पुरुष की सोच बदले बिना महिला सशक्तिकरण असम्भव

वर्तमान में भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकारों के द्वारा बहुत-से कदम उठाये जा रहे हैं। गांवों में पुरुषों की मानसिकता को बदलना होगा जहां महिला को सदैव कड़े पहरे, घूंघट, पर्दा, बुर्का की वकालत करने वाले पुरुष नारी की उन्नति के रास्ते की बाधाओं को कई गुना बढ़ा देते हैं। अभी सरकार के द्वारा नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लागू करने की दिशा में कदम उठाये गए हैं जिसमें नारी को चुनावों में 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया। पुरुष सांसदों ने भावी चुनावों को देखते हुए भारी मन से समर्थन किया। मन से वे समर्थन नहीं कर पाये थे। 
इसको देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि शासन स्तर पर आरक्षण दिया जा रहा है जबकि यदि पुरुषों की सोच अगर सही होती तो समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को 50 प्रतिशत की उपस्थिति बनी होती।
भारत में महिला की सुरक्षा एक गम्भीर समस्या है। समाज में सभी स्तरों पर महिलाओं को पुरुषों की कुत्सित मानसिकता का सामना करना पड़ता है। कामकाजी महिला को घर के अंदर व कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर दोहरी भूमिका व ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है जबकि पुरुष घर के बाहर काम करके महिला पर धाक व रौब जमाने की भूमिका ही निभाता है।
महिला सदस्यों का राज्यों की विधानसभाओं में मात्र औसत रूप से 9 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है। भारत में 28 राज्यों में मात्र एक महिला मुख्यमंत्री है। न्यूज़ीलैंड और युएई में 50 प्रतिशत महिला सांसद हैं। स्वीडन और नार्वे में 46 प्रतिशत जन प्रतिनिधि महिलाएं हैं। दक्षिण अफ्रीका में 45 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 38 प्रतिशत, फ्रांस व जर्मनी में 35 प्रतिशत, नेपाल में 33 प्रतिशत, पाकिस्तान में 20 प्रतिशत जनप्रतिनिधि महिलाएं हैं तथा सम्पूर्ण विश्व में 26 प्रतिशत सांसद महिलाएं है। 
विश्व में 185 देशों में भारत का रैंक 141 है। इन देशों में कानून बना कर सीटें आरक्षित नहीं की गई लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी पार्टी में ही महिला सदस्यों को आरक्षण का प्रावधान किया हुआ है। भारत में प्रथम लोकसभा में 22 (5 प्रतिशत), 13वीं लोकसभा में 49 (9 प्रतिशत), 14वीं में 45 (8 प्रतिशत), 15वीं में 59 (11 प्रतिशत), 16वीं में 66 (12 प्रतिशत) तथा वर्तमान 17वीं लोकसभा में 78 (14 प्रतिशत) महिला सांसद है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में 41 (7 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 24 (8 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल में 40 (14 प्रतिशत), बिहार में 26 (11 प्रतिशत) तथा तमिलनाडु में 12 (5 प्रतिशत) महिलाओं का प्रतिनिधित्व है।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करेगा। देश में यह कानून पूरी तरह से लागू होने के बाद लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या बढ़ कर 181 हो जायेगी। ऐसा देश में सीटों के परिसीमन के बाद ही सम्भव हो सकेगा। देश में हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें रोटेट होंगी। 2029 के लोकसभा चुनावों में यह अधिनियम लागू हो पायेगा। वर्ष 2024 के आम चुनाव तक 33 प्रतिशत का यह आरक्षण लागू नहीं हो पायेगा। भारत में 2021 में जनगणना नहीं हो पायी थी। अत: 2024 के बाद भारत की नई सरकार पहले जनगणना करवाएगी, उसके बाद परिसीमन होगा तब 2029 में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का नियम लागू होगा।  कुछ राजनीतिक दल इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि महिलाओं को आरक्षण 2024 के लोकसभा चुनाव में ही क्यों नहीं दिया गया, परन्तु यह आलोचना निराधार तथा राजनीति से प्रेरित है। लोकसभा सीटों की व्यवस्था एक संवैधानिक तरीके से की जाती है, मनमानी तरीके से नहीं की जाती है। भारत की लोकसभा में 543 सीटें हैं तथा विधानसभाओं में कुल 4123 सीटें हैं। लोकसभा में 131 सीटें अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित हैं। नया परिसीमन 2026 में प्रस्तावित है। जनगणना में महिलाओं की सही संख्या ज्ञात हो सकेगी। आरक्षित सीटों की संख्या के एक तिहाई हिस्से पर उसी वर्ग की महिलाओं का अधिकार होगा। नए परिसीमन में यदि सीटों की संख्या बढ़ती है तो आरक्षित सीटों की संख्या भी उसी अनुपात में बढें़गी। सभी सीटों पर महिलाओं के आरक्षण की अवधि 15 वर्ष ही होगी। उसके बाद इस आरक्षण की समीक्षा होगी।
नारी शक्ति के उत्थान से अमृत काल के दौरान 2047 तक महिलाओं की भारत में स्थिति सामाजिक,  आर्थिक व राजनीतिक तीनों ही दृष्टि से शिखर पर पहुंच सकेगी। बस पुरुषों का राजनीतिक व सामाजिक दृष्टिकोण महिलाओं के प्रति बदलने की आवश्यकता है। हर क्षेत्र में महिला नेतृत्व की क्षमता को आगे ले जाने की प्रवृति देश के प्रत्येक पुरुष में होनी चाहिए तभी भारत का विकास भी तेज़ गति से हो पायेगा। आने वाली पीढ़ियां महिलाओं को सम्मान का पात्र समझ सकेंगी। 
नियोक्ताओं को महिलाओं को निजी क्षेत्र में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिससे श्रम बल में भी महिलाओं की और अधिक भागीदारी बढ़ सके। इससे राष्ट्र और समाज को दूरगामी लाभ मिल सकेगा। नारी के सशक्तिकरण के लिए उसके स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा पर समाज के प्रत्येक वर्ग को प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना चाहिए।