फलों की रानी लीची का पेड़

अगर आम फलों का राजा है, तो सवाल है फिर फलों की रानी कौन है? जी हां, ये लीची है। दरअसल आम के बाद पूरी दुनिया में लोग सबसे ज्यादा जिस फल को पसंद करते हैं, वह लीची है, इसलिए लीची को फलों की रानी कहते हैं। अपने मीठे और तीखे स्वाद के साथ-साथ रसदार सफेद खंडित गूदे के लिए भी लीची जानी जाती है। दक्षिण पूर्व के देशों में जहां लीची बहुत पसंद की जाती है, वहां इसके महत्व को दर्शाने के लिए, इसे देवताओं का फल कहते हैं। लीची का फल जहां अपने स्वाद के लिए लोकप्रिय है, वहीं यह विटामिन सी और बी कॉम्प्लेक्स का भंडार है। लीची में भरपूर मात्रा में खनिज तत्व भी पाये जाते हैं, इसमें पानी की मात्रा काफी ज्यादा होती है, इसलिए यह शरीर को हाईड्रेटेड रखने में मददगार होती है। चूंकि लीची विटामिन सी से भरपूर होती है, इसलिए इसे इम्यूनिटी बूस्टर भी माना जाता है। 
लीची का पेड़ कई मायनों में खास है। यह 20 से 40 साल की अवधि में तैयार होता है, लेकिन सही से देखभाल की जाए तो 100 से 120 सालों तक अच्छी फसल देता है। लीची का पेड़ उन कुछ गिने चुने पेड़ों में से है, जो किसानों की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में बहुत मददगार होता है। वैसे लीची का पेड़ मूलत: भारत का नहीं है, लेकिन वर्तमान में दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन भारत में ही होता है और इसकी कई तरह की किस्में भी भारत में विकसित हुई हैं। लेकिन जहां तक इसे सबसे ज्यादा पसंद किए जाने का मामला है, तो थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में लोग लीची को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। सिंगापुर और थाईलैंड में लीची का शरबत बहुत पीया जाता है, यह बेहद स्वादिष्ट और सेहत से भरपूर होता है।
विभिन्न विटामिनों के साथ लीची के फल में 11 प्रतिशत शर्करा, 0.7 प्रतिशत प्रोटीन और 0.3 प्रतिशत वसा पायी जाती है। अपनी पौष्टिकता और सुपाच्य होने के चलते डाक्टर इसे मरीजों के खाने के लिए भी सुझाते हैं। वृद्ध भी लीची खाकर स्वस्थ रहते हैं। लीची को ताजे फल के रूप में ही खाना बेहतर होता है। लीची के पौधे को उगाना आसान है और किसी भी परिस्थितियों में इसकी सही से देखभाल करके फसल लेना भी आसान है। यही कारण है कि लीची खेत में, होम गार्डेन में, बाग बगीचों में कहीं भी आसानी से उगायी जा सकती है और इसके रसीले फल हासिल किए जा सकते हैं। वर्तमान में बाज़ार में लीची के कई प्रोडक्ट बहुत मशहूर हैं जैसे इसका जैम, इसका जूस (शर्बत, नेक्टर, कार्बोनेटेड पेय) तथा डिब्बा बंद लीची भी बाज़ार में खूब बिकती है।
लीची का वैज्ञानिक नाम गार्सीनिया मैंगोस्टाना है और इसे थाईलैंड में राष्ट्रीय फल का दर्जा हासिल है। हालांकि लीची मूलरूप से कहां का फल है, इसके इतिहास को लेकर थोड़ी उलझन है, इसलिए वैज्ञानिक इन दिनों लीची की उत्पत्ति को जीनोम की मदद से जानने की कोशिश कर रहे हैं। माना जाता है कि इतिहास में सबसे पहले यूनान के लोगों ने लीची की जल्दी फूलने वाली किस्मों की खेती करना शुरु किया था, वहीं चीन के हैनान में देर से फूल खिलने वाली किस्में उगायी गईं जो साल के अंत में फल देती हैं। अगर इसके ऐतिहासिक रिकॉर्ड को देखें तो 2000 सालों से दुनिया में लीची का फल उपलब्ध है। लीची 20 से ज्यादा देशों की स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण कारक की भूमिका निभाती है। चीन के वैज्ञानिक लीची के बारे में कहते हैं, ‘लीची सैपिंडासी के मेपल और हॉर्स चेस्टनट परिवार का एक महत्वपूर्ण ऊष्णकटिबंधीय फल है। यह पूर्वी एशिया में उगायी जाने वाली फलों की आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण फसल है’।
जहां तक लीची के पेड़ की बात है तो यह 40 फीट तक लम्बा हो सकता है। आमतौर पर यह मजबूत, गंठा हुआ और सही से देखभाल की जाए तो 120 से 130 साल तक आराम से हराभरा रहने वाला पेड़ है। लीची के पेड़ में आमतौर पर पांच या छह साल बाद फूल आना शुरु होते हैं और अच्छी फसल 9वें से 10वें साल के बाद मिलनी शुरु होती है। कलम से तैयार किए गए लीची के पौधे, बीज से उगने वाले पौधों से चार पांच साल पहले तैयार हो जाते हैं। भारत में लीची की अधिकांश तौर पर जो व्यावसायिक किस्मे हैं, उनमें फूल आने के बाद 70 से 100 दिन के भीतर फूल लग जाता है। लीची का एक औसत पेड़ 40 से 100 किलोग्राम की उपज देता है। जहां तक दुनिया में लीची की सबसे उन्नत किस्म की बात है तो मॉरीशस की ब्रूस्टर किस्म को सबसे उन्नत माना जाता है, जो पूरी दुनिया में डिब्बा बंद होकर बिकती है। हालांकि लीची का सबसे बड़ा उत्पादक चीन है, इसके बाद दूसरे नंबर पर भारत और फिर क्रमश: वियतनाम, थाईलैंड, मेडागास्कर और दक्षिण अफ्रीका है। 
अपने यहां यूं तो पूरे देश में कई किस्म की लीची का उत्पादन होता है, लेकिन उत्पादन मात्रा और क्वालिटी की दृष्टि से बिहार का स्थान अव्वल है। बिहार के मुजफ्फरपुर की शाही लीची को जीआई टैग भी मिल चुका है। त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में भी लीची खूब पैदा होती है और लोगों द्वारा खाने में पंसद भी की जाती है, लेकिन देश के कुल लीची उत्पादन का करीब 70 प्रतिशत अकेले बिहार में होता है। लीची का पेड़ भारी और कठोर लकड़ी का होता है। इसमें फफूंद और कीटों के विरूद्ध प्रतिरोधी क्षमता होती है। लीची के पेड़ की लकड़ी सड़ती नहीं है और इसका घनत्व पेड़ की उम्र तथा पेड़ के बढ़ने की परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग होता है। आमतौर पर लीची के पेड़ की लकड़ी का घनत्व 640 से 960 किलोग्राम प्रतिवर्ग मीटर होता है। इसकी लकड़ी भूरी और टिकाऊ होती है, जिससे फर्नीचर और फर्श के साथ-साथ कई तरह के सजावटी और आकर्षक खिलौने बनते हैं। लीची का पेड़ सदाबहार और स्वस्थ रहने वाला पेड़ है। अगर कोई किसान सही से 10 लीची के पेड़ की देखरेख करे तो यह उसकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की क्षमता रखती है। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर