जंगलों में बढ़ रही आग की घटनाएं

गर्मी के शुरू होते ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के जंगलों में भीषण आग लग गई। इसके अलावा उत्तराखंड और हिमाचल के अनेक स्थानों पर जंगलों में भी आग लगने के समाचार  मिल रहे हैं। नैनीताल में विकराल और बेकाबू आग पर नियंत्रण के लिए सेना के हेलीकॉप्टरों की सेवाएं ली गई हैं। नैनीताल से सटे पाइंसए, भूमियाधार, ज्योलीकोट, नारायणनगर, भवाली, रामगढ़, मुक्तेश्वर आदि के जंगल इन दिनों बुरी तरह से धधक रहे हैं। उत्तराखंड में 1 नवंबर, 2023 से अब तक आग लगने की 575 घटनाएं सामने आई हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 16 अक्तूबर, 2023 से 16 जनवरी, 2024 तक के समय में वनाग्नि की 2050 घटनाएं रिकॉर्ड की गईं। इससे पिछले साल के इन्हीं महीनों में महज 296 घटनाएं हुई थीं। यानी कि इस साल लगभग 7 गुणा वृद्धि दर्ज की गई है। पेड़-पौधों के साथ जंगली जानवर मौत के शिकार हुए और भूमि भी बंजर हो गई। 
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के हालिया जारी एक अध्ययन में बताया गया कि पिछले दो दशकों में जंगलों में आग के हादसों में दस गुना वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार जंगल में आग लगने के कई कारण होते हैं। इनमें गर्मी के अलावा ईंधन और ऑक्सीजन मुख्य कारक हैं। जंगल में पेड़ों के सूखे पत्ते और शाखाएं ईंधन का काम करते हैं। एक छोटी-सी चिंगारी हीट का काम करती है। ऐसे में अगर हवा तेज़ चल रही हो तो एक जगह लगी आग पूरे जंगल को तबाह करने के लिए काफी है। अगर गर्मियों का मौसम है तो सूखा पड़ने पर ट्रेन के पहिए से निकली एक चिंगारी भी आग लगा सकती है। इसके अलावा कभी-कभी आग प्राकृतिक रूप से भी लग जाती है। यह आग ज्यादा गर्मी की वजह से या फिर बिजली कड़कने से लगती है। जंगलों में आग लगने की ज्यादातर घटनाएं इन्सानों के कारण होती हैं, जैसे आगज़नी, कैम्पफायर, बिना बुझी सिगरेट फेंकना, जलता हुआ कचरा छोड़ना, माचिस या ज्वलनशील चीज़ों का इस्तेमाल आदि। जंगलों में आग लगने के मुख्य कारण बारिश का कम होना, सूखे की स्थिति, गर्म हवा, ज्यादा तापमान भी हो सकते हैं। इन सभी कारणों से जंगलों में आग लग सकती है।
जंगलों को आग लगने से प्रकृति के प्रति हमारे व्यवहार पर भी सवाल खड़ा होता है। गर्मियों के मौसम में जंगलों में आग लगने की घटनाएं अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं। जंगलों में लगी आग से जान-माल के साथ-साथ पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। पेड़-पौधों के साथ-साथ  जीव-जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियां जलकर राख हो जाती हैं। जंगलों में विभिन्न पेड़-पौधे और जीव-जन्तु मिलकर समृद्ध जैवविविधता की रचना करते हैं। पहाड़ों की यह समृद्ध जैवविविधता ही मैदानों के मौसम पर अपना प्रभाव डालती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी घटनाओं के इतिहास को देखते हुए भी कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती। 
 जंगलों में यदि आग विकराल रूप धारण कर लेती है तो उसे बुझाना आसान नहीं होता। कई बार जंगल की आग के प्रति स्थानीय लोग भी उदासीन रहते हैं। दरअसल हमारे देश में ऐसी आग बुझाने की न तो कोई उन्नत तकनीक है और न ही कोई स्पष्ट कार्ययोजना। विदेशों में जंगल की आग बुझाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य होता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जंगलों की आग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि पर्यावरण मंत्रालय और अन्य प्राधिकरण वन क्षेत्र में आग लगने की घटना को हल्के में लेते हैं। जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं तो किसी ठोस नीति की आवश्यकता महसूस की जाती है, लेकिन बाद में सब कुछ भुला दिया जाता है।
भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार 1 जनवरी से 31 मार्च 2022 तक देश में एक लाख 36 हड़ार से अधिक जगहों से आग फैली जिसने मीलों तक जैव-विविधता से भरपूर जंगलों को जलाकर राख कर दिया। 

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