विपक्ष ने विशेष सत्र के लिए केन्द्र की मंशा पर उठाए सवाल

केन्द्र सरकार के 18 से 22 सितम्बर तक संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाए जाने की आश्चर्यचकित घोषणा के बाद बहस शुरू हो गई है। विपक्ष ने शंका व्यक्त की है कि यह विवादित ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को पेश करने का एक कदम हो सकता है और सरकार पर लोकसभा चुनाव में देरी करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि भाजपा अगले वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनावों में अपनी हार का अनुमान लगा चुकी है और डर महसूस कर रही है। मोदी सरकार ने लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने की सभी सम्भावनाओं की जांच के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति (एच.एल.सी.) का गठन किया है। घोषणा के तुरंत बाद भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने पूर्व राष्ट्रपति से मुलाकात की और विपक्ष को देश में चुनाव स्थगित करने की साज़िश का पता चल गया। केन्द्र ने 8 सदस्यीय पैनल की घोषणा की, जिसमें केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता तथा लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, पूर्व मुख्य विजीलैंस आयुक्त संजय कोठारी, वित्त आयोग के पूर्व चेयरमैन एन.के. सिंह तथा लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी. कश्यप शामिल हैं। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष इन्वायटी मैंबर हैं। कानून (लॉ) सचिव को समिति का सचिव नामज़द किया गया है। इस दौरान कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने उक्त पैनल का हिस्सा बनने से साफ इन्कार कर दिया है।  गृह मंत्री अमित शाह को लिखे पत्र में अधीर रंजन चौधरी ने पूरी कवायद को ‘पूरी तरह से दिखावा’ कहा। हालांकि कांग्रेस महासचिव संगठन के.सी. वेणुगोपाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पैनल से बाहर रखे जाने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए सवाल पूछा कि खड़गे को बाहर रखने के पीछे क्या कारण है? दूसरी ओर केन्द्रीय संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार के प्रस्ताव से विपक्ष डर गया है, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस पहल से विकास को गति मिलेगी।  
महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन
बी.आर.एस. एम.एल.सी. तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की बेटी के. कविता ने महिला आरक्षण विधेयक पर ज़ोर देते हुए 47 राजनीतिक पार्टियों के एकजुट होने तथा संसद के आने वाले विशेष सत्र में लम्बे समय से लटक रहे महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने की अपील की है। कविता का यह बयान उन सम्भावनाओं के तहत आया है कि महिला आरक्षण विधेयक को 18 से 22 सितम्बर तक होने वाले संसद के विशेष सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है। कविता ने अपने पत्र में पार्टियों को राजनीतिक मतभेदों को दूर रखने तथा महिला आरक्षण विधेयक को प्राथमिकता देने का आह्वान किया है। 
नितीश कुमार राष्ट्रीय भूमिका निभाएं
विगत दिनों बिहार में जे.डी. (यू.) कार्यालय पर बैनर लगाए गये हैं तथा समर्थकों ने ‘देश का नेता कैसा हो, नितीश कुमार जैसा हो’ के नारे भी लगाए। यह नारा स्पष्ट रूप में यह संदेश देता है कि पार्टी को अपने नेता मुख्यमंत्री नितीश कुमार से राष्ट्रीय भूमिका निभाने की उम्मीद है। अपनी तैयारी तहत जे.डी. (यू.) ने अपने सभी ज़िला अध्यक्षों को 11 सितम्बर को और ब्लाक अध्यक्षों को 12 सितम्बर को प्रदेश की राजधानी में बुलाया है। जबकि नितीश कुमार आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में ज़मीनी हकीकतों के बारे में सौहार्द प्रतिक्रिया लेने के लिए पार्टी के ज़िला अध्यक्षों और ब्लाक अध्यक्षों के साथ बातचीत के लिए आगे बढ़ेंगे। 
 जे.डी. (यू.) ने 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ बिहार में 16 लोकसभा सीटें जीती थीं। तब भाजपा ने राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत प्राप्त की थी। राजग के एक अन्य सहयोगी (स्व. राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी) ने 6 सीटें जीती थीं। इस प्रकार राज्य की 40 में से 39 सीटों पर राजग को जीत मिली थी।
केन्द्र को डर क्यों लगता है? 
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ‘इंडिया बनाम भारत’ बहस के अशांत पानी में उतर गये हैं। उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार से पूछा है कि वह ‘इंडिया’ शब्द से इतना क्यों डरते हैं। मुख्यमंत्री विजयन ने एक बयान में कहा, ‘संविधान की धारा एक खुद हमारे देश को ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ के रूप में बयान करती है।’ इसी प्रकार संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ शब्दों के साथ शुरू होती है। 
हालांकि केन्द्र अब संविधानिक शोध द्वारा ‘इंडिया’ शब्द को हटाने की कोशिश कर रहा है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) प्रमुख मोहन भागवत ने ‘इंडिया’ की बजाए ‘भारत’ के इस्तेमाल की ज़ोरदार वकालत की है। देश के नाम पर विवाद तब शुरू हुआ था, जब जी-20 रात्रिभोज के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संदेश भेजा गया था, जिसमें उनकी स्थिति को पारम्परिक ‘राष्ट्रपति ऑफ इंडिया’ की बजाए ‘राष्ट्रपति ऑफ भारत’ के रूप में दर्शाया गया था। (आई.पी.ए.)