‘वीर बाल दिवस’

दिसम्बर मास सिख इतिहास में बेहद अहम स्थान रखता है। इस मास में जो कुछ घटित हुआ, वह ऐसा दस्तावेज़ बन चुका है, जो हमेशा के लिए प्रेरणा स्रोत है। श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब का आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ना, म़ुगल सेना  के साथ स्थान-स्थान पर टकराव होना तथा उनके साथ किले से निकलने वाले सिखों द्वारा बेहद वीरता दिखा कर शहीदियां पाना, बड़े साहिबज़ादों द्वारा शाही सेना का डट कर मुकाबला करना तथा छोटे साहिबज़ादों की ओर से सरहिन्द के सूबे के सामने पूरे जोश तथा हौसले के साथ किसी भी तरह झुकने से इन्कार कर देना तथा शहीदियां प्राप्त करने की ऐसी घटनाएं हैं, जो इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ बन गई हैं।
ज़ुल्म तथा अत्याचार के आगे न झुकने की दृढ़ता लगातार कड़ी दर कड़ी सिख इतिहास का गौरवमय हिस्सा बनी रही है। इसीलिए मौजूदा समय में भी उस गौरवमय समय से प्रेरणा ली जाती है। भारी संख्या में श्रद्धालु चमकौर साहिब, सरहिन्द तथा ़फतेहगढ़ साहिब के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर इकट्ठा होते हैं तथा अपने मन के भीतर उस दास्तान को संजोते हैं, जो लगातार समाज की चेतना का हिस्सा बनी रही है। विगत वर्ष 9 जनवरी, 2022 को गुरु गोबिन्द सिंह जी के प्रकाशोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक वर्ष 26 दिसम्बर को छोटे साहिबज़ादों की वीरता को प्रेरणा-स्रोत बनाये रखने के लिए इस दिन को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की प्रशंसनीय घोषणा की थी। पंजाब, दिल्ली, देश के अन्य भागों तथा विश्व भर में इसे मनाने के लिए विशेष समागम भी आयोजित किये गये हैं। दिल्ली में आयोजित समागम को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री ने इस दिन के ऐतिहासिक महत्त्व संबंधी बेहद गौरवमय बातें की गई हैं। उन्होंने कहा है कि जब तक हमने अपनी विरासत का सम्मान नहीं किया, तब तक विश्व भर ने भी हमारी विरासत को भावपूर्ण ढंग से नहीं लिया। आज हम अपनी इस विरासत पर गर्व कर रहे हैं तो विश्व का दृष्टिकोण भी बदला है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के वीर साहिबज़ादों को पूरा विश्व और भी जानेगा। उनके महान कर्मों से अधिक शिक्षा लेगी। इसी तरह सरकारी स्तर पर भी पटना, कोलकाता तथा अन्य स्थानों पर साहिबज़ादों को अ़कीदत भेंट करने के लिए समागम किये गये हैं।
सिख इतिहास कुछ ही सदियों पुराना है। गुरु साहिबान तथा उनके बाद सिख पंथ द्वारा आज़ादी, समानता तथा भाईचारे के लिए जो संघर्ष किये गये तथा उनके द्वारा जो महान परम्पराएं कायम की गईं, वे स्वयं में बेहद नायाब कही जा सकती हैं। नि:संदेह ये पहले भी तथा अब भी हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत हैं। आगामी पीढ़ियां भी समय-समय पर घटित इन महान घटनाक्रमों से उत्साहित होती रहेंगी, ऐसा विश्वास किया जाना बनता है। इनकी उत्तमता इसलिए भी अधिक उभरती है, क्योंकि आज हमारे समाज के समक्ष अनेकानेक चुनौतियां खड़ी हैं, जिनका सामना करते हुये घटित ऐसे ऐतिहासिक घटनाक्रम हमारे लिए हमेशा प्रकाश स्तम्भ बने रहेंगे तथा मार्ग-दर्शक के रूप में भी भूमिका निभाते रहेंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द