मंज़िलें और भी हैं !

चीन के शहर हांग ज़ू में आयोजित 19वीं एशियाई खेल प्रतियोगिता में भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 107 पदक जीत कर नि:संदेह रूप से देश की 140 करोड़ से भी अधिक आबादी को बड़े गर्व के साथ गौरव की इस अनुभूति का एहसास करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान किया है। इन 107 पदकों में से 28 स्वर्ण, 38 रजत और 41 कांस्य पदक शामिल हैं। इस आयोजन में लगभग 45 देशों के 12 हज़ार से अधिक खिलाड़ियों ने भाग लिया। भारत ने भी इस आयोजन की प्राय: सभी स्पर्धाओं में भाग लेने हेतु एक बहुत बड़ा दल भेजा था। सम्भवत: इसीलिए विगत मास 23 सितम्बर से शुरू हुए इस खेल कुम्भ में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा अतीत के आयोजनों से अधिक बड़ी संख्या में पदक जीते जाने की चर्चा हवाओं में विद्यमान दिखी थी, और इस हेतु देश का हित-चिन्तन करने वाले खेल-प्रेमियों ने यह एक बड़ा नारा भी दिया था—‘इस बार, सौ पार।’ नि:संदेह इस बार ऐसी सम्भावनाएं निरन्तर बरकरार भी रहीं, और जैसे-जैसे आयोजन के दिन आगे बढ़ते गये भारतीय खिलाड़ियों द्वारा जीते गये पदकों की संख्या भी बढ़ती गई, और ‘इस बार सौ पार’ जाने की उम्मीदों पर बूर पड़ते दिखाई देने लगा था। इस बार के आयोजन में पदक संख्या में सभी ओर से सुखद एहसास उपलब्ध होते रहे अर्थात न केवल कुल पदकों की संख्या बढ़ी, अपितु स्वर्ण और रजत पदकों की संख्या ने हर बाधा को लांघ दिया।
नि:संदेह 1951 से आ़गाज़ लेने वाले इस आयोजन में आज तक भारत की झोली कभी भी इतने पदकों से नहीं भरी गई थी।  2018 के जकार्ता आयोजन में देश को कुल 70 पदक हासिल होने की बड़ी उपलब्धि रही। ‘सौ पार’ की आशा का उद्भव भी सम्भवत: इसी कारण हुआ था। नि:संदेह इस बार भारतीय खिलाड़ी दल और भिन्न-भिन्न टीमों की शक्ति और दम-खम पर हाकी टीम, कबड्डी दल और क्रिकेट टीम के परचम बड़े ऊंचे दिखे थे। भारतीय क्रिकेट की पुरुष टीम के बमुकाबिल ही महिला क्रिकेट टीम भी सिद्ध हुई, और उसने पहली बार भाग लेकर पहला स्वर्ण क्रिकेट पदक अपने नाम किया। पुरुष टीम ने भी क्रिकेट में स्वर्ण जीता। हाकी में भी भारत ने निरन्तर नौ वर्ष के स्वर्ण सूखे को समाप्त किया। कबड्डी में भी दोनों पुरुष-महिला स्वर्ण पदक भारत के नाम रहे।
नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ियों के आशाओं पर पूरा उतरने की भी पूरी-पूरी उम्मीद थी। इस बार भारतीय खिलाड़ी दल के पक्ष में यह भी एक बड़ी बात गई, कि प्राय: प्रत्येक स्पर्धा में भारतीय खिलाड़ी अपेक्षा से अधिक बड़े स्थान पर खरा उतरते रहे। निशानेबाज़ी और तीरन्दाज़ी में देश के युवाओं की ही भांति देश की बेटियों ने भी समान धरातल पर अपने कदमों को मज़बूती से रखते हुए, नारी शक्ति के परचम को बुलन्द किये रखा। भारत को पहले दो स्वर्ण पदक आयोजन के दूसरे दिन लड़कों और लड़कियों ने निशानेबाज़ी में टीम रूप में दिलाये। पहला स्वर्ण और सौवां पदक भी देश की बेटियों के नाम रहा। देश को पहले दिन की प्रतियोगिताओं में तीन रजत और दो कांस्य पदकों से ही सन्तोष करना पड़ा था। देश को गर्वपूर्ण गौरव की एक अनुभूति 26 सितम्बर को तब हुई,  जब घुड़सवारी की किसी प्रतिस्पर्धा में भारत की एक युवा होती बेटी दिव्याकृति सिंह ने 41 वर्ष पुरानी परम्परा को ध्वस्त करते हुए रिकार्ड अंक के साथ स्वर्ण पदक जीता। कुमारी सिंह ने यह पदक चीनी घुड़सवार को उसी की धरती पर दूसरे स्थान पर धकेल कर प्राप्त किया।
एशियाई खेलों में पंजाबियों की प्रारम्भ से ही सरदारी स्वीकार की जाती रही है। खासकर हाकी, कबड्डी आदि में तो पंजाबी युवाओं और पंजाब की बेटियों ने अपने वर्चस्व को न केवल सदैव बनाये रखा है, अपितु उसका सफलता से प्रदर्शन भी किया है। पुरुष हाकी टीम में कप्तान हरमनप्रीत सिंह सहित 10 खिलाड़ी पंजाब के हैं। इनमें से पांच तो अकेले जालन्धर से रहे जबकि 4 अमृतसर के और एक कपूरथला से है। पंजाब के आम लोगों और पंजाबी खिलाड़ियों के लिए यह भी गर्व का पल रहा जब उद्घाटन वाले दिन 654 सदस्यीय भारतीय दल का नेतृत्व करने हेतु, भारत का राष्ट्रीय ध्वज-वाहक पंजाबी युवा हरमनप्रीत सिंह को बनाया गया। नि:संदेह इस एक पल ने खासकर पंजाबी खिलाड़ियों में नये उत्साह एवं जोश का संचार किया होगा। तभी तो पूरी प्रतियोगिता में पंजाबी खिलाड़ी पेश-पेश रहे। हाकी, कबड्डी और क्रिकेट में यदि पंजाबी खिलाड़ियों ने वर्चस्व बनाया, तो कुश्ती प्रतियोगिताओं में हरियाणवी छोरों और छोरियों ने अपनी धाक का बखूबी प्रदर्शन किया हालांकि कुश्ती की कई स्पर्धाओं में भारतीय पहलवान अपने प्रति उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। भारतीय खिलाड़ियों को चीयर करने के लिए अनेक भारतीय सीमाएं लांघ कर भी चीन पहुंचे। देश में प्राय: हर घर के सदस्यों ने इस बार के आयोजनों को देखने हेतु उत्साह का प्रदर्शन किया।
इस खेल आयोजन ने देश को जश्न मनाने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय खिलाड़ियों की इस उपलब्धि पर बधाई संदेश दिया है। नि:संदेह इससे देश के खिलाड़ियों द्वारा जीते गये स्वर्ण पदकों की चमक द्विगुणित हो जाती है। अपने मौजूदा प्रदर्शन के बल पर कई खिलाड़ियों और टीमों ने ओलम्पिक का टिकट भी पक्का कर लिया है। हम समझते हैं कि हांग ज़ू में भारतीय खिलाड़ियों के इस प्रदर्शन से ओलम्पिक में भी भारतीय प्रदर्शन में सुधार और विस्तार होने की उम्मीदें जगती हैं। एशियाई खेलों से उपलब्ध होते संकेत नि:संदेह बहुत अच्छे हैं, किन्तु पहले तीन स्थानों पर रहे चीन (कुल 382 पदक), जापान (186 पदक) और दक्षिण कोरिया (190 पदक) ने तो पदकों के पहाड़ खड़े किये हैं। अत: नम्बर चार से ऊपर उठने और इनके बराबर का हिमालय खड़ा करने के लिए देश को अभी और भी कई मंज़िलें सर करनी पड़ेंगी। फिर भी, पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को जहां हम बधाई देते हैं, वहीं पदक न जीत सके खिलाड़ियों का आगामी आयोजन हेतु उत्साह-वर्धन भी करते हैं।