कर्म और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक श्री गुरु रविदास

आज जयंती पर विशेष
गुरु रविदास जी भारत के उन महान संतों में से हैं जिन्होंने अपने कर्म को ही अपनी भक्ति और अध्यात्म का केंद्र बनाया। गुरु रविदास जी का जन्म काशी (बनारस) में माघ पूर्णिमा के दिन संवत् 1433 (1376 ई.) में हुआ था। इस वर्ष उनकी जयंती 24 फरवरी को मनाई जा रही है। उनकी जयंती पर देश विदेश से उनके लाखों अनुयायी बनारस पहुंचते हैं। पूरे शहर में भजन, कीर्तन होते हैं और शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं। चूंकि गुरु रविदास जी संत होने के साथ-साथ कवि भी थे, इसलिए वह अपनी हर बात दोहे, चौपयी या शब्द में कहा करते थे। उनके अनुयायी भी शोभा यात्रा निकालकर उनके रचे हुए भजन, दोहे गाते हैं। उन्होंने कर्म की पूजा का पाठ अपने पिता जी से सीखा था। इसका असर बचपन से ही गुरु रविदास पर बहुत सकारात्मक रूप से पड़ा। वह भी अपने पिता जी की तरह न सिर्फ  काम को ही पूजा मानने लगे बल्कि किसी काम को लेकर छोटे-बड़े की भावना से ऊपर उठ गये। 
चूंकि उनके पिता साधु-संतों के प्रति बहुत आदर रखते थे, इसलिए गुरु रविदास भी बचपन से ही साधु, संतों की संगत में मिले रहे। वह इस संगत से बहुत खुशी और आनंद महसूस करते थे। काम के प्रति समर्पण भाव, जीवन के प्रति सकारात्मकता और सबके प्रति मन में प्रेम और बराबरी का भाव उनमें बचपन से ही अपने पिता के साथ रहते हुए पड़ चुका था। साधुओं की संगति के चलते उनमें व्यवहारिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी आ गया, इसलिए भजन और दोहे भी रचने लगे। उन दिनों काशी में संत रामानंद की बहुत ख्याति थी। संत बनने की इच्छा रखने वाला हर व्यक्ति उनसे दीक्षा लेने की चाह रखता था। कबीरदास के कहने पर, जो कि उनके समकालीन थे, रविदास जी ने संत रामानंद को अपना गुरु बनाया। 
गुरु रविदास बहुत परोपकारी थे। वह हमेशा गरीबों और असहायों की सेवा किया करते थे लेकिन एक समय के बाद उनका यह दयालु स्वभाव उनके पूरे परिवार पर भारी पड़ने लगा। गुरु रविदास दिन भर काम करके जो कमाते थे, उसे अक्सर साधु, संतों पर खर्च कर देते थे। उन दिनों रविदास जी के जीवन में कई छोटी-छोटी घटनाएं घटीं जो उनके सद्चरित्र और पवित्र आत्मा होने का सबूत देती हैं। एक बार एक पर्व के मौके पर कुछ लोग गंगा स्नान करने जा रहे थे। उन्होंने गुरु  रविदास को भी अपने साथ चलने के लिए कहा, लेकिन गुरु  रविदास ने कहा कि अगर मेरा अंत:करण शुद्ध है तो इसी कठौती के जल में मुझे गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो जायेगा। 
गुरु रविदास भक्ति आंदोलन के उन महान संत कवियों में से हैं, जिन्होंने अपनी भक्ति से सामाजिक बराबरी और भेदभाव से मुक्त समाज की अलख जगाई। गुरु रविदास ने अपने पूरे जीवन में छुआछूत का सबसे ज़्यादा विरोध किया। उन्होंने अमीर, गरीब सबको एक नज़र से देखा और सबकी मदद करने के लिए उपदेश दिये। वह खुद दूसरों की मदद करने के लिए अपना सब कुछ दे दिया करते थे। 
कहते हैं, एक बार उनके घर में दो दिन से चूल्हा नहीं जला था क्योंकि उन्हें कोई काम नहीं मिला था। तीसरे दिन जब उन्हें काम मिला और वह अपने घर के लिए आटा, दाल और नमक का इंतजाम करके, इस सामग्री को घर ले जा रहे थे, तभी एक साधु आया और कहा कि उसे भूख लगी है। इस पर गुरु रविदास ने बड़े आदर भाव से उन्हें वह भोजन सामग्री दे दी। इस तरह उस दिन भी वह और उनका परिवार भूखा रह गये। ऐसी करुणा और दया भाव से भरे थे संत रविदास।

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