राहुल गांधी के बढ़ते कद से चिंतित सपा

2024 के लोकसभा के चुनाव अभी दूर है पर सभी दलों ने 5 राज्यों के चुनाव के साथ-साथ 2024 के लिए अपनी जमीन मज़बूत करनी शुरू कर दी है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने जो अन्य दलों के नेताओं को अपने साथ जोड़ने का क्रम शुरू किया है उसमें सबसे ज्यादा प्रभावित सपा प्रमुख अखिलेश यादव है। सपा प्रमुख की अपने वोट बैंक को लेकर चिंता इसलिए भी हो सकती है क्योंकि पिछले कुछ समय से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का कद विपक्षी नेताओं में लगातार बढ़ा है जोकि भाजपा के छिटकने वाले मतदाताओं को भी रिझाकर भविष्य के लिए क्षेत्रीय दलों की जमीन कमजोर कर सकते हैं। देश के जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है, वहां अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस के खाते में जाने की संभावनाएं पहले से ही प्रबल हैं।
वहीं उत्तर प्रदेश के संदर्भ में माना जाता है कि विधानसभा चुनावों में सपा-बसपा के पाले में कम-ज्यादा होने वाला मुस्लिम मतदाता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भी विकल्प के तौर पर देखता है। कुछ पुष्टि आंकड़े भी करते हैं। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में 79 प्रतिशत मुस्लिमों ने सपा को वोट दिया था, जबकि कांग्रेस को सिर्फ चार प्रतिशत मत मिले। इससे पहले 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तस्वीर थोड़ी अलग थी। तब सपा-बसपा के गठबंधन को 73 प्रतिशत मुस्लिम मत मिला था, जबकि 14 प्रतिशत ने कांग्रेस पर विश्वास जताया था। तब नि:संदेह मोदी लहर में कांग्रेस बेहद कमजोर थी। अन्य राज्यों में भी उसे लगातार हार मिल रही थी पर आज हालात बदले हुए हैं।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव की तपिश जैसे-जैसे गर्म हो रही है, वैसे-वैसे उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। कांग्रेस उत्तरप्रदेश में सपा के वोट बैंक पर नज़र गड़ाए बैठी है और उसी मद्देनज़र राजनीतिक तानाबाना बुन रही है। इमरान मसूद, हमीद अहमद और फिरोज आफताब जैसे दिग्गज मुस्लिम नेताओं की एंट्री कराने के बाद कांग्रेस अब सपा के एक बड़े कुर्मी नेता को शामिल कराने जा रही है जो अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका होगा। सपा के राष्ट्रीय महासचिव और कई बार सांसद रहे रवि प्रकाश वर्मा और 2019 में लोकसभा चुनाव प्रत्याशी रहीं उनकी बेटी पूर्वी वर्मा जल्द ही कांग्रेस का हाथ थामेंगी। रवि वर्मा सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे हैं और लखीमपुर खीरी के आसपास के इलाके में मज़बूत पकड़ मानी जाती है। रवि प्रकाश वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी वर्मा शुक्रवार को समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देंगे और उसके बाद 6 नवम्बर को वर्मा परिवार अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का हाथ थामेंगे।
