‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ की भावना 

उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी में बनाए गये शानदार और विशाल राम मंदिर का देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हिन्दू रीति रिवाजों के मुताबिक उद्घाटन किए जाने के साथ देश भर में भारी उत्साह पैदा हुआ है। यह कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर ने भारत पर साल 1526 में हमला करके दिल्ली और आगरा जीतने के बाद अपना साम्राज्य स्थापित किया था। इसके बाद उसके जरनल मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर  को गिरा कर साल 1528 में यहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था।
भगवान राम के जन्म संबंधी कोई निश्चित तारीख तो नहीं मिलती पर महर्षि वाल्मीकि की रामायण और उसके बाद 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास रचित राम चरित मानस में उनकी शख्सियत का जिस प्रकार ज़िक्र किया गया है, वह दुनिया में आए किसी भी मनुष्य की सम्पूर्णता की कहानी दर्शाता है। इसलिए ही सदियों से भगवान राम करोड़ों ही भारतीयों की चेतना में छाए रहे। एक आदर्श के तौर पर उनके दिलों में धड़कते रहे। इसी लिए ही उनको मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। वह सूर्यवंशी राजा थे, पौराणिक कथाओं में उनको एक आदर्श राजा के तौर पर पेश किया गया है। इन व्याख्याओं के अनुसार वह प्रजापालक थे, हर समय उनको अपने लोगों की बेहतरी की चिन्ता रहती थी। कथाओं के अनुसार वह अपनी प्रजा के प्रति जवाबदेह थे। 14 सालों के वनवास के बाद और लंका को जीतने के बाद जब उनकी प्रजा के एक छोटे से व्यक्ति ने भी माता सीता पर उंगली उठाई तो उन्होंने सीता जी से भी अपने आप को अलग कर लिया था। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने कानून के अनुसार ही प्रशासन चलाया और हमेशा सच्चाई की सम्मुख रखा। वह बहुत ज्ञानवान थे, परन्तु इससे भी ऊपर उनको कर्मयोगी माना जाता था।
गोस्वामी तुलसीदास ने उनके चरित्र के गुणों संबंधी इतना कुछ तथा ऐसा वर्णन किया है, जो किसी इन्सान में मिलना बेहद मुश्किल है। वह अपने इरादों में इतने दृढ़ थे और माता-पिता के इतने आज्ञाकारी थे कि अपने पिता की इच्छा तथा आदेश के अनुसार वह 14 वर्ष के लिए वनवास पर चले गये। उनकी वीरता विजय प्राप्त करने के लिए नहीं थी, अपितु अन्याय तथा ज़्यादती करने वाले बड़े से बड़े तानाशाह को सबक सिखाने वाली थी। उनकी सोच में कोई भी व्यक्ति बड़ा-छोटा नहीं था, अपितु सभी समान थे। ऐसा आदर्शवादी व्यक्ति भगवान ही हो सकता है। सदियों से विदेशी शासक भारत को कुचलते रहे, इसकी सभ्यता तथा संस्कृति पर हमलावर होते रहे। इसी क्रम में उन्होंने यहां के धार्मिक स्थानों को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया, जिसकी समय-समय पर प्रतिक्रिया भी होती रही, परन्तु तलवार के बलबूते उन्होंने सदियों तक भारतीयों को गुलाम बनाये रखा। देश की स्वतंत्रता से पहले तथा स्वतंत्र होने के बाद 1949 से भी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात चलती रही, जिसके लिए समय-समय पर श्रद्धालुओं द्वारा संघर्ष जारी रहा। देश के बड़ी संख्या में लोगों का यह विश्वास था कि 16वीं सदी में अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था, वही स्थान भगवान राम का जन्म अस्थान है। 
इस संबंध में प्रत्येक स्तर पर बेहद विवाद बना रहा, परन्तु वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मंदिर ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाये जाने के बाद इसके निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया और इसका तेज़ी से निर्माण किया गया। नि:संदेह यह स्थान सदियों से हिन्दू आस्था का केन्द्र बना रहा था, इसीलिए ही राम मंदिर के निर्माण ने व्यापक स्तर पर हिन्दू समुदाय में एक बड़ा उत्साह पैदा किया है। 
हम समझते हैं कि आज यदि देश ने विकास करना है, तो इसमें भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों तथा समुदायों में साझ बनाई जानी चाहिए। इसके साथ ही यहां यदि कानून के शासन की स्थापना की जानी चाहिए तो सही अर्थों में देश को जहां संविधान के अनुसार चलना होगा, वहीं सदियों पहले की भगवान राम की मानवतावादी शिक्षाओं को भी अपनाना होगा। यही श्री राम को सही अर्थों में स्निग्ध श्रद्धांजलि होगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द