेता यह कहते हैं कि इथिलीन राइपनर का इस्तेमाल किया गया है, कैल्शियम कार्बईड का नहीं।
पंजाब में आम की काश्त के अधीन रकबा बहुत कम है। हालांकि प्रदेश की धरती पर वातावरण आम की काश्त के लिए बहुत अनुकूल है। फिर आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) द्वारा पुरानी आम्रपाली तथा मल्लिका किस्में (जिनके एकड़ में 150 पौधे तक लग जाते हैं और तीसरे वर्ष फल दे देती हैं) के अतिरिक्त हाइब्रिड पूसा सूर्या, पूसा अरुणिमा, पूसा पातंबर, पूसा लालिमा, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ आदि किस्में भी विकसित की गई हैं। अमरूदों के नये बाग लगाने के लिए तो बागबानी विभाग बागबानी मिशन की योजनाओं के अधीन बागबानों को तकनीकी तथा अन्य आवश्यक सहायता दे रहा है। आम के बाग लगाने के लिए भी बागबानों को उत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
बागबानी विभाग के सेवामुक्त डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह (जो फलों के विशेषज्ञ हैं) कहते हैं कि किसानों को बागबानी विशेषज्ञों की सलाह लेकर क्षेत्र की मिट्टी की किस्म के दृष्टिगत मौसम के अनुसार फलों के पौधे लगाने चाहिएं। बागबानी विभाग द्वारा मिट्टी, पानी की जांच करवाना, नये लगने वाले बागों की ले-आउट करने, बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों के हमले को रोकने हेतु उपचार करने संबंधी जानकारी दी जाती है। डा. मान कुछ तकनीकी नुक्तों का नये बाग लगाने के संबंध में ध्यान रखने के लिए कहते हैं ताकि बागबान सफलता प्राप्त कर सकें। नया बाग लगाने से पहले ही बागबानों को ‘हवा रोको’ बाड़ अपने खेतों के चारों ओर लगा लेनी चाहिए। देसी आम, जामुन, बेल, देसी आंवला आदि के पौधे लगाए जा सकते हैं। बाड़ लगाने से बागों को गर्म तथा ठंडी हवाओं से बचाया जा सकेगा तथा आंधी से फल नहीं टूटेंगे।
सदा बहार फलों जैसे अमरूद, किन्नू, माल्टा, लीची आदि के पौधे हमेशा दोपहर के बाद ही लगाने चाहिएं ताकि पौधे रात के समय कम तापमान में सैट हो जाएं। पौधे खेत में लगाने के बाद दीमक के लिए क्लोरोपाइरोफास दवाई 10 मि.ली. प्रति पौधा डाल देनी चाहिए। इस दवाई का इस्तेमाल वर्ष में कम से कम दो बार किया जाए। एक दिसम्बर तथा दूसरा जुलाई-अगस्त में। नये लगाए गए पौधों में यदि कोई पौधा टेढा चलता है तो उसे छड़ी का सहारा देकर सीधा कर देना चाहिए और यदि कहीं बीमारी का हमला हो जाता है तो विशेषज्ञों की सिफारिश के अनुसार स्प्रे कर देना चाहिए। अधिक गर्मी तथा सर्दी से पौधों को पराली से ढंक कर बचा लेना चाहिए।