कमज़ोर होता मंडीकरण

पंजाब के नौ ज़िलों में बने 11 साइलोज़ को अनाज की खरीद, सार-सम्भाल और बिक्री के लिए मंडी का दर्जा देने संबंधी 15 मार्च, 2024 को, सचिव पंजाब मंडी बोर्ड की ओर से जारी किया गया आदेश वापिस लेने हेतु पंजाब सरकार विवश हो गई है। ऐसा पंजाब भर में किसान संगठनों एवं विपक्षी दलों की ओर से प्रकट किये गये सख्त रोष के दृष्टिगत करना पड़ा है। भिन्न-भिन्न किसान संगठनों के नेताओं ने उपरोक्त अधिसूचना संबंधी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए कहा था कि भगवंत मान की सरकार, केन्द्र सरकार की ओर से किसानों के एक वर्ष से भी अधिक समय तक दिल्ली की सीमा पर चले किसान संघर्ष के दबाव में वापिस लिये गये कृषि कानूनों को टेढ़े-मेढ़े ढंग से लागू करने का यत्न कर रही है। इससे एक तरह से पंजाब का पूरा मंडी सिस्टम ही बेकार हो जाएगा, जिस तरह कि बड़े कार्पोरेटर चाहते हैं। पंजाब के किसान इसे किसी कीमत पर सहन नहीं करेंगे। किसानों ने पंजाब सरकार की इस अधिसूचना के विरुद्ध भिन्न-भिन्न स्थानों पर रोष प्रदर्शन भी किये थे। इसी तरह पंजाब के विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को लेकर पंजाब सरकार की कड़ी आलोचना की थी।
नि:संदेह हरित क्रांति के बाद यदि प्रदेश की मंडियों का प्रबन्ध ठीक बन गया था तो उसका प्रदेश की आर्थिकता, कृषि एवं मंडी व्यवस्था से जुड़े अन्य भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा था। आज भी इस व्यवस्था से किसान, आढ़तीये, ट्रांस्पोर्टर एवं मज़दूर, जो उतराई छंटाई एवं भरायी का काम करते हैं, अपनी-अपनी रोटी-रोज़ी के लिए जुड़े हुए हैं तथा यह मंडी व्यवस्था फीस के रूप में प्रदेश की समृद्धि के लिए आय का स्रोत भी बनी हुई है।
परन्तु नि:संदेह पंजाब एवं केन्द्र की खरीद एजेंसियों के पास फसलों को सम्भालने के लिए आवश्यक गोदाम नहीं हैं। इस कारण ज्यादातर बोरियां खुले आसमान में मौसम के रहम-ओ-कर्म पर ही छोड़ दी जाती हैं। इस स्थिति में कुछ अंतराल के बाद इस अनाज का ज्यादातर भाग खराब हो जाता है, जिससे संबंधित एजेंसियों को भी अरबों रुपये का घाटा पड़ता है। संबंधित सरकारों को चाहिए था कि खरीदी गई फसलों की सम्भाल के लिए वे अधिक से अधिक किसानों अथवा अन्य निजी संस्थानों को गोदाम बनाने के लिए उत्साहित करतीं ताकि खुले में भण्डार किये जाने वाले अनाज को लम्बी अवधि तक सम्भाल कर रखा जा सकता, परन्तु प्रदेश सरकार एवं केन्द्र की संबंधित एजेंसियां ज़रूरत के अनुसार ऐसे गोदाम बनाने में असमर्थ रहीं। दूसरी तरफ बड़ी पूंजी से बनाये गये साइलोज़ जिनमें अनाज की हर तरह से सार-सम्भाल का तकनीकी प्रबन्ध भी बना हुआ है तथा इनमें अनाज को लम्बी अवधि तक भारी मात्रा में सम्भालने की साम्थर्य भी है, अस्तित्व में आ गये हैं। पिछले समय में केन्द्र की ओर से बनाये गये कृषि कानूनों में जो आशंकाएं उभर कर सामने आई थीं, उनमें यह मुद्दा भी शामिल था कि नये कृषि कानूनों से कृषि के अतिरिक्त अनाज का व्यापार भी बड़े कार्पोरेटरों के पास चला जाएगा तथा साइलोज़ को मंडी का दर्जा देने से पूर्व में प्रचलित सरकारी मंडी व्यवस्था कमज़ोर हो जाएगी। किसानों को यह भी आशंका थी कि धीरे-धीरे उनकी ज़मीनें भी कार्पोरेटरों के हाथों में चली जाएंगी। कार्पोरेटर ज़मीनें पहले ठेके पर लेकर बड़े फार्म बनाएंगे तथा फिर धीरे-धीरे वे ज़मीनें खरीद लेंगे। किसान का अपनी ज़मीन के साथ सदियों से मोह रहा है, परन्तु यदि यहां कृषि में विभिन्नता लाकर भिन्न-भिन्न तरह की फसलों, फलों एवं सब्ज़ियों की काश्त बढ़ाई जाती और फिर कृषि उत्पादन पर आधारित उद्योग लगाये जाते तो इससे किसानों की आर्थिकता को भी सम्बल मिलता तथा व्यापक स्तर पर रोज़गार के साधन भी पैदा हो सकते थे।
ऐसा करने से रोज़गार के लिए शहरों की ओर लगी बेरोज़गारों की होड़ को भी कम किया जा सकता, परन्तु अभी किसानों का इन मुद्दों पर उठा विरोध को खत्म नहीं हुआ। दूसरी तरफ पंजाब सरकार ने निजी कम्पनियों के साइलोज़ को मंडियों का दर्जा देकर प्रदेश की मौजूदा मंडीकरण व्यवस्था को कमज़ोर करने वाला कदम उठा लिया था, जिसका इस व्यवस्था से जुड़े समूचे वर्गों पर भारी प्रभाव पड़ सकता था। इससे न सिर्फ भिन्न-भिन्न स्तरों पर काम कर रहे मज़दूर एवं अन्य कर्मचारी ही बेरोज़गार हो सकते थे, अपितु सरकार की आय के स्रोत भी और कम हो सकते थे। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने किस सोच और भावना के तहत यह कदम उठाया था, इस संबंध में तो वही जानती है परन्तु निश्चित रूप से किसान संगठनों एवं विपक्षी दलों के हस्तक्षेप ने मौजूदा समय में भारी नुकसान होने से ज़रूर रोक दिया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द