कितना उचित है मृत कुकियों को ‘अवैध विदेशी घुसपैठिये’ बताना

अपने विरोधियों और राजनीतिक शत्रुओं के खिलाफ अनैतिक और निराधार टिप्पणियां करना और हमेशा धरातल की सच्चाई से इन्कार की मुद्रा में रहना मोदी सरकार की प्रमुख विशेषता रही है। ज़ाहिर है मणिपुर में लावारिस शवों के निस्तारण के मामले में मोदी सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की दलीलें इसी विशेषता को दर्शाती हैं। 
मुर्दाघरों में लावारिस पड़ी लाशों के प्रति भी पूरी तरह से असंवेदनशीलता और चिंता की कमी का प्रदर्शन करते हुए मेहता ने यह स्वीकार करने के बजाय कि शव भारतीयों के थे, अदालत को बताया कि जातीय हिंसा के अधिकांश लावारिस शव तथाकथित विदेशी घुसपैठियों के हैं। मेहता की इस एकल-पंक्ति प्रस्तुति ने मणिपुर के लोगों, विशेषकर कुकी महिलाओं को ठेस पहुंचाई है।  केंद्र और मणिपुर दोनों सरकारों की ओर से पेश हुए मेहता ने 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अधिकांश लावारिस शव घुसपैठियों के हैं।  ऐसी टिप्पणी करने के लिए उनके पास क्या बुनियादी जानकारी या सबूत थे, यह अभी तक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है। सरकार के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी होने के नाते उन्हें अपनी टिप्पणियों में कुछ हद तक संयम रखना चाहिए था। उनकी टिप्पणी से मणिपुर की महिलाएं इस हद तक आहत हुई हैं कि शायद न्यायिक इतिहास में पहली बार मणिपुर के कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय की महिला संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में मेहता द्वारा की गयी इस टिप्पणी को वापस लेने की मांग की है। 
एक अन्य बयान में यूएनएयू आदिवासी महिला मंच दिल्ली-एनसीआर ने कहा कि मणिपुर के कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय की माताएं जो समूह का प्रतिनिधित्व करती हैं, सॉलिसिटर जनरल द्वारा की गयी टिप्पणियों से आहत और भयभीत हैं। समूह ने अपने बयान में कहा कि यह मृतकों के परिवारों के लिए बेहद दुखद है, जो आज तक अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने में असमर्थ हैं। प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगियों के मन में ईसाई कुकियों के प्रति तीव्र घृणा की भावना राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा शवों को उनके रिश्तेदारों को सौंपने की अनिच्छा में भी प्रकट होती है, जो शवों को अंतिम संस्कार के लिए घर ले जाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जहां एक ओर शव इम्फाल के मुर्दा घरों में पड़े हुए हैं, वहीं शोक संतप्त परिवार मौजूदा सुरक्षा स्थिति के कारण शवों तक पहुंचने में असमर्थ हैं। अगर वे शवों को निकालने की कोशिश करेंगे तो उन्हें मौत का सामना करना पड़ेगा। 
महिलाओं का संगठन, कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय शवों को चूड़ाचांदपुर लाने के लिए बार-बार मांग कर रहा है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा। मणिपुरवासी पर्याप्त सबूत पेश किए बिना मारे गये भारतीय नागरिकों को घुसपैठिए या अवैध प्रवासी कहने पर एसजी मेहता और सरकारी अधिकारियों से नाराज़ हैं।  भारत के मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की—लेकिन अंतत: जिनके साथ दुष्कर्म किया गया और जिनकी हत्या की गयी, वे हमारे लोग थे, है ना? इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय हो, बस इतना ही। दंगा पीड़ितों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की पूर्ण उदासीनता, राज्य का दौरा करने से इन्कार करने और यहां तक कि पीड़ितों को सांत्वना देने से इन्कार करने ने राज्य के आदिवासियों और कुकियों को हैरान और अलग-थलग कर दिया है। एसजी मेहता की टिप्पणी ने उनके घावों पर नमक छिड़क दिया है और इसलिए उन्होंने इस टिप्पणी को रद्द करने की मांग की है। जिस बात ने उन्हें सबसे अधिक आहत किया है, वह यह है कि जहां प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी गरिमा और शील की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया है, वहीं उनकी सरकार ने मृत आत्माओं को न्यूनतम मानवीय अधिकार देने की इच्छा भी व्यक्त नहीं की है। 
इसके अलावा तुषार मेहता के निराधार दावे ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को भी मुश्किल में डाल दिया है। भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा बीएसएफ  की ज़िम्मेदारी है। इतनी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठियों का प्रवेश बीएसएफ की प्रभावकारिता और क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। फिर यदि वास्तव में ऐसा मामला है, तो केंद्रीय गृह मंत्रालय को विस्तृत स्पष्टीकरण देना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में घुसपैठिये पुलिस की मजबूत उपस्थिति के बावजूद भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने में कैसे कामयाब रहे। 
कुछ स्थानीय रिपोर्टों में कहा गया है कि अधिकांश मृतक हिरासत में मौत के शिकार हुए थे।  ऐसे ही एक मामले में 25 मई को एक एफआईआर दर्ज की गयी थी लेकिन पीड़ित की मौत की जांच के लिए आज तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गयी है जो गिरफ्तारी के दिन से इम्फाल में मणिपुर पुलिस की हिरासत में था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का यह हश्र हुआ। 
यह गृह मंत्रालय और राज्य सरकार की खराब कार्यप्रणाली को दर्शाता है कि मणिपुर में जातीय हिंसा के तीन महीने बाद भी कम से कम 53 शव, जिनमें से ज्यादातर कुकी समुदाय के हैं, अभी भी इम्फाल पूर्व और पश्चिम के दो ज़िला अस्पतालों में लावारिस पड़े हुए हैं। इसके अलावा मैतेई समुदाय के व्यक्तियों के तीन या चार शव चूड़ाचांदपुर के अस्पताल में लावारिस पड़े हुए हैं। (संवाद)