लोकसभा चुनाव : हरियाणा से लुप्त हो रही ‘लालों’ की राजनीति

पंजाब से काटकर हरियाणा राज्य का गठन 1 नवम्बर, 1966 को हुआ था। इसके लगभग चार दशक बाद तक इस कृषि राज्य की राजनीति इसके तीन ‘लालों’- चौधरी देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, जिनकी राष्ट्रीय राजनीति में भी प्रमुख भूमिका रही। यह लाल त्रिमूर्ति वर्तमान शताब्दी के पहले दशक में हमें छोड़कर हमेशा के लिए चली गई। लेकिन अपने पीछे विशाल सियासी विरासत छोड़ गई है। हालांकि तीनों राजनीतिक लाल परिवार त्रिमूर्ति (जिसने राज्य पर अनेक बार शासन किया) के करिश्मे की बराबरी करने में नाकाम रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि बंसीलाल व भजनलाल के परिवारों को चुनावी मुकाबले से ही बाहर धक्का दे दिया गया है, क्योंकि वे जिन पार्टियों से संबंधित हैं, उन्होंने उन्हें वर्तमान लोकसभा चुनाव में टिकट देने से इंकार कर दिया है। 
कांग्रेस ने बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी, जो प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं, को उनके परिवार की परम्परागत भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से टिकट नहीं दिया है। भाजपा ने हिसार लोकसभा सीट के लिए चौधरी देवीलाल के बेटे रंजीत चौटाला को पूर्व लोकसभा सांसद व भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई पर वरीयता दी है। वैसे देवीलाल का परिवार बिखरा हुआ है और आपस में ही राजनीतिक प्रतिद्वंदी बना हुआ है। एक अन्य लाल (मनोहर लाल खट्टर) की काबिना में उप-मुख्यमंत्री रहे देवीलाल के पोते दुष्यंत चौटाला को भाजपा ने जब से दूध में से मक्खी की तरह बाहर निकालकर फेंका है, तो वह हरियाणा में अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस समय हरियाणा में राजनीतिक संकट है। तीन स्वतंत्र विधायकों ने राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया है और कांग्रेस के खेमे में शामिल हो गये हैं। 
इस बीच दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का समर्थन कांग्रेस को ऑफर किया है कि वह चंडीगढ़ में वैकल्पिक सरकार बनाये। चंडीगढ़ दोनों हरियाणा व पंजाब की राजधानी है। लेकिन अनेक कारणों से कांग्रेस ने फिलहाल दुष्यंत के ऑफर को स्वीकार नहीं किया है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह करेगी भी नहीं। सबसे पहली बात तो यह है कि दुष्यंत न केवल राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं बल्कि अपने दस विधायकों को साथ रखना भी उनके लिए कठिन होता जा रहा है। दूसरा यह कि दुष्यंत ने ‘बाहर’ से समर्थन देने की पेशकश की है, जिसका कोई अर्थ नहीं है। लेकिन इन सबसे भी महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस समय किसानों व सत्ता विरोधी लहर की वजह से हरियाणा में भाजपा की राजनीतिक व चुनावी स्थिति बहुत कमज़ोर हो गई है। राज्य में सत्ता बदल का प्रयास करके कांग्रेस अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहती जबकि लोकसभा चुनाव में उसकी स्थिति बेहतर है और राज्य में विधानसभा चुनाव भी इस साल अक्तूबर-नवम्बर में होने जा रहे हैं। कुछ माह के सत्ता सुख के लिए कांग्रेस पांच वर्ष तक सरकार में रहने की संभावना को गंवाने की बेवकूफी नहीं करेगी। 