2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी सपा के लिए रवि वर्मा का पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होना एक बड़ा झटका माना जा रहा है। पूर्व सांसद रवि वर्मा सपा के दिग्गज नेताओं में गिने जाते हैं और पार्टी के गठन के समय से जुड़े हुए हैं। साल 1998 से 2004 तक लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से लगातार तीन बार सपा के टिकट पर सांसद बने और एक बार राज्यसभा सदस्य रहे। रवि वर्मा के पिता बाल गोविंद वर्मा और माता ऊषा वर्मा भी लखीमपुर खीरी सीट से सांसद रह चुकी हैं। इस तरह से लखीमपुर खीरी संसदीय सीट पर रवि वर्मा का परिवार दस बार प्रतिनिधित्व कर चुका है। उनकी बेटी पूर्वी वर्मा 2019 के लोकसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी सीट से उतरी थी, लेकिन भाजपा की अजय मिश्रा टेनी से जीत नहीं सकीं। रवि प्रकाश ओबीसी की कुर्मी समुदाय से आते हैं और रुहेलखंड के बड़े नेताओं में उन्हें गिना जाता है। कांग्रेस की नज़र उत्तरप्रदेश में जिस तरह सपा के वोट बैंक पर है, उसमें रवि वर्मा की एंट्री अहम रोल अदा कर सकती है। रवि वर्मा की पकड़ जिस तरह से रुहलेखंड के कुर्मी समुदाय के बीच हैं, उसमें बरेली, शाहजहांपुर, धौरहरा, सीतापुर, पीलीभीत, मिश्रिख जैसी संसदीय सीटों पर राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। इन इलाकों में सपा के लिए 2024 के चुनाव में चिंता बढ़ सकती है।
रवि प्रकाश वर्मा जिस रुहेलखंड से इलाके से आते हैं और यहां कुर्मी समुदाय के वोट निर्णायक भूमिका में है। कांग्रेस में रवि वर्मा के शामिल होने से लखीमपुर खीरी के इलाके में ही नहीं बल्कि आसपास के लोकसभा सीटों पर कुर्मी वोटबैंक पर असर पड़ेगा। रवि वर्मा के पिता और मां कांग्रेस में रही हैं लेकिन उन्होंने सपा के साथ अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था और अब वो भी घर वापसी करने जा रहे हैं। रवि वर्मा के एंट्री से सपा के साथ कांग्रेस के रिश्ते और भी तल्ख हो सकते हैं। कांग्रेस की नज़र सपा के वोटबैंक पर है। बीते दिनों पश्चिमी उत्तरप्रदेश के दिग्गज मुस्लिम नेताओं की एंट्री कराई है, जिसमें सपा से निकाले गए इमरान मसूद, आरएलडी के हमीद अहमद और सपा से चुनाव लड़ चुके फिरोज आफताब शामिल हैं। कांग्रेस इस बात को बाखूबी तौर पर समझ रही है कि उत्तरप्रदेश में अगर उसे दोबारा से खड़ा होना है  तो अपने परंपरागत राजनीतिक आधार को दोबारा से हासिल करना होगा। 
सपा प्रमुख अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश में इन दिनों पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के फॉर्मूले से भाजपा  को मात देना का दावा कर रहे हैं। इस फॉर्मूले के दम पर प्रदेश की 80 में से 65 सीटों पर सपा चुनाव लड़ने की तैयारी में है और सहयोगी दल के लिए सिर्फ 15 सीटें ही छोड़ रही है। उत्तरप्रदेश में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में सपा, कांग्रेस, आर.एल.डी. और अपना दल (कमेरावादी) शामिल है। सपा जिस पी.डी.ए. के सहारे उत्तरप्रदेश की 80 प्रतिशत सीटों पर खुद लड़ने की बात कर रहे हैं, उसके चलते ही कांग्रेस और आर.एल.डी. जैसे दल भी अपने राजनीतिक समीकरण को मज़बूत करने में लग गए हैं। 
कांग्रेस और आर.एल.डी. दोनों ही मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटों को अपने पाले में लाने में जुटे हैं। ऐसे में कांग्रेस सपा के नेताओं को ही अपने साथ मिलाने में जुट गई है तो आर.एल.डी. भी सपा के वोटबैंक पर नज़र गड़ाए हुए हैं। जयंत चौधरी लगातार मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं और उन्हें अपने साथ जोड़ने का तानाबाना बुन रहे हैं। इतना ही नहीं, जयंत चौधरी और उनकी पार्टी साफ कह चुकी है कि कांग्रेस को लिए बिना पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भाजपा को नहीं हराया जा सकता है।