वैश्विक खतरा बन रही विस्तारवादी महत्वाकांक्षा और सनक

वर्तमान में दुनिया पर तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। परमाणु सम्पन्न देशों के शासक अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं, मंसूबों और सनक के कारण एक-दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। परमाणु सम्पन्न देशों में चीन, रूस और उत्तर कोरिया ऐसे देश हैं जिनकी बागडोर सनकी तानाशाह प्रशासकों के हाथों में है। ये देश अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा और सनक के कारण परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे। इतिहास गवाह है कि सनकी प्रशासकों से हमेशा मानवता और शांति को खतरा बना रहा है। अमरीका ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा तथा नागासाकी में परमाणु बम से हमला कर लाखों लोगों को मौत के मुंह में भेज दिया था। यदि उत्तर कोरिया के सनकी शासक किम योंग की बात करें तो गत एक-डेढ़ वर्ष में उत्तर कोरिया ने 100 से अधिक घातक हथियारों का परीक्षण किया है। विशेष तौर पर अमरीका तक मार करने वाली परमाणु मिसाइलें भी इनमें शामिल हैं।  रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भारी तबाही का मंज़र तो सामने आ ही गया है, इसके अलावा यूक्रेन की अमरीकी तथा नाटो देशों की मदद से नाराज़ होकर रूस स्पष्ट तौर पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की सार्वजनिक धमकी कई बार दे चुका है।
उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का भारी  नुकसान हुआ है।  उधर रूस को भी नुकसान सहना पड़ा है। रूस को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था की यूक्रेन इतने दिनों तक युद्ध को खींच सकता है। इन परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कभी भी अपनी सनक के कारण परमाणु बमों का इस्तेमाल कर सकते हैं। चीन और ताइवान विवाद में भी चीन के तानाशाह शी जिनपिंग अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए और अमरीका के परोक्ष रूप से ताइवान की मदद करने पर ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है। स्पष्ट है कि रूस, चीन और उत्तर कोरिया तीनों परमाणु सम्पन्न देश अमरीका के कट्टर विरोधी बन चुके हैं। अमरीका स्वयं को सुपर पावर बनाए रखना चाहता है, जो चीन, रूस और उत्तर नहीं चाहते। कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी के अनुसार अमरीका तथा दक्षिण कोरिया की सेनाएं अपने वार्षिक सैन्य अभ्यास के तहत लगातार समुद्र तथा उत्तर कोरिया की सीमा के आस पास सक्रिय रहती हैं। उत्तर कोरिया इसे अमरीका तथा दक्षिण कोरिया के हमले के पूर्वाभ्यास के तौर पर देख रहा है। उधर अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया अपने त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन में उत्तर कोरिया के बढ़ते परमाणु हथियारों का मुकाबला करने हेतु संयुक्त रूप से बैलेस्टिक मिसाइल निर्माण में एक-दूसरे के सहयोग के लिए सहमति दे चुके हैं।
अमरीका तथा पश्चिमी देश हर उस देश का साथ देने को तैयार हैं जो मूल रूप से चीन, उत्तर कोरिया और रूस का विरोध करते हैं। अमरीका में चूंकि वर्ष 2024 में राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं, ऐसे में वर्तमान अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन को अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने के लिए और चुनाव जीतने के लिए एक बहुत बड़े मुद्दे की तलाश अवश्य होगी। इसके लिए वह अमरीका की बादशाहत और अपनी राजनीतिक साख को बचाने के लिए किसी भी देश के साथ भिड़ सकते हैं। ज़ाहिर है कि उनके किसी भी युद्ध में ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, इज़रायल आंख मूंदकर साथ देने को तैयार हो जाएंगे। इधर स्वतंत्रता के बाद से ही भारत तथा चीन के बीच संबंध तानवपूर्ण रहे हैं। दूसरी तरफ भारत के रूस के साथ मित्रता वाले संबंध रहे हैं। रूस शुरू से ही प्रत्येक मामले में भारत का समर्थन करता रहा है। पिछले 10 सालों से भारत व अमरीका की बीच मधुर संबंध बने हुए हैं। भारत सदैव शांति का पक्षधर रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान विवाद, उत्तर कोरिया व दक्षिण कोरिया के बीच तनाव तथा अमरीका एवं नाटो देशों के खिलाफ चीन, रूस व उत्तर कोरिया का एकजुट होना विश्व शांति के लिए खतरा बन सकता है। -मो. 90094-15415