बहरहाल, हम बात हरियाणा के लालों की राजनीतिक विरासत की कर रहे थे। बंसीलाल राज्य में कांग्रेस के दो बार मुख्यमंत्री रहे, जो दिसम्बर 1975 से मार्च 1977 तक केन्द्र में रक्षामंत्री भी रहे। उन्होंने 1996 में अपनी हरियाणा विकास पार्टी का गठन किया और राज्य में शराबबंदी का वायदा करके वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2004 में वह वापस कांग्रेस में आ गये और मार्च 2006 में उनका निधन हो गया। हरियाणा में बिजलीकरण, सड़कों का विस्तार व रेलवे नेटवर्क का श्रेय बंसीलाल को जाता है, इसलिए उन्हें आधुनिक हरियाणा का निर्माता भी कहा जाता है। उनके दो बेटों में से एक सुरेन्द्र सिंह का 2005 में हेलीकाप्टर क्रैश में निधन हो गया था, तब वह हरियाणा सरकार में मंत्री थे। सुरेन्द्र सिंह की पत्नी किरण चौधरी हरियाणा में दो बार कैबिनेट मंत्री रहीं और कांग्रेस विधायक दल की नेता भी रहीं। सुरेन्द्र व किरण की बेटी श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद रहीं। 
भजनलाल अपनी सियासी समझ के लिए विख्यात थे। उन्होंने भी 2007 में अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया था, जब कांग्रेस ने 2005 में मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्राथमिकता दी थी। आखिरकार भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने 2016 में अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया, लेकिन जब उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वह 2022 में भाजपा में शामिल हो गये। कुलदीप के बेटे भव्य बिश्नोई ने 2019 में हिसार से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। भव्य इस समय आदमपुर से भाजपा के विधायक हैं। भजनलाल के दूसरे बेटे चंद्र मोहन, जो इसलिए सुखऱ्ियों में रहे थे कि वह धर्म परिवर्तन करके चांद मुहम्मद बने ताकि वकील अनुराधा बाली उर्फ ़िफज़ा से विवाह कर सकें, अब वापस हिन्दू बनकर कांग्रेस में ही हैं। इंडियन नेशनल लोकदल (इनलोद) में विभाजन और 2018 में जेजेपी के गठन के बाद देवीलाल का चौटाला परिवार राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस समय चौटाला परिवार का प्रभाव हरियाणा की मात्र 2 लोकसभा सीटों तक सीमित है। इस वजह से परिवार के सदस्य आपस में ही टकरा रहे हैं। जेजेपी नैना चौटाला व इनलोद की सुनैना चौटाला, जो आपस में देवरानी-जेठानी हैं, हिसार लोकसभा सीट पर अपने ही ससुर रंजीत चौटाला का मुकाबला कर रही हैं। इनलोद के महासचिव व उसके एकमात्र विधायक अजय चौटाला, जो देवीलाल के पोते हैं, कुरुक्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले में आप के सुशील गुप्ता (जो इंडिया अलाएंस के संयुक्त प्रत्याशी हैं) व भाजपा के नवीन जिंदल के साथ फंसे हुए हैं। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के प्रमुख राजेंद्र शर्मा का कहना है कि तीनों लाल परिवारों का राजनीतिक पतन तो बहुत पहले आरंभ हो गया था, लेकिन बंसीलाल व भजनलाल के परिवारों को लोकसभा टिकट न दिया जाना इस बात का संकेत है कि राज्य की राजनीति में उनके सियासी प्रभाव के खत्म होने को उनकी पार्टियों ने भी स्वीकार कर लिया है। 
प्रोफेसर शर्मा के अनुसार, ‘कांग्रेस में 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का उभरना और 2014 में साधारण बहुमत से राज्य में पहली बार भाजपा की सरकार का बनना, इस बात का संकेत था कि भजनलाल व चौटालाओं के सियासी प्रभाव के अंत का आरंभ हो गया है। फिर जब 2019 के आम चुनाव में श्रुति चौधरी भी हार गईं तो बंसीलाल परिवार के राजनीतिक असर पर भी विराम लगने लगा। अब, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तीनों लाल परिवार अपने अपने छोटे-छोटे गढ़ों को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’ संक्षेप में यह कि तीनों लाल परिवारों के सियासी प्रभाव के पतन से हरियाणा का राजनीतिक सीन ही बदल गया है, बस दुष्यंत चौटाला थोड़ा फड़फड़ा रहे हैं लेकिन वह भी कब तक?      -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर