निर्वाचन आयोग को उद्धव ठाकरे ने दी सीधी चुनौती

शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने निर्वाचन आयोग की नाफरमानी करने का खुलेआम ऐलान किया है। आयोग ने चुनाव के लिए पार्टी के थीम सॉन्ग से दो शब्दों—भवानी और हिंदू को हटाने का निर्देश दिया था। आयोग के मुताबिक थीम सॉन्ग में इन शब्दों के होने का मतलब है कि शिवसेना धर्म के नाम पर वोट मांग रही है, जो आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। मगर उद्धव ठाकरे ने सपाट अंदाज़ में कहा है कि शिवसेना ऐसा नहीