लोकसभा चुनाव-2024  मतदान पर कहर तो नहीं डालेगी बढ़ती गर्मी ?

देश के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भविष्यवाणी की है कि ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोआ व महाराष्ट्र में अगले कुछ दिनों तक लू (हीटवेव) चलेगी, लेकिन इसी के साथ उसने इस साल अप्रैल से जून तक पूरे देश में लम्बी व बार-बार लू चलने की भी भविष्यवाणी की है। इसी अवधि (44 दिन) में 18वीं लोकसभा के लिए मतदान के सभी चरण भी सम्पन्न होने हैं, जोकि 1951-52 के आम चुनाव के बाद सबसे लम्बा वोटिंग शेड्यूल है। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या बढ़ता तापमान यानी भयंकर गर्मी के कारण लोग मतदान केंद्रों तक जाने में संकोच करेंगे, जिससे मतदान प्रतिशत कम हो जायेगा? लेकिन उससे पहले यह समझना आवश्यक है कि लू या हीटवेव किसे कहते हैं?
जब मैदानी क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है, तो उसे हीटवेव कहते हैं; तटीय क्षेत्रों में इसके लिए तापमान की सीमा 37 डिग्री सेल्सियस है और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 30 डिग्री सेल्सियस है। अगर गर्मियों में सामान्य तापमान न्यूनतम 4.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो उसे भी हीटवेव ही कहते हैं। रायलसीमा में तो मार्च के अंत व अप्रैल के शुरू में ही तापमान 43 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। ज़ाहिर है कि बढ़े हुए तापमान पर जब गर्म हवाएं यानी लू चल रही हो तो प्रत्याशियों, पार्टी कार्यकर्ताओं, चुनाव अधिकारियों के लिए भी काम करना कठिन हो जाता है। मौसम जब सज़ा दे रहा हो तो मतदाता भी अपने-अपने घरों से निकलना पसंद नहीं करते, विशेषकर वे वोटर्स जो सभी राजनीतिक दलों को एक ही थैली का चट्टा-बट्टा समझते हैं कि सत्ता में चाहे जो आ जाये हालात सुधरने वाले नहीं हैं। इस तरह उन्हें वोट न करने का बहाना मिल जाता है। 
चूंकि लू में लोग बीमार हो जाते हैं, लू लगने से मर भी जाते हैं, इसलिए मतदान के दिन अगर गर्मी ज्यादा हो तो नियमित मतदाता भी पोलिंग बूथ पर जाने में आलस दिखा देता है। अत: यह बात यकीन से कही जा सकती है कि बढ़ा हुआ तापमान मतदान प्रतिशत को प्रभावित करता है और 2019 का डाटा इस तथ्य की पुष्टि करता है। बचपन में बड़े बुजुर्गों के मुंह से सुना करता था कि भैय्या, तापमान 40 डिग्री होगा, तो मतदान का प्रतिशत भी 40 ही रहेगा। तब मुझे यह बात मज़ाक लगा करती थी। लेकिन अब इसकी हकीकत समझ में आने लगी है। मसलन, 12 मई 2019 को फूलपुर में तापमान 41 डिग्री सेल्सियस था और मतदान हुआ मात्र 48.7 प्रतिशत, जोकि उत्तर प्रदेश में उस साल सबसे कम था। 2009 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 13 सीटों (10 विदर्भ व मराठवाडा) पर 44 डिग्री सेल्सियस तापमान में हुआ मतदान औसतन 54 प्रतिशत ही हो सका था। 
आज तब के मुकाबले गर्मी कहीं ज्यादा रौद्र रूप दिखा रही है और देश के काफी बड़े हिस्से में पिछले कई दिनों से लगातार बनी हुई है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसे जान लेवा मौसम में मतदान के विचार से ही वोटर्स के पांव ठंडे पड़ जाते हैं। मतदान में मौसम का महत्व है, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता। 2019 के लोकसभा चुनाव में 32 दिन की हीटवेव की भविष्यवाणी की गई थी, जोकि ऑन रिकॉर्ड दूसरी सबसे लम्बी हीटवेव थी और उस साल वह मध्य जून तक रही। इस अवधि के दौरान लखनऊ ने 6 मई को 43 डिग्री सेल्सियस में 55 प्रतिशत मतदान किया, 19 मई को पटना साहिब ने 42 डिग्री सेल्सियस में 46 प्रतिशत मतदान किया। जम्मू-कश्मीर को अगर छोड़ दिया जाये, तो 2019 में जिन 50 सीटों पर सबसे कम मतदान (44-55 प्रतिशत) हुआ था, वह उन राज्यों में थीं जो गर्मी से बेहाल थे- उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश व तेलंगाना। 
यह सही है कि मतदान न करने का एकमात्र कारण मौसम नहीं है और न ही शहरों का कंक्रीट का जंगल होना है, वोटर्स को पोलिंग बूथ तक लाने की चुनौती बहुआयामी है। इसमें पिछले टर्नआउट का भी महत्व होता है और विभिन्न प्रकार के राजनीतिक प्रलोभन का भी। पिछले साल चुनाव आयोग ने 266 लोकसभा सीटों पर फोकस किया, जहां मतदान 2019 के राष्ट्रीय औसत (67 प्रतिशत) से कम था, ताकि अधिक मतदान को प्रोत्साहित किया जा सके। लेकिन यह कठिन चुनौती है। जिन 50 सीटों पर 2019 में सबसे कम मतदान हुआ था, उनमें से 22 उत्तर प्रदेश में और 13 बिहार में हैं। इन दोनों ही राज्यों से लोग बाहर काम करने के लिए अधिक जाते हैं। प्रवासी, विशेषकर सर्कुलर प्रवासी क्यों वोट नहीं करते, यह पहले ही स्थापित हो चुका है कि केरल, कर्नाटक आदि दूर के राज्यों से केवल वोट करने के लिए अपने गृह राज्य में लौटना संभव नहीं हो पाता क्योंकि समय व पैसा दोनों लगते हैं। अधिक गर्मी में रेल के ़गैर-एसी कम्पार्टमेंट में यात्रा करना भी सज़ा से कम नहीं होती। अगर वह समूह में लौटते हैं तो चुनाव आयोग को यह देखना होगा कि वह व्यवस्था किसी राजनीतिक दल ने तो नहीं करायी, जोकि (1) कानून अवैध है और (2) उसे ट्रैक करना लगभग असंभव है। 
रिमोट वोटिंग अवरोधों से भरी सड़क है क्योंकि इसकी टेक्नोलॉजी व प्रक्रिया पर दोनों मतदाताओं व राजनीतिक दलों को विश्वास नहीं है। 2019 में उत्तर प्रदेश व बिहार में क्रमश: 59 व 57 प्रतिशत मतदान हुआ था, इसलिए इन दोनों राज्यों में प्रवासी मजदूरों को मतदान के लिए बुलाने के प्रयास किये जाते हैं। मतदान ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए, इसमें तो कोई विवाद है ही नहीं। इससे मत प्रयोग के आदी मतदाताओं और कभी-कभी मतदान करने वालों के बीच में जो चयन का अंतर व पक्षपात होता है, वह मिट जाता है। इसलिए यह चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी हो जाती है कि वह ऐसी व्यवस्था करे, जिससे अधिक से अधिक मतदान हो सके। मसलन, एक काम यह किया जा सकता है कि पोलिंग बूथ की संख्या बढ़ा दी जाये ताकि मतदाताओं को गर्मी में लम्बी लाइन में न लगना पड़े।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर