युवा वर्ग पर है राम-राज्य का आधार

प्रभु श्री राम के आगमन को लेकर आज हर तरफ भक्तिमय वातावरण बना हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति प्रभु में लीन होकर उनको आत्मसात् करता हुआ प्रतीत होता है। गौर हो कि प्रभु की भक्ति उनके चरित्र के बाह्य व आंतरिक रूप में छिपे नैतिक मूल्यों को अपनाने से ही प्राप्त की जा सकती है। विशेषकर युवा वर्ग को चाहिए कि उनके रोल मॉडल प्रभु राम सिर्फ 22 जनवरी तक ही न हों, बल्कि वे इस दिन अपने आराध्य देव के गुणों को अपनाने का प्रण भी लें। सही मायनों में इनके द्वारा ही राम राज्य को स्थापित करने की नींव रखी जाएगी। मर्यादा पुरुषोतम प्रभु श्री राम के हर उस गुण को अपनाया जाना चाहिए जो हमें कलियुग में बेहतर इन्सान बनने के लिए प्रेरित करता है।
शुरुआत मानवता के उस पहलू से करते हैं जो हमें पशु योनि से मानव बनाता है ताकि समाज में अपनत्व का भाव लेकर सकारात्मक समाज की युवा द्वारा नींव रखी जा सके। युवाओं की सकारात्मकता ही समाज को अटल विश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती है। एक कमज़ोर-सी दिखने वाली प्रभु श्री राम की सेना ने शस्त्र बल से सुसज्जित लंकापति रावण की सेना को प्रभु श्री राम की सकारात्मकता से हरा दिया। उसी प्रकार युवाओं की सकारात्मकता हमारे देश की विकास गाथा को स्वर्णिम अक्षरों में लिख सकती है। इसके लिए युवाओं को अपने जीवन के लिए और समाज के प्रति लक्ष्य निर्धारित कर, शांत चित्त के साथ निरन्तर आगे बढ़ना होगा, लेकिन उस लक्ष्य से न शंका की गुंजाइश होनी चाहिए और न ही उसकी प्राप्ति के लिए किए जा रहे परिश्रम में कोई कमी, क्योंकि अपने कर्म के प्रति ईमानदारी ही प्रभु राम से निकटता का अहसास करवाती है।
प्रभु श्री राम व्यक्तिगत चरित्र के साथ-साथ अपने देश व समाज के चरित्र को संरक्षित करने पर भी बल देते हैं। हमारे देश की खूबसूरती विविधता में एकता है। इस एकता को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी विशेषकर युवाओं की है। राम किसी एक धर्म या एक जाति के न होकर समस्त बिरादरी के हैं जो एक देश बनाती है। उनकी सेना में भी नर व वानर किसी एक धर्म या जाति के न होकर आस्था व विश्वास के बल पर अपने आराध्य देव के नेतृत्व में युद्ध लड़ने के लिए तैयार हुए थे। इसलिए आज के युवाओं को भी जात-पात व धर्म से ऊपर उठकर एकजुट होकर देश के लिए कार्य करना चाहिए।
प्रभु श्री राम सामाजिक विकास के साथ-साथ पारिवारिक विकास को भी महत्त्व देते हैं। उनकी सबसे बड़ी शक्ति उनके भाइयों का आपसी प्रेम व एक-दूसरे के प्रति अपार आस्था थी। जब घर की आपसी लड़ाई चारदीवारी से निकल कर सड़कों पर आकर लड़ी जाती है, तभी उस परिवार के बुजुर्गों का अस्तित्व व उस परिवार का अर्थ छिन्न-छिन्न हो जाता है। युवाओं को यह समझना होगा कि हमारा होना परिवार के कारण है और बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान व प्यार खूबसूरत रिश्तों को और प्रगाढ़ करता है। ऐसे परिवार का कोई आंतरिक व बाह्य शत्रु हो ही नहीं सकता। ऐसे परिवार में प्रभु श्री राम हमेशा वास करते हैं क्योंकि प्रभु की आस्था अपनों और अपनत्व के बीच ही रची-बसी हुई है। यह प्यार और स्नेह किसी धार्मिक स्थल में नहीं, अपितु अपने परिवार, रिश्तेदारों एवं मित्रों के बीच में आसानी से पाया जा सकता है। प्रभु श्री राम हमेशा ही स्वयं को साध लेने की कला पर ज़ोर देते हुए अनुशासन, सम्मान एवं ईमानदारी के मार्ग पर चलने हेतु बल देते हैं। तुलसीदास कहते हैं कि तुलसी ममता राम सो, समता सब संसार। 
राग न द्वेष न दोष दु:ख, दास भए भव पार।। अर्थात् श्री राम में ममता और सब संसार के प्रति समता है, जिनका किसी के प्रति राग, द्वेष, दोष और दु:ख का भाव नहीं है, श्री राम के ऐसे भक्त ही भाव सागर से पार हो सकते हैं। आइए, हम सब राममय होकर उनके मूल्यों को अपनाएं ताकि राम राज्य बनाने में हमारा भी बराबर का योगदान हो।