केन्द्र की कड़ी परीक्षा

देश के उत्तर-पूर्वी प्रदेश मणिपुर में पिछले अढ़ाई मास से जिस तरह के हालात बने हुए हैं, वह ़खतरनाक सीमा तक पहुंच गए हैं। हालात समूचे रूप में और भी भड़क उठे जब वहां भीड़ द्वारा 2 महिलाओं को निर्वस्त्र करके सरेआम घुमाने का वीडियो सामने आया। चीन तथा म्यांमार की सीमा के साथ लगते मिज़ोरम, नागालैंड, असम तथा मणिपुर में अक्सर अशांति बनी रही है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण तथा अन्य देशों की सीमाओं के साथ लगते होने के कारण यहां देश विरोधी सोच रखने वालों के अच्छे ठिकाने बने रहे हैं, उन्हें अक्सर हर तरह की बड़ी सहायता बाहर से ही मिलती रही है। इन प्रदेशों में दर्जनों ही जातियों के लोग रहते हैं, जिनका आपस में किसी न किसी मामले पर तनाव बना रहता है। मणिपुर में भी ऐसे तनाव को हम जाति तथा सम्प्रदायों पर आधारित मानते हैं, जबकि ज्यादातर इसे धर्म आधारित तनाव भी कहा जाता रहा है। 
मणिपुर की जनसंख्या 30 लाख के लगभग है। यहां मैतेई जाति के लोगों की बहुसंख्या है जबकि यहां के पहाड़ों में रहने वाले अन्य बड़े कबीले कूकी तथा नागा हैं, इनमें मिज़ो जाति के लोग भी शामिल हैं। मैतेई जाति संख्या के पक्ष से अधिक होने के कारण तथा इनमें से ज्यादातर इम्फाल घाटी में बसे होने के कारण अन्य कबीलों के लोग अधिकतर पहाड़ों में रहते हैं। उन्हें आरक्षण के लिए अनुसूचित जन-जातियों का दर्जा प्राप्त है। पिछले समय में मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा मैतेई जाति को भी अनुसूचित जन-जाति में शामिल करने के फैसले ने यहां बड़ा आक्रोश पैदा किया है। इस फैसले के विरुद्ध ऑल ट्राइबल स्टूडैंट यूनियन मणिपुर ने बड़ी प्रतिक्रिया दिखाते हुए इसी वर्ष 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला था, जिससे व्यापक स्तर पर आक्रोश पैदा हो गया। इन जातियों की आपसी लड़ाई इतनी हिंसक हो गई कि अब तक इसमें 160 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है, हज़ारों ही घायल हो गए हैं तथा 50 हज़ार से अधिक लोग शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए विवश हो गए हैं। 
मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतत्व में भाजपा का शासन है। एन. बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से संबंधित हैं, जिन्हें इस संकट को न सम्भाल पाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले दिनों उनके द्वारा इस मामले को लेकर त्याग-पत्र देने के समाचार भी मिले थे परन्तु उनके बड़ी संख्या में समर्थकों ने इकट्ठे होकर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। ताज़ा हिंसा की घटनाएं 3 मई को शुरू हुई थीं। उसके बाद प्रदेश में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं, परन्तु अब 4 मई का एक ऐसा वीडियो सामने आया है, जिसमें एक जाति के कुछ लोगों द्वारा दूसरी जाति की दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सरेआम परेड करवाई गई है। इसके अलावा दुष्कर्म के भी आरोप लगे हैं। ऐसा वीडियो सामने आने से जहां एक बार फिर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में भारी तनाव पैदा हुआ है, वहीं प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र के लिए भी बड़ी नामोशीजनक स्थिति बन गई है।
मणिपुर हिंसा के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी यह आरोप लगता रहा है कि वह प्रभावशाली ढंग से इस हिंसा को रोकने के लिए प्रदेश सरकार को कड़े निर्देश नहीं दे सके तथा न ही केन्द्र सरकार द्वारा इतने बड़े स्तर पर फैली हिंसा को समय रहते रोकने के लिए कोई व्यापक कदम ही उठा सके हैं, जिस कारण आज प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी देश भर में उठे भारी रोष के कारण बचाव के पैंतरे पर आ गई प्रतीत होती है, परन्तु इससे यह भी सम्भावना बनी है कि अब स्थिति को सुधारने के लिए केन्द्र सरकार कोई बड़े तथा कड़े कदम उठाएगी। नि:संदेह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह मामला एक बड़ी परीक्षा बन कर सामने आ खड़ा हुआ है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द