जी-20 सम्मेलन : वैश्विक शांति और स्वास्थ्य हो सकते हैं प्रमुख मुद्दे

अगले सप्ताह दिल्ली में होने वाली जी-20 बैठक को लेकर काफी उत्साह पैदा किया जा रहा है, विशेष रूप से यह दिखाने के लिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण ही भारत को समूह की अध्यक्षता मिली है तथा इसी का प्रचार ज़ोर-शोर से किया जा रहा है। परन्तु मामले की सच्चाई यह है कि जी-20 में अध्यक्षता की एक चक्रीय प्रणाली है, जिसके तरह सभी सदस्य देशों को बारी-बारी से आयोजन का अवसर और अध्यक्षता दी जाती है। दरअसल भारत पिछले साल जी-20 का अध्यक्ष बन सकता था लेकिन इसमें एक साल की देरी हो गयी।
जी-20 के पास चर्चा के लिए कई एजेंडे हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक शांति और सभी के लिए स्वास्थ्य है। कई हिस्सों में चल रहे सशस्त्र संघर्षों के कारण आज दुनिया बहुत गंभीर स्थिति में है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध इस समय सबसे गंभीर है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अब तक 3604 नागरिकों सहित 14400 से अधिक लोग मारे गये हैं। 80 लाख से अधिक लोग विस्थापित होकर दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
मामला सिर्फ  रूस और यूक्रेन के बीच नहीं रह गया है। अमरीका और नाटो की स्पष्ट भागीदारी से मामला बहुत आगे बढ़ गया है। दोनों पक्षों ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की चेतावनी दी है। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बयान जारी करने के बाद कि वह यूक्रेन को क्लस्टर हथियारों की आपूर्ति करेंगे, रूस ने चेतावनी दी है कि ऐसी स्थिति में उनके पास परमाणु हथियारों का उपयोग करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा। यह बहुत खतरनाक स्थिति है क्योंकि कोई भी परमाणु आदान-प्रदान रूस और यूक्रेन के बीच सीमित नहीं रहेगा। यह रूस और अमरीका व नाटो के बीच परमाणु आदान-प्रदान होगा। नवीनतम वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार परमाणु हथियारों का इस्तेमाल 5 अरब से अधिक लोगों की मृत्यु का कारण बन सकता है। हज़ारों वर्षों के मानव श्रम से निर्मित आधुनिक सभ्यता का अंत हो सकता है।
आईपीपीएनडब्ल्यू और पर्यावरण समूहों द्वारा किये गये अध्ययन ने पहले ही सबूतों के साथ दिखाया है कि उदाहरण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच सीमित परमाणु आदान-प्रदान भी 2 अरब से अधिक लोगों की मौत का कारण बन सकता है, लेकिन रूस और अमरीका के बीच आदान-प्रदान कहीं अधिक विनाशकारी होगा।
इसके अलावा अफ्रीका और एशिया के विभिन्न हिस्सों में भी संघर्ष चल रहे हैं। इन आंतरिक झगड़ों को अमीर देशों के विभिन्न आर्थिक हितों के लिए किसी न किसी रूप में अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त है। फिलिस्तीन या सीरिया की स्थिति अत्यधिक मानवाधिकार उल्लंघन के उदाहरण हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि जी-20 परमाणु निरस्त्रीकरण जैसे मुद्दों पर कड़ा निर्णय ले और घातक हथियारों के प्रसार पर रोक लगाये।
हालांकि यह असंभावित लगता है क्योंकि जी-20 एक समरूप समूह नहीं है। यह बहुराष्ट्रीय निगमों और सैन्य औद्योगिक परिसरों पर हावी स्व-हित वाले देशों का एक समूह है। यह गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विपरीत है जिसने प्रभावी कदम उठाये और विभिन्न देशों में निरस्त्रीकरण, विकास और मानवाधिकारों के मुद्दे पर गंभीर चिंताएं उठायीं। यह सर्वविदित है कि उस समय भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना जवाहरलाल नेहरू, मार्शलटीटो और अब्दुल गमाल नासिर की पहल पर की गयी थी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 7वां शिखर सम्मेलन 1983 में दिल्ली में आयोजित किया गया था जिसमें 117 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया था और अन्य देशों के 20 पर्यवेक्षक थे।
इसके विपरीत,  जी-20 एक छोटा आयोजन है लेकिन बहुत अधिक प्रचार के साथ। ऐसा लगता नहीं है कि जी-20 बैठक परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए एक ठोस घोषणा के साथ सामने आयेगी, जो अब 7 जुलाई, 2017 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित परमाणु हथियारों के निषेध पर बहुपक्षीय संधि (टीपीएनडब्ल्यू)के माध्यम से संभव है। अंदर एक मज़बूत लॉबी है। जी-20 ने संयुक्त राष्ट्र में टीपीएनडब्ल्यू का विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों पर दबाव डाला। ये देश निवारक के रूप में परमाणु हथियारों के सिद्धांत के नायक हैं। इसकी बहुत कम संभावना है कि जी-20 सभी के लिए स्वास्थ्य पर कोई ठोस निर्णय लेकर आयेगा जिसके लिए स्वास्थ्य देखभाल के लिए संसाधनों के समान वितरण की आवश्यकता है।
हमने देखा है कि कैसे फार्मास्युटिकल कंपनियों, विशेष रूप से वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों ने कोविड महामारी के दौरान तबाही मचायी और छोटे देशों को ब्लैकमेल किया, जिनके पास अपने दम पर वैक्सीन बनाने के लिए न तो तकनीकी जानकारी थी और न ही संसाधन। माना जाता है कि बड़ी फार्मा कम्पनियों ने इस अवधि के दौरान भारी मुनाफा कमाया है। सभी के लिए स्वास्थ्य, सस्ती दवा मूल्य निर्धारण और न्यायसंगत स्वास्थ्य देखभाल पर किसी भी बातचीत के लिए फार्मा कम्पनियों को विनियमित करना होगा और उनके मुनाफे को पारदर्शी बनाना होगा।
जी-20 की गतिविधियों और विभिन्न क्षेत्रों में नतीजों पर नज़र रखना अच्छा रहेगा। लेकिन अमरीका, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे देश कॉर्पोरेट समर्थक विचारधारा और आर्थिक हितों वाले हैं। क्या वे हथियार छोड़ने के लिए तैयार होंगे या क्या वे विश्व व्यापार संगठन में प्रभावी बदलाव करने के लिए तैयार होंगे ताकि विकासशील देशों की सभी के लिए स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके?
7वें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भारत ने विकासशील देशों को निरस्त्रीकरण, समान विकास, मानवाधिकार, सभी के लिए स्वास्थ्य आदि एक लक्ष्य पर संगठित करने में बड़ी भूमिका निभायी थी। फिलिस्तीनियों के हितों और मानवाधिकारों के अन्य मुद्दों के समर्थन में प्रस्ताव पारित किये थे। ऐसे फैसलों के लिए शासन कला की ज़रूरत होती है। वर्तमान में हमारी राजनीति में उस स्तर के राजनीतिक कौशल का अभाव है। (संवाद)