पहला चरण

18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में होने वाले चुनावों का पहला चरण पूर्ण हो गया है। इस दौरान पश्चिमी बंगाल तथा मणिपुर में कुछ हिंसक घटनाएं भी घटित हुई हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ओर से पुलिस प्रशासन तथा कुछ स्थानों पर एक अल्पसंख्यक समुदाय को मतदान करते समय परेशान करने के गम्भीर आरोप भी लगाये गये हैं। पूर्वी नागालैंड के छ: ज़िलों के अलग राज्य की मांग कर रहे मतदाताओं ने चुनावों का पूर्ण रूप से बहिष्कार भी किया है। कुछ ऐसी घटनाओं को छोड़ कर समूचे रूप से मतदान की प्रक्रिया काफी सीमा तक शांतिपूर्वक रही है। पहले चरण के दौरान कुल 102 लोकसभा सीटों तथा अरुणाचल प्रदेश तथा सिक्किम की विधानसभाओं के लिए मतदान हुआ है। जिन राज्यों में इस चरण के दौरान लोकसभा के लिए मतदान हुआ है, उनमें तमिलनाडू की सभी 39 सीटें, राजस्थान की 12, उत्तर प्रदेश की 8, मध्य प्रदेश की 6, उत्तराखंड की सभी 5 सीटें, महाराष्ट्र की 5, असम तथा बिहार की 4-4, पश्चिमी बंगाल की 3, मणिपुर, मेघालय तथा अरुणाचल प्रदेश की 2-2, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम तथा त्रिपुरा की 1-1 सीट भी शामिल थी। इस पहले चरण में मतदाताओं की कुल संख्या 36.67 लाख थी।
यदि चुनावों के इस पहले चरण में मतदाताओं की ओर से दिखाये गये उत्साह की बात करें तो 2019 में इन्हीं सीटों पर हुये मतदान के अनुपात में इस बार काफी कम पोलिंग हुई है। 2019 में इन सीटों से समूचे रूप पर 69.96 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि इस बार 62.37 प्रतिशत मतदान ही हुआ। चाहे लोगों को अपने मताधिकार के उपयोग करने हेतु प्रेरित करने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से काफी यत्न किये गये थे तथा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी रैलियों द्वारा लोगों को मतदान के लिए उत्तेजित करने के लिए काफी सक्रियता दिखाई थी। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी लोगों को विशेष रूप से मतदान करने के लिए यह कहते हुए अपील की थी कि ये चुनाव लोकतांत्रिक तथा संविधान को बचाने के लिए विशेष महत्त्व रखते हैं। इसलिए उन्हें अपने मताधिकार का उपयोग ज़रूर करना चाहिए, परन्तु इसका मतदाताओं पर उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितनी पड़ना चाहिए था।
सत्तारूढ़ जनतांत्रिक गठबंधन तथा विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के भागीदारों को इस संबंध में चिन्तन-मंथन करने की आवश्यकता है कि आखिर मतदाताओं में चुनावों संबंधी उदासीनता बढ़ने के क्या कारण हैं? हमारे विचार के अनुसार इसका एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि चुनाव लड़ते समय राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के साथ बढ़ा-चढ़ा कर वायदे करती हैं, परन्तु जब उनमें से कोई पार्टी सत्ता में आ जाती है, तो ज्यादातर वायदे पूरे नहीं होते। दूसरी बात यह भी है कि प्रत्येक पार्टी भ्रष्टाचार को खत्म करने का दावा करती है परन्तु कड़वी वास्तविकता यह है कि हमारे प्रशासन के हर क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार मौजूद है। देश को आज़ाद हुये 77 वर्ष के लगभग समय हो गया है परन्तु भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भी पहले की तरह बरकरार है। इससे भी लोग राजनीतिक नेताओं से निराश हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त लोगों की उदासीनता के लिए काफी सीमा तक राजनीतिक पार्टियों की आर्थिक नीतियां भी ज़िम्मेदार समझी जा सकती हैं। समूचे विश्व में इस समय ज्यादातर सरकारों की ओर से विकसित देशों एवं अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के दबाव अधीन कार्पोरेट पक्षीय विकास नीतियां लागू की जा रही हैं जिस कारण आर्थिकता के प्रत्येक क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है। इस कारण हर देश में धन एवं सम्पत्ति ऊपरी कुछेक गिने-चुने लोगों के हाथों में एकत्रित होती जा रही है। हमारे देश में भी यह प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ी है। अमीरों एवं ़गरीबों में अन्तर बेहद बढ़ गया है। एक अनुमान के अनुसार भारत में ऊपरी एक प्रतिशत लोगों के पास 53 प्रतिशत तक सम्पत्ति है, जबकि निम्न स्तर की 50 प्रतिशत आबादी के पास 4.1 प्रतिशत सम्पत्ति है। एक और रिपोर्ट के अनुसार इस समय भारत में बेरोज़गारी की दर भी काफी ऊंची है तथा बेरोज़गारों में 83 प्रतिशत युवा वर्ग से संबंधित हैं। इन चुनावों में भी बेरोज़गारी तथा महंगाई मतदाताओं के लिए एक बड़ा मुद्दा है। कृषि संकट भी आबादी के एक बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित कर रहा है। इन मूलभूत मामलों संबंधी प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक पार्टियों की ओर से लम्बे-चौड़े वायदे तो किये जाते रहे हैं, परन्तु लोगों की समस्याओं को हल नहीं किया जा सका। इस कारण लोगों में देश की लोकतांत्रिक प्रणाली संबंधी यह धारणा बनती जा रही है कि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की बन जाये, उनकी मूलभूत समस्याओं पहले की भांति ही रहेंगी। इसी कारण लोगों में चुनवों के प्रति उदासीनता पैदा हुई है।
देश की सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों को इस सन्दर्भ में अपनी कथनी एवं करनी के संबंध में गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है, ताकि लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों का विश्वास बना रहे।

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