कांग्रेसी नेताओं को पुन: मिलने लगे विदेशी राजदूत

दुनिया के देशों के राजकीय मेहमानों का भारत आने पर सत्तापक्ष के साथ ही मुख्य विपक्षी पाटी के शीर्ष नेताओं से मिलना आम बात रही है। यह परम्परा आज़ादी के बाद से लेकर कुछ वर्षों पहले तक चली। विदेशी मेहमान मुख्य विपक्षी पार्टी के अलावा कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं से भी मिलते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह परम्परा लगभग खत्म हो गई थी। गिने-चुने विदेशी मेहमान ही सोनिया और राहुल गांधी से मिलते थे। दूसरे देशों के राजदूत तो कांग्रेस नेताओं से बिल्कुल ही नहीं मिलते थे। हां, उनका भाजपा के मुख्यालय आना-जाना ज़रूर बढ़ गया। वे भाजपा को जानने के लिए पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मिलते हैं। कई राजदूतों ने पिछले कुछ दिनों में लखनऊ का भी दौरा किया, जहां वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले। पिछले कुछ दिनों से अचानक राजदूतों का कांग्रेस के प्रति प्रेम बढ़ गया है। 
यह घटनाक्रम राहुल गांधी की लंदन और अमरीका यात्रा के बाद का है। पूरब से लेकर पश्चिमी देशों तक के राजदूत कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिले हैं। जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन और ऑस्ट्रेलिया के बैरी ओ फैरेल ने एक ही दिन खड़गे से मुलाकात की। इसके एक-दो दिन बाद डेनमार्क के राजदूत फे्रडी स्वाने भी मिले। इन सभी राजदूतों को खड़गे ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब भेंट की। ऐसा लग रहा है कि सभ्य और लोकतांत्रिक दुनिया के देश पुरानी परम्परा के मुताबिक सत्तापक्ष के साथ-साथ मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ भी संवाद के दरवाज़े खोल कर रखना चाहते हैं। 
स्वामी का अब सीधा मोदी पर हमला 
लम्बे समय से मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते रहे भाजपा नेता और पूर्व सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अब सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ  मोर्चा खोल दिया है। अभी तक वह मोदी पर सीधा हमला करने से बचते थे और उनके मंत्रियों को निशाना बनाते थे। मोदी की पिछली सरकार में वित्त मंत्री होने के नाते अरुण जेटली उनके निशाने पर रहते थे तो इस सरकार में विदेश मंत्री एस. जयशंकर उनके पसंदीदा शिकार हैं। जयशंकर के सूट-बूट वाले पहनावे की वजह से स्वामी उनको ‘ग्लोरिफाइड वेटर’ कहते रहे हैं। चीन की घुसपैठ के मसले पर भी स्वामी काफी मुखर रहे हैं। इस सिलसिले में वह मोदी के उस बयान का हमेशा इस्तेमाल करते हैं, जो उन्होंने जून 2020 में दिया था। गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई सैन्य झड़प के बाद सर्वदलीय बैठक में मोदी ने कहा था कि भारतीय सीमा में न तो कोई घुसा है और न कोई घुसपैठ हुई है। मोदी के इस बयान को लेकर स्वामी हमेशा तंज़ कसते रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने मोदी पर सीधा हमला किया है। स्वामी ने ट्वीट करके कहा है कि मोदी ने भारतीय मीडिया को पूरी तरह से नपुंसक बना दिया है। उन्होंने ट्वीट में लिखा है, ‘मोदी ने भारत के लोकतंत्र को रूस और चीन के स्तर पर ला दिया है, इसलिए अब मैं पूरी तरह से उनके खिलाफ  हूं।’ यह पहली बार है, जब स्वामी ने लिखा है कि वह मोदी के पूरी तरह खिलाफ  हैं। 
भाजपा की उम्मीदें
महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को तोड़ने के बाद बिहार की तरह झारखंड में भी भाजपा नेताओं की उम्मीदें बढ़ी हैं। भाजपा नेताओं के बीच चर्चा है कि महाराष्ट्र में दो-दो दिग्गज नेताओं की पार्टियां टूट गईं तो क्या झारखंड में एक भी नहीं टूट सकती है। यह सवाल अपनी जगह बहुत जायज़ है। ऐसा क्या है कि एक के बाद एक राज्यों में कांग्रेस या कोई क्षेत्रीय पार्टी टूट रही है लेकिन झारखंड में तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ नहीं हो पाया है। क्या भाजपा आलाकमान वहां यथास्थिति बनाए रखना चाहता है, इसलिए कुछ नहीं हो रहा है या कोशिश करने के बावजूद कामयाबी नहीं मिल पा रही है। किसी के पास इसका जवाब नहीं है, लेकिन अब भाजपा के नेता इस उम्मीद में हैं कि झारखंड में भी ऑपरेशन लोटस होगा। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर विपक्षी पार्टियों का गठबंधन बनने से पहले उसे कमज़ोर करना है तो झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन को कमज़ोर करना होगा। गौरतलब है कि पिछले तीन साल के दौरान कई बार कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कोशिशें हो चुकी हैं। एक साल पहले कांग्रेस के तीन विधायक नकदी के साथ पश्चिम बंगाल में पकड़े गए और कई दिन जेल में भी रहे थे। 
 ‘मेहमानों’ को महत्वपूर्ण पद 
एक समय था जब भाजपा में महत्वपूर्ण पद पाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा होना ज़रूरी होता था, लेकिन अब भाजपा पूरी तरह बदल गई है, इसलिए किसी भी पार्टी से आए नेता को भाजपा में बड़ी ज़िम्मेदारियां मिल रही हैं। इसके लिए शर्त इतनी है कि वह नेता चुनावी जीत दिलाने में या जोड़.तोड़ में सक्षम हो। हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर बसवराज बोम्मई और मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा आदि राज्यों मुख्यमंत्री तक कई उदाहरण हैं। 
हाल ही में भाजपा ने अपनी राज्य इकाइयों में बदलाव का सिलसिला शुरू करते हुए चार राज्यों में जो नए अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें से दो दूसरी पार्टियों से आए हुए हैं। पंजाब में सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जाखड़ पिछले ही साल भाजपा में शामिल हुए हैं। उससे पहले वह कांग्रेस में थे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे थे। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भाजपा ने डी. पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वह तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक एन.टी. रामाराव की बेटी हैं। पहले वह तेलुगू देशम से कांग्रेस में गईं और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहीं। बाद में वह भाजपा में शामिल हुईं। भाजपा ने पहले उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया और अब प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। इससे पहले भाजपा ने दो और प्रदेश अध्यक्ष बनाए थे, जिनमें से एक बिहार के अध्यक्ष सम्राट चौधरी हैं, जो राष्ट्रीय जनता दल और अन्य पार्टियों से होते हुए भाजपा में शामिल हुए हैं।
तीन मुख्य विपक्षी पार्टियां
महाराष्ट्र में हाल के वर्षों में कई नए राजनीतिक प्रयोग हुए हैं। चाहे सुबह छह बजे मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने का मामला हो या शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस की सरकार का बनना हो या शिव सेना का टूटना और एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना हो या अब राकांपा का टूटना और अजित पवार का उप-मुख्यमंत्री बनना हो, सारे नए प्रयोग हुए हैं। इसी में एक बात और हुई है, जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एक विधानसभा में तीन अलग-अलग पार्टियां मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हैं। ऐसा संभवत: किसी अन्य राज्य में नहीं हुआ कि एक विधानसभा में राज्य की तीन पार्टियां मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हों। भाजपा और राकांपा के बाद अब कांग्रेस की बारी है। पहले जब महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। उसके बाद शिव सेना टूट गई और भाजपा की मदद से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने तो राकांपा सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नाते मुख्य विपक्षी पार्टी बनी और अजित पवार नेता प्रतिपक्ष बने। अब अजित पवार उप-मुख्यमंत्री हो गए हैं तो राकांपा ने जितेंद्र अव्हाड को नेता प्रतिपक्ष बनाया है, लेकिन जैसे ही साफ  होगा कि अजित पवार के साथ 30 या उससे ज्यादा विधायक गए हैं तो कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बन जाएगी। राकांपा के 53 विधायक हैं, जिनमें से ज्यादा विधायकों के अजित पवार के साथ जाने की खबर है। ऐसा होता है तो 44 विधायकों वाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी होगी।