कांग्रेस एक सदमे से उभर नहीं पाती कि दूसरा तैयार रहता है !

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव ने इस समय कांग्रेस को चौंका दिया है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के तहत पिछले दिनों सहयोगी दलों के साथ गठबंधन पर खूब चर्चा हुई। बात नहीं बन पाई। एक तरफ ममता बनर्जी बंगाल में इंडिया के पक्ष में नहीं दिख रही हैं। दूसरी तरफ ‘आप’ पार्टी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली को लेकर तेवर दिखा रही है। 
‘इंडिया’ गठबंधन को आकार देने वाले नितीश कुमार बिल्कुल अलग लाइन पर चले गये हैं। उन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बना ली है। वहीं शनिवार को अखिलेश ने उत्तर प्रदेश  में कांग्रेस की लाइन तय कर दी। अब पार्टी या तो उस लाइन के दायरे में रहेगी, या फिर उसके पास बे-गठबंधन का एकमात्र विकल्प बचेगा। ऐसे में पार्टी की चुनौती और ज्यादा बढ़ सकती है। अखिलेश के एक्शन को मौके पर चौका के तौर पर देखा जा रहा है। उधर तमिलनाडु में डी.एम.के. ने कहा है कि कांग्रेस सिर्फ लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों के लिए पार्टी चला रही है। मंत्री राजा कन्नप्पन ने कहा कि कांग्रेस एक बड़ी और पुरानी पार्टी है लेकिन उसने अब अपनी ताकत खो दी है। उन्होंने पूछा कि केवल चुनाव लड़ने के लिए सीटें लेने का क्या फायदा है? 
इस परिस्थिति में कांग्रेस पश्चिम बंगाल, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में अकेली पड़ती दिख रही है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पार्टी किसी भी स्थिति में अपनी स्थिति कमजोर नहीं होने देना चाहेगी। अखिलेश यादव भी यह समझ रहे थे। ऐसे में उन्होंने कांग्रेस के लिए सीटों की घोषणा कर अपनी मंशा साफ कर दी है। पिछले दिनों अखिलेश लगातार ‘इंडिया’ की बैठक से पहले उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे की बात कर रहे थे लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई। अब उन्होंने अपनी सुना दी है।
इसके विपरीत पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 80 में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। सपा की तरफ से साफ किया गया है कि सपा ने कांग्रेस को 11 सीटें ऑफर की हैं। अगर कांग्रेस अखिलेश यादव को और सीटों पर जिताऊ उम्मीदवारों के बारे में बताती है तो सीटें बढ़ाई भी जा सकती हैं। कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने अखिलेश यादव के 11 सीटें देने के प्रस्ताव पर नाराज़गी जताई है। प्रदेश के शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व ने कहा है कि यह अखिलेश यादव का एकतरफा फैसला है जिससे वो सहमत नहीं है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अजय राय ने मीडिया  से बातचीत करते हुए कहा कि जो मेरी जानकारी में है कि अभी बातचीत चल रही है। हमारी राष्ट्रीय कमेटी इस पर अभी बातचीत कर रही है। 11 सीटों को लेकर हुए समझौते की बात की अभी जानकारी में नहीं है। अभी कुछ फाइनल नहीं हुआ है।
आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा का कांग्रेस के साथ कोई औपचारिक गठबंधन नहीं था लेकिन अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी ने रायबरेली और अमेठी सीटों पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, जहां कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने प्रदेश की 80 में से 67 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी 6.4 प्रतिशत वोट शेयर के साथ केवल एक सीट ही जीत सकी और तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे।
सपा, कांग्रेस और आरएलडी तीनों ही दलों के अपने-अपने दावे के समर्थन में अपने-अपने तर्क हैं लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं, इसकी चर्चा भी ज़रूरी है। साल 2019 के चुनाव की बात करें तो सपा बसपा और आरएलडी से गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी। सपा ने 37 और बसपा ने 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। आरएलडी के हिस्से तीन सीटें आई थीं। सपा, बसपा, आरएलडी के गठबंधन ने सोनिया गांधी की सीट रायबरेली और अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे थे। तब सपा ने 18.1 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 37 में से पांच सीटें जीती थीं और 31 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। एक सीट पर पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी। सपा को कुल 1 करोड़ 55 लाख 33 हजार 620 वोट मिले थे।
कांग्रेस अगर अखिलेश यादव के 11 सीटों के ऑफर के विकल्प को ठुकराती है तो उनके सामने ऑप्शन अधिक नहीं दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में अब अधिक वक्त नहीं रह गया है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पार्टी ने प्रदेश स्तर पर कोई अभियान शुरू नहीं किया है। ऐसे में भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस को एक मजबूत साथी चाहिए। अगर सीटों के मसले पर सपा से कांग्रेस की बात नहीं बनी तो पार्टी बसपा का रुख कर सकती है। मायावती की टीम के साथ पिछले दिनों प्रियंका गांधी की टीम के संपर्क में रहने की बात सामने आई थी। हालांकि कांग्रेस की ओर से सपा से ही गठबंधन की बात कही गई लेकिन सपा की ओर से सीट के मसले पर साफ किए जाने के बाद कांग्रेस क्या गठबंधन बदलेगी, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भाजपा को तगड़ी टक्कर दी थी। कई स्थानों पर आमने-सामने के मुकाबले में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार नज़दीकी अंतर से हारे। ऐसे में समाजवादी पार्टी के ग्राउंड लेवल कार्यकर्ताओं का नेटवर्क कांग्रेस से काफी बढ़िया दिख रहा है। उसका इस्तेमाल कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के पक्ष में करने की कोशिश में दिख रही है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी। रायबरेली और अमेठी सीटों पर ही पार्टी जीत दर्ज कर सकी। रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी चुनाव जीते थे लेकिन 2019 में कांग्रेस अमेठी सीट भी हार गई। केवल रायबरेली से सोनिया गांधी जीत सकीं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने की कोशिश करती दिख रही है। इसमें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है। लोकसभा चुनाव 2019 में मायावती की पार्टी बसपा ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था। इसका फायदा मायावती को मिला। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा खाता भी नहीं खोल पाई थी। वहीं 2019 में महागठबंधन के जरिए मायावती की पार्टी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई। कांग्रेस भी कुछ इसी प्रकार की उम्मीद में है। ऐसे में उसके सामने अधिक विकल्प का अभाव दिख रहा है।