भारतीय सेना के पराक्रम की शौर्य-गाथा को नमन करने की बेला

26 जुलाई का दिन प्रति वर्ष कारगिल विजय दिवस के रूप में पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है। सन् 1999 में भारतीय तथा पाकिस्तानी सेनाओं के साथ मिले हुए घुसपैठिये आतंकियों के बीच कारगिल का युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला था। पाकिस्तानी सेना और इस्लामिक उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार कर भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना के साथ लगभग 5000 घुसपैठियों ने कारगिल-लद्दाख क्षेत्र की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भारतीय चोटियों पर अपना कब्जा जमा लिया था। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने इस दुस्साहस को मंज़ूरी दी थी। भारतीय सेना ने लद्दाख के कारगिल के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 3 महीने तक चले इस से युद्ध के बाद 26 जुलाई, 1999 को ऑपरेशन विजय की सफलता का ऐलान किया था। भारतीय सेना की ओर से ऑपरेशन विजय कारगिल युद्ध के दौरान चलाया गया था। इस दिन भारतीय रणबांकुरों ने पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल की ऊंची चोटियों से खदेड़ कर विजय का परचम लहराया था। 
कारगिल विजय दिवस हमारी मातृभूमि के सम्मान व स्वाभिमान का प्रतीक है। इस युद्ध में 500 से अधिक वीर सैनिकों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया था और लगभग 1300 सैनिक इस युद्ध में घायल हुए थे। भारतीय वायु सेना ने भी कारगिल में सफेद सागर ऑपरेशन के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग 32000 फीट की ऊंचाई पर पहली बार किया था और इस युद्ध को विजयी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कारगिल विजय दिवस भारत के स्वाभिमान, अद्भुत पराक्रम एवं दृढ़ नेतृत्व का प्रतीक है। अपने प्राणों की आहुति देकर भारतीय सशस्त्र बलों ने राष्ट्र की अखंडता, अस्मिता और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखा। 63 जवानों को उनकी अद्भुत वीरता, त्याग एवं पराक्रम के कारण परम वीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र से सम्मानित किया गया। कारगिल के इस युद्ध में भारतीय सेना के अनेक पदासीन अधिकारियों का सर्वोच्च बलिदान आज भी स्मरणीय है। कैप्टन योगेंद्र यादव को देश के सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस समय इस योद्धा की आयु मात्र 19 वर्ष की थी, जिसने बर्फीली दुर्गम चोटियों पर अपने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को धूल चटाई थी। 
मानवीय संवेदना से परिपूर्ण योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए इस  युद्ध में श्रीनगर-लेह मार्ग पर पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्ज़ा की हुई चोटी नंबर 5140 पर तिरंगा फहराया। बुरी तरह से घायल होने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपना अगला लक्ष्य चोटी नं. 4875 को फतेह करके कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। ऐसे अनेक वीर बहादुर सैनिक इस कारगिल युद्ध में थे, जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर मातृभूमि की रक्षा की। प्रतिवर्ष कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को कारगिल युद्ध के महामानवों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भारत के प्रधानमंत्री इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह दिन मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले सैनिकों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने का है, उनके विराट बलिदान के आगे नतमस्तक होने की बेला है। 
भारतीय सेना ने कारगिल का युद्ध अत्यन्त चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों, कठिन भूभाग, कठोर मौसम और सीमित संसाधनों के बीच लड़ा था। हमारी दुश्मन पाकिस्तानी सेना 18000 फीट की ऊंची चोटियों पर हथियार लिए बैठी थी और भारतीय सैनिकों को नीचे से दुर्गम रास्तों को पार करते हुए उन चोटियों को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त करवाना था, परंतु विकट परिस्थितियों के होते हुए भी भारतीय सेना के जवानों ने असंभव को संभव बना दिया था। अपने अतुलनीय युद्ध कौशल, आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय से भारतीय सैनिकों ने दुर्गम बर्फीली चोटियों पर भी तिरंगा फहराया था। यह दिवस भारत के सैन्य इतिहास में सदैव एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना रहेगा। 
यह देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले सैनिकों की वीरता का अद्भुत प्रमाण भी है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव एवं स्वाभिमान का द्योतक है। असंभव को संभव बनाने का अद्भुत कौशल भारतीय सैनिकों के रक्त में है। संपूर्ण विश्व के बड़े-बड़े देश रूस, अमरीका, चीन भारतीय सेना के दुर्गम बर्फीली चोटियों पर दिखाए गए इस पराक्रम से अचम्भित थे। भारत के तत्कालीन यशस्वी प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने मार्मिक भाषण से संपूर्ण भारतीय राजनीतिक जनमानस में  देश के प्रति एकता का संचार किया था। कारगिल विजय दिवस भारतीय सेना के साहस एवं अद्भुत शौर्य को नमन करने का दिवस है। उनके सर्वोच्च बलिदान के प्रति श्रद्धा सुमन एवं कृतज्ञता व्यक्त करने की बेला है। भारतीय सेना की यह शौर्य-गाथा प्रत्येक राष्ट्र-प्रेमी के मस्तक को गर्वोन्नत और गौरवान्वित करती है।