मीडिया के प्रति असहनशील होती जा रही हैं सरकारें

हमारे शासक समय-समय पर देश के लोकतंत्र, आर्थिक विकास तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के बढ़ रहे प्रभाव संबंधी अक्सर बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं। भारत के लोकतंत्र के संबंध में तो यहां तक कहा जाता है कि यह देश ही लोकतंत्र की मां है। दिल्ली में जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन के बाद तो हमारे देश के शासकों ने यह भी कहना शुरू कर दिया था कि विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई है, विश्व अब भिन्न-भिन्न मामलों के हल के लिए भारत की ओर देख रहा है। यह भी दावा किया जा रहा है कि आर्थिक क्षेत्र के अलावा तकनीकी क्षेत्र में भी देश तेज़ी से विकास कर रहा है तथा शीघ्र ही यह विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति बन जाएगा।
शासकों के उपरोक्त दावे कई पक्षों से ठीक हो सकते हैं, परन्तु जहां तक लोकतंत्र तथा मीडिया की आज़ादी का संबंध है, भारत का ग्राफ दिन-प्रतिदिन नीचे की ओर जा रहा है। खास तौर पर 2014 में केन्द्र में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद लोकतंत्र तथा प्रैस की आज़ादी का बड़ा क्षरण हुआ है। पत्रकारों की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ‘रिपोटज़र् विदआऊट बार्डज़र्’ की विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में मीडिया की आज़ादी के इंडैक्स संबंधी 2023 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार मीडिया की आज़ादी के पक्ष से भारत 180 देशों में से161वें स्थान पर है। 2022 में यह 150वें स्थान पर था, अभिप्राय यह 11 स्थान और नीचे की ओर चला गया है। विपक्षी दलों के नेताओं को तथा पत्रकारों को विशेष तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। विपक्षी दलों के नेताओं को केन्द्रीय एजेंसियां सी.बी.आई., ई.डी. तथा आयकर विभाग द्वारा परेशान किया जाता है। इन पर बहुत-से झूठे-सच्चे मामले बनाये जाते हैं। इसी तरह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले पत्रकारों पर भी यू.ए.पी.ए. तथा एन.एस.ए. जैसे काले कानूनों के तहत मामले दर्ज किये जा रहे हैं। कुछ ही समय पहले न्यूज़क्लिक मीडिया पोर्टल को निशाना बनाया गया है। इसके संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ तथा वैब साइट के मानवीय स्रोत विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती इस समय भी हिरासत में हैं। इस न्यूज़ पोर्टल के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर किसी न किसी रूप में जुड़े रहे पत्रकारों के घरों तथा कार्यालयों पर भी विगत दिवस छापेमारी की गई थी तथा उनके मोबाइल फोन तथा लैपटॉप भी ज़ब्त किये गये थे। इससे पहले भी प्रसिद्ध मीडिया कर्मी तथा ‘द वायर’ न्यूज़ पोर्टल के संचालक सिद्धार्थ वर्धराजन, एच.के. दुआ तथा महिला पत्रकार राणा आयूब को भिन्न-भिन्न मामलों में उलझाया जाता रहा है। कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किए गए पत्रकार सदीकी कम्पन की उदाहरण भी हमारे समक्ष है, जो हाथरस में एक दलित लड़की के साथ हुए दुष्कर्म संबंधी घटनाओं की कवरेज़ के लिए जा रहे थे, उन्हें यू.ए.पी.ए. एक्ट के अधीन गम्भीर धाराएं लगा कर दो वर्ष से अधिक समय तक जेल में रखा गया। एच.के. दुआ जिन्हें पत्रकारों के क्षेत्र में दी गईं शानदार सेवाओं के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया, उन पर 2020 में हिमाचल तथा दिल्ली में कुछ भाजपा नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध टिप्पणियां करने के आरोप में मामले दर्ज करवाये गये। इस संबंध में एच.के. दुआ को सर्वोच्च न्यायालय में खुद पर दर्ज हुए मामले रद्द करवाने के लिए याचिका दायर करनी पड़ी थी। उन्होंने याचिका में यह भी कहा था कि पत्रकारों को सरकारों के अन्याय से बचाने के लिए हर प्रदेश में एक समिति बनाई जाये। जो 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले पत्रकारों के विरुद्ध मिलने वाली शिकायतों की प्राथमिकता के आधार पर जांच-पड़ताल करे तथा यदि संबंधित पत्रकारों के विरुद्ध ठोस प्रमाण मिलें तभी उन पर मामले दर्ज किये जाने चाहिएं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में फैसला सुनाते हुये यह कहा था कि पत्रकारों के विरुद्ध तभी कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, यदि उनकी लेख या बयान के कारण समाज में हिंसक भावना पैदा होती हो या अमन-कानून का कोई मामला उत्पन्न होता हो। पत्रकारों को लोकतंत्र में अपनी पेशेवाराना ज़िम्मेदारियां निभाने के लिए सुरक्षा उपलब्ध की जानी चाहिए। पत्रकारों पर मामले दर्ज करने से पहले प्रदेश स्तर पर जांच-पड़ताल हेतु समितियां बनाने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि ऐसा कोई फैसला विधानपालिका ही कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय स्वयं कोई ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकती।
चाहे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उपरोक्त फैसले को लम्बा समय गुज़र गया है, परन्तु देश में प्रैस की आज़ादी तथा पत्रकारों की सुरक्षा के पक्ष से स्थितियों में कोई व्यापक सुधार देखने को नहीं मिला। राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी ने बहुत-से मीडिया संस्थानों को अधिक विज्ञापन देकर तथा अन्य ढंग-तरीकों से लाभ पहुंचा कर अपने पक्ष में जोड़ लिया है। वे सत्तारूढ़ पार्टी के एजेंडे के अनुसार ही रिपोर्टिंग करने को प्राथमिकता देते हैं। इसके साथ ऐसे मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता भी बेहद कम हुई है। दूसरी तरफ जो मीडिया संस्थान तथा पत्रकार सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं, उन पर झूठे-सच्चे केस दर्ज करके उनको अलग-अलग तरीकों से परेशान किया जाता है।
यदि प्रदेशों के स्तर पर भी देखें तो स्थिति कोई बहुत अलग नहीं है। अलग-अलग प्रदेशों में सत्तारूढ़ पार्टियों की सरकारें उनकी हां में हां मिलाने वाले समाचार-पत्रों, टैलीविज़न चैनलों या वैब पोर्टलों को तो बड़ी मात्रा में विज्ञापन दिए जाते हैं लेकिन आलोचनात्मक मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को अलग-अलग तरीके से परेशान करती हैं। पंजाब में भी मीडिया की आज़ादी के पक्ष से स्थिति बहुत चिंताजनक है। मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार को आलोचनात्मक नज़रिया रखने वाले मीडिया संस्थान और पत्रकार बिल्कुल नापसंद हैं। कई बार इस सरकार द्वारा अपने महत्वपूर्ण समागमों की कवरेज़ करने के लिए दिल्ली या चंडीगढ़ से विशेष मीडिया टीमें बुलाई जाती रहीं हैं लेकिन स्थानीय पत्रकारों को ऐसे समारोहों में दाखिल होने से रोका जाता रहा है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने प्रदेश के प्रमुख टी.वी. चैनल पी.टी.सी. और रोज़ाना अजीत के पत्रकारों को विधानसभा की कवरेज़ करने से भी रोकने की कोशिश की थी। इस मकसद के लिए पी.टी.सी. को हाईकोर्ट भी जाना पड़ा था। अभी तक भी ‘आप’ सरकार ने इन दोनों मीडिया संस्थानों के विज्ञापन बंद किए हुए हैं। इसी प्रकार आम आदमी पार्टी की सरकार के मोहल्ला क्लीनिकों की शुरूआत संबंधी लुधियाना में एक विशेष समारोह की कवरेज़ करने के लिए दिल्ली से आई एक प्रसिद्ध टी.वी. चैनल ‘टाईमज़ नाओ’ की पत्रकार लड़की भावना किशोर और उसके फोटोग्राफर सहायक को एस.सी. एस.टी. एक्ट अधीन एक झूठा केस बनाकर गिरफ्तार कर लिया था और यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचने के बाद ही उनको राहत मिली थी। इसके अलावा पंजाब में समय-समय पर प्रदेश सरकार से संबंधित आई.टी. सैलों द्वारा बहुत-से न्यूज़ पोर्टलों एवं वैब टी.वी. चैनलों की बार-बार शिकायतें करके उन्हें आफलाइन करवाया जाता है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। 
देश भर में मीडिया की सिकुड़ रही आज़ादी के कारण पत्रकारों में गहरी चिन्ता पाई जा रही है और उनके द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर तथा प्रदेश स्तर पर कई बार रोष भी व्यक्त किया गया है। 
पिछले दिनों चंडीगढ़ तथा हरियाणा पत्रकार यूनियन के पंचकूला में हुए वार्षिक समारोह में भी यह मुद्दा उभर कर सामने आया था। इस वार्षिक समारोह में लगभग 400 हरियाणा तथा चंडीगढ़ के पत्रकार शामिल हुए थे। हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की उपस्थिति में हिन्दुस्तान टाइम्स, चंडीगढ़ के सम्पादक रमेश विनायक, दैनिक ट्रिब्यून के सम्पादक नरेश कौशल तथा इस लेख के लेखक को भी उस समारोह को सम्बोधित करने का अवसर मिला था। इस समारोह में भी अलग-अलग वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश में लोकतंत्र की मज़बूती के लिए तथा लोगों के ज्वलंत मामलों को सरकारों तक पहुंचाने के लिए प्रैस की स्वतंत्रता को बरकरार रखना बेहद ज़रूरी है। इस उद्देश्य के लिए पत्रकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के लिए कोई प्रभावशाली कानून बनाया जाना चाहिए। विशेषकर सरकारों द्वारा आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले पत्रकारों तथा मीडिया संस्थानों के खिलाफ यू.ए.पी.ए., एन.एस.ए. या आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बने कानूनों के तहत केस दर्ज नहीं किये जाने चाहिए। यदि मीडिया के प्रति सरकारों की सहनशीलता इसी प्रकार कम होती गई और पत्रकार आज़ादी से अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में भय व दहशत के कारण असफल होते गये तो देश में लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होता जाएगा और लोगों के मुद्दों को भी उचित कवरेज नहीं मिलेगी। इसके परिणाम सत्तारूढ़ पार्टियों के लिए भी सुखद नहीं होंगे, क्योंकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया की अनभिज्ञता में सरकारें तथा आमजन के बीच दरार दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाएगी। यदि ऐसी परिस्थितियों में लोगों में रोष फैलता है या हताश होकर विभिन्न वर्गों के लोग आन्दोलन पर उतरते हैं तो इसकी सबसे अधिक कीमत सत्तारूढ़ पार्टियों को ही चुकानी पड़ेगी। 
अंत में हमारा भी यह स्पष्ट विचार है कि देश में लोकतंत्र, धर्म-निरपेक्षता तथा संघीय ढांचे को बचाने के लिए और विशेषकर प्रैस की स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए देश के जागरूक नागरिकों तथा सामाजिक संगठनों को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। जो मीडिया संस्थान तथा पत्रकार स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रह कर जन-पक्षीय पत्रकारी करते हैं, यदि उन्हें समय के सत्तारूढ़ शासक निशाना बनाते हैं तो उनके पक्ष में लोगों को एकजुट होकर खड़े होना चाहिए। इसी प्रकार के ठोस यत्नों से ही हम वर्तमान परिस्थितियों में प्रैस की स्वतंत्रता को बचा कर रख सकते हैं।