फिर कभी न आये आपात स्थिति का काला अध्याय

25 जून, 1975 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई आपात स्थिति को आज 48 वर्ष हो गये हैं परन्तु उन काले दिनों की काली यादें आज भी मन मस्तिक पर ताज़ा हैं। 5 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा श्रीमती इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा का चुनाव रद्द होने के बाद, उन्होंने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने की बजाय, देश में आपात स्थिति लागू कर दी। समूचे विपक्ष को जेल में डाल दिया गया, प्रैस पर पूरी तरह से सैंसरशिप लागू कर दी गई तथा पूरे देश को एक खुली जेल बना डाला गया।
उस दौरान लोगों की जुबान पर सरकार ने ताला लगा दिया था। जो भी आपात स्थिति या सरकार के विरूद्ध बोलता था, उसको जेल में डाल दिया जाता था तथा उस पर अन्य अत्याचार भी किये जाते थे। सरकार ने इस मामले में सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं श्री वाजपेयी, श्री आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, स. प्रकाश सिंह बादल आदि के साथ-साथ प्रसिद्ध पत्रकारों जिनमें श्री कुलदीप नैय्यर, श्री राम नाथ गोयनका, लाला जगत नारायण, श्री श्याम खोसला आदि शामिल थे, को भी जेल में डाला तथा उन्हें यातनाएं दी गईं। गांधी परिवार को खुश करने के लिये विभिन्न कांग्रेस शासित राज्यों में लोगों पर घोर अत्याचार किये गये, जबरन नसबंदी की गई, लोगों के घर, मकान तोड़े गये, हजारों लोगों की नौकरियां छीनी गईं और कई लोगों की तो अत्याचारों के कारण मृत्यु भी हो गई। स्वयं मुझे चंडीगढ़ पुलिस ने बिजली की तारों से करंट के झटके लगाये थे और एक बार तो लगने लगा था कि शायद जीवन बच न पाये, परन्तु भगवान की कृपा से मैं ज़िंदा रह पाया।
परन्तु मैं आज इस संबंध में तब के पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ज्ञानी ज़ैल सिंह की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता जिन्होंने पंजाब में अत्याचार उस सीमा तक नहीं होने दिये जिस सीमा तक बाकी राज्यों में हो रहे थे। पंजाब में वातावरण बाकी राज्यों से बेहतर रहा जबकि हरियाणा एवं हिमाचल में विपक्षी नेताओं को भारी यातनाएं दी गईं।
श्रीमती इंदिरा गांधी को आपात स्थिति लगाने की सलाह किस ने दी थी, इस प्रश्न को लेकर उन दिनों दो नाम चर्चा में थे, एक स्वर्गीय सिद्धार्थ शंकर रे तथा दूसरा चौधरी बंसी लाल का। कई वर्ष बाद मैंने जब चौधरी बंसी लाल जी से इस संबंध में पूछा था तो उन्होंने कहा था कि श्रीमती गांधी को यह राय सिद्धार्थ शंकर रे ने दी थी, उन्होंने नहीं। आज ये तीनों महानुभाव दुनिया से जा चुके हैं, इसलिये इस बात की वास्तविकता भी इतिहास का अंग बन गई है। उन दिनों मोबाइल, वट्सअप आदि नहीं होते थे तथा समाचार मिलने का एकमात्र साधन बीबीसी न्यूज़ होता था।
आश्चर्यजनक है कि जब श्रीमती इंदिरा गांधी तानाशाही की ओर बढ़ीं तो अच्छे-अच्छे लोगों ने भी अपनी ज़ुबान बंद रखी। बहुत से बुद्धिजीवियों ने तो इस तानाशाही को ‘अनुशासन पर्व’ कह कर इसका समर्थन भी किया। उस समय के बुद्धिजीवी समाज ने आपात काल के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाई। कुछ लोगों ने तो अपने खून से हस्ताक्षर करके आपात काल का समर्थन किया था। अपने फर्ज की अदायगी में समाज का सामान्य वर्ग तो आगे रहा लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग पिछड़ गया था। अपने एक लेख में श्री लाल कृष्ण अडवानी ने लिखा था कि जैसे द्रोपदी चीर हरण के समय खामोश रहने वाले भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे महारथी भी उस पाप के लिये बराबर के दोषी थे, ऐसे ही आपात स्थिति के समय खामोशी से तमाशा देखते रहने वाले नेता भी इस अपराध में बराबर के समान दोषी थे। 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस कानूनी आधार पर श्रीमती इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था, वह बहुत ही सशक्त था। उस कानून के रहते श्रीमती इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत मिलने की सम्भावना नहीं थी, परन्तु श्रीमती गांधी ने संसद का सत्र बुला कर वह कानून ही बदल दिया, तो सुप्रीम कोर्ट को उस बदले हुये कानून के कारण श्रीमती इंदिरा गांधी की सदस्यता बहाल करनी पड़ी।
वास्तव में 1977 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार जाने के कारण तथा तब के कार्यवाहक राष्ट्रपति वी.डी. जत्ती के कहने पर श्रीमती गांधी ने आपात स्थिति वापिस ले ली थी। आज सारे देश को यह प्रण करने का दिन है कि कोई तानाशाह भविष्य में आपात स्थिति लागू करने की सोच ही न सके। यदि कोई सोचे भी तो सारा देश एक चट्टान की तरह उस के विरुद्ध लामबंद हो जाये।
आज भी वो दिन याद करके मन कांप उठता है परंतु भारत की जनता में इतनी ताकत है, और भारत का लोकतंत्र इतना मजबूत है कि किसी भी बड़े से बड़े संकट से बाहर आ सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि समूचा देश इस काले काल खंड की एक स्वर से निंदा करे। अत्यन्त दु:ख की बात है कि श्रीमती गांधी के राजनीतिक वारिसों ने आज तक उन अत्याचारों के लिये एक बार भी देश से माफी नहीं मांगी।
बोल के लब आज़ाद हैं तेरे 
बोल जुबां अब तक तेरी है।
फिर कभी न लौट पायें वो काले दिन। 
फिर कभी न आये 
आपात स्थिति का काला अध्याय।।
सालिस्टर जरनल ऑफ इंडिया।


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