भारत के विरुद्ध काम नहीं आएगा कनाडा का ‘विक्टिम कार्ड’

भारत दुनिया का वह देश बनता जा रहा है, जो पश्चिमी देशों के लोकतांत्रिक मुखौटे के पीछे मौजूद उनके सामंती चेहरे को जब तब बेनकाब कर देता है। यह अलग बात है कि ऐसे मौके पर दोस्त बनने का बढ़ चढ़कर दावा करने वाले  पश्चिमी देश एक अलग ही किस्म का राग अलापने लगते हैं। अब कनाडा के मामले को ही लें। कनाडा इस समय पूरी दुनिया में चीख-चीखकर भारत के विरुद्ध विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रहा है। कनाडा कह रहा है कि भारत ने उसके 41 राजनयिकों को मनमानी तरीके से निकाल दिया। उसके मुताबिक इन राजनयिकों की डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी खत्म करना वियना कन्वेंशन का उल्लंघन है। इसके लिए वह राजनयिक संबंधों पर 1961 की वियना कन्वेंशन का हवाला देने की जानबूझकर बात भी कर रहा है क्योंकि सच बात तो यह है कि भारत ने वियना कन्वेंशन का उल्लंघन नहीं बल्कि पालन किया है।
लेकिन जैसी कि पश्चिमी देशों की आदत होती है, उन्हें लगता है कोई कन्वेंशन थोड़े देखेगा, वह जो कुछ कह रहे हैं दुनिया उसी को मान लेगी और भारत को गलत कहेगी। इसीलिए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो दुनिया से भारत के विरुद्ध गोलबंद होने का आह्वान कर रहे हैं। वह कह रहे हैं, ‘भारत कुछ ऐसा कर रहा है, जिसके बारे में दुनिया के सभी देशों को चिंतित होना चाहिए। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।’ जबकि हकीकत में ऐसा कोई मामला ही नहीं है। सच तो यह है कि उल्टे कनाडा वियना कन्वेंशन का उल्लंघन कर रहा है और भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह इस उल्लंघन को स्वीकार कर ले।
दरअसल इस साल जून में चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में कनाडा ने भारतीय एजेंट के शामिल होने का जो आरोप लगाया था, उस संबंध में भारत के बार-बार यह कहने पर कि कनाडा के पास इस संबंध में जो भी सबूत हैं, उन्हें साझा करे, परन्तु कनाडा ने आजतक कोई सबूत साझा करने की ज़हमत नहीं उठाई। बस ट्रूडो ने एक ही रट लगा रखी है कि कनाडाई सरकार, अपने नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच कर रही है तो भारत की सरकार इससे खुश नहीं है।
ट्रूडो ने बड़ी चालाकी से अपनी संसद से लेकर विश्व मंचों तक में भारत को बदनाम करने का काम कर रहे हैं, ताकि कनाडा में रह रहे करीब आठ लाख सिखों के वोट हासिल कर सकें। गौरतलब है कि कनाडा में करीब 15 लाख भारतीय रहते हैं जो कनाडा की करीब पौने चार फीसदी जनसंख्या के बराबर हैं। लेकिन भारत किसी भी तरह से जब उसके दबाव में नहीं आया और उसे जैसे को तैसा अंदाज़ में जवाब दे रहा है तो अब कनाडा की सरकार लोकतंत्र, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनयिक प्रतिबद्धता जैसे पारिभाषिक शब्दों का इस्तेमाल करके भारत के विरूद्ध विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है।
भारत पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसने कनाडा के 41 राजनयिकों की डिप्लोमेटिक खत्म करके वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है। जबकि वियना कंवेशन के अनुच्छेद 11.1 में साफ -साफ  लिखा है कि जब राजनयिकों की संख्या को लेकर दो देशों के बीच कोई विशेष समझौता न हो, तब कोई भी देश अपने यहां दूसरे देश के राजनयिकों की ज्यादा संख्या को बराबर करने के लिए अतिरिक्त राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए कह सकता है। भारत के कनाडा में  21 राजनयिक हैं और कनाडा 20 अक्तूबर, 2023 तक भारत में हम से तीन गुना राजनयिक रखकर हमारी कार्यवाही को विक्टिम कार्ड बना रहा है। भारत में कनाडा के 62 राजनयिक थे, जिनको लेकर भारत सरकार ने सितम्बर माह में ही कह दिया था कि 10 अक्तूबर, 2023 तक वह अपने राजनयिकों की संख्या भारत के बराबर कर ले, लेकिन कनाडा को लग रहा था भारत की बात को क्या सुनना? गौरतलब है कि विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक कनाडा से अपने राजनयिकों की संख्या को बराबर करने के लिए 10 अक्तूबर, 2023 तक का समय दिया गया था, लेकिन कनाडा ने जब 10 अक्तूबर तक कुछ नहीं किया, तो बढ़ाकर इसे 20 अक्तूबर, 2023 तक कर दिया गया। जब कनाडा ने फिर भी नियम का पालन करने के संबंध में कोई संकेत नहीं दिए तो भारत सरकार को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि 20 अक्तूबर के बाद 41 राजनयिकों की डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी को खत्म कर दिया जायेगा।
मालूम हो कि डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी विदेशी राजनयिकों को दिया जाने वाला वह कानूनी और सुरक्षा कवच है, जिसके तहत किसी राजनयिक पर उस देश में कोई मुकद्दमा नहीं चल सकता, जहां वह तैनात होता है। उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और न ही उसके घर की तलाशी ली जा सकती है। अगर राजनयिक के विरुद्ध कोई अपराध है तो उस अपराध पर भी कोई कार्रवाई या मुकद्दमा उस देश में ही चल सकता है, जहां का वह होता है। भारत सरकार ने यही कहा था कि 20 अक्तूबर के बाद कनाडा के 41 राजनयिकों की डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी खत्म कर दी जायेगी, क्योंकि लोकतांत्रिक बराबरी की ज़रूरत है कि दोनों देशों में एक दूसरे के बराबर राजनयिक हों, जब भारत के कुल 21 डिप्लोमेट ही कनाडा में हैं, तो कनाडा को भारत में 62 क्यों रखने चाहिए? अगर कनाडा यह ताने देने की कोशिश करता है कि उसके राजनयिकों को बहुत काम करना होता है, तो क्या भारतीय राजनयिकों को कम काम करने पड़ते हैं? दरअसल जस्टिन ट्रूडो जानबूझकर इस विक्टिम कार्ड को राजनीतिक दांव की तरह चलने की कोशिश कर रहे हैं कि वह दुनिया के सामने साबित कर सकें कि भारत उनको दबा रहा है। साथ ही चंडीगढ़ और बेंग्लुरू के वाणिज्य दूतावासों को बंद किये जाने की बात कह कर भारत के आंतरिक मामलों में इस तरह की गलतफहमी पैदा करने की कोशिश कर रहा है कि मानो पंजाब और बेंग्लुरु, जहां से बड़े पैमाने पर हिन्दुस्तानी कनाडा आते हैं, उनके लिए भारत सरकार दिक्कतें खड़ी कर रही है।
लेकिन भारत अब वह भारत नहीं है कि किसी के धौंस या बिना कोई प्रतिप्रश्न के गैरज़रूरी हल्ला मचाने जाने पर डर कर किसी की बात मान ले। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर