फलदार पौधों को बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों से बचाने का ढंग 

बरसात ऋतु समाप्त होने के बाद अब फलों के पौधे कई प्रकार की बीमारियों के शिकार हो गए हैं। इसमें पत्तों का गडमड हो जाना, पत्तों का खाया जाना, शाखाओं का सूखना, फलों का झड़ना तथा फलों का दागी होना आदि शामिल हैं। फलदार पौधों को इन बीमारियों से बचाने के लिए बागबानी विभाग से सेवामुक्त डिप्टी डायरैक्टर (फलों के विशेषज्ञ) डा. स्वर्ण सिंह मान ने आम की मिलीबग्ग (गुदिहड़ी), मैंगो मालफॉर्मेशन, एथ्राक्रोज़ तथा डाई बैक पर काबू पाने के लिए सुझाव दिए हैं जैसे कि आम की मिलीबग्ग संबंधी पौधों की जड़ों के इर्द-गिर्द दीवार के साथ खुदाई करके या मिथाइल पैरासियोन स्प्रे के साथ मिलीबग्ग द्वारा दिये गए अंडों को नष्ट कर देना चाहिए। आम के कोहड़ रोग (मालफार्मेशन), जिस कारण फूलों तथा पत्तों की शाखाएं इकट्ठा हो जाती हैं और इसमें कीड़े-मकौड़ों तथा बीमारियों का घर बन जाता है, इसकी रोकथाम के लिए नैफथेलीन एस्टिक एसिड का 100 मि.ली. अल्कोहल में घोल कर 100 लीटर पानी मिला कर इस महीने स्प्रे कर देना चाहिए। एथ्राक्रोज़ तथा डाई बैक की रोकथाम के लिए ब्लाइटैक्स 50 ग्राम 15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव कर देने का सुझाव दिया गया है। 
नींबू जाति में मिलीबग्ग जिस कारण काली फफूंद भी जम जाती है, के रोग पर काबू पाने के लिए ज़मीन के साथ लगी शाखाएं काट देनी चाहिएं और जिस स्थान पर पौधे लगे हों, उसकी पूरी सफाई रखनी चाहिए। क्लोरोपाइरोफास का स्प्रे करना भी लाभदायक होता है। नींबुओं पर सिट्रस सिल्ला तथा सुरंगी कीड़े भी हमला करते हैं। यह हमला आम तौर पर मार्च से नवम्बर तक होता है। सिट्रस सिल्ला पत्तों का रस चूसता है और पत्तों व शाखाओं को मोड़ देता है। सुरंगी कीड़े के कारण पत्ते सिकुड़ कर इकट्ठे हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त नींबू जाति का तेला आजकल नुकसान करता है। यह पत्तों का रस चूसता है, जिस कारण पत्ते गडमड हो जाते हैं और उन पर काली फफूंद जम जाती है। इसकी रोकथाम के लिए डा. मान कान्फीडोर या एकटारा के इस्तेमाल की सिफारिश करते हैं। 
किन्नू, माल्टा, ग्रेप फ्रूट तथा चकोत्रा को फल की मक्खी नुकसान पहुंचाती है। इस फल में डंक मार कर अंडे दे देती है, जिस कारण फल गल कर गिर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए फ्रूट फ्लाई ट्रैप का इस्तेमाल किया जा सकता है। गूंदिया रोग से फल की रंगत भूरी तथा काली हो जाती है और इसमें दरारें आ जाती हैं। पत्ते पीले पड़ जाते हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। प्रभावित पौधे के अधिक फल लग कर झड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए करजेट को अलसी के तेल में घोल कर लगाने की सिफारिश की गई है। करजेट या सोडियम हाईपक्लोराइड पानी में मिला कर बीमारी के समय में डालने के लिए कहा गया है। इसके अतिरिक्त पुराने बागों में फ्रूट ड्राप अधिक होने लग पड़ता है। इससे फल गिरना शुरू हो जाता है या सिकुड़ कर काला हो जाता है। इसलिए बोर्डो मिश्रण का स्प्रे करने की सिफारिश की गई है। यह स्प्रे मार्च-जुलाई के अतिरिक्त आजकल भी किया जा सकता है। 
अमरूद फल की मक्खी फल में डंक मार कर फल के भीतर अंडे दे देती है और फल में सुंडियां पड़ जाती हैं। फल खाने के योग्य नहीं रहते। इसकी रोकथाम के लिए 16 फ्लाई ट्रैप प्रति एकड़ इस्तेमाल करने चाहिएं। फल की मक्खी की रोकथाम के लिए नान वुवन लिफाफों से फल को ढंक कर भी मक्खी से बचाया जा सकता है या फिर फैनोगुलरेट 20 ई.सी. पानी में घोल कर स्प्रे किया जा सकता है। मिलीबग्ग भी नींबू जाति की भांति नुकसान करता है, जिसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरोफास का स्प्रे करना चाहिए। अधिक सीलन होने के कारण विलट की बीमारी भी आती है, जिससे पत्ते पीले होकर झड़ जाते हैं और पौधा मर जाता है। इसलिए पीएयू द्वारा नये साल्ट कोबाल्ट क्लोराइड की सिफारिश की गई है। एथ्राक्रोन जिस कारण फल गल जाते हैं, की रोकथान के लिए गले हुए फलों को दो फुट की गहराई तक धरती में दबाने की सिफारिश की गई है और सूखी शाखाएं काटने के बाद बोर्डो मिश्रण के स्प्रे की। 
अनार के पत्तों का तेला रस चूसता है, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान या रोगर की सिफारिश की गई है। अनार के फल पर काले दाग भी पड़ जाते हैं, जिस कारण मंडी में अच्छा दाम नहीं मिलता। इस बीमारी से बचाव के लिए भी बोर्डो मिश्रण का इस्तेमाल करना चाहिए। फिर लाग के कीड़े बेर की शाखाओं तथा पत्तों पर जम जाते हैं, जिस कारण शाखाएं सूख जाती हैं। इन्हें काटते रहना चाहिए। पत्ते खाने वाली सुंडी बेर के पत्ते खाने शुरू कर देती है। इसकी रोकथाम के लिए रोगर का स्प्रे करना चाहिए। 
आजकल पाऊडरी मिलड्यू से बचाव के लिए घुलनशील गंधक का स्प्रे कर देना चाहिए। यदि नवम्बर-दिसम्बर महीने में हमला अधिक हो जाए तो बेलाटोन या कैराथेन का इस्तेमाल करना चाहिए। चिट्टी मक्खी तथा तेला पपीते का रस चूसते हैं और चिट्टी मक्खी वायरस भी फैलाती है। इसकी रोकथाम के लिए भी मैलाथियान या रोगर के स्प्रे की सिफारिश की गई है। आजकल अमरूद के पौधों को खाद डाल देनी चाहिए। 10 वर्ष के पौधे को आधा किलो यूरिया, 1.25 किलो सुपरफास्फेट तथा 750 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पौधा डालनी चाहिए। आजकल भी आम, अमरूद, किन्नू, माल्टा, नींबू, बेर, आंवला, लुकाठ, पपीता आदि के बाग सितम्बर से शुरू होकर लगते रहते हैं। आजकल स्ट्राबेरी की पौध लगाई जा सकती है। यदि पौधे टेढ़े हो जाएं तो छड़ी का सहारा देकर सीधा कर देना चाहिए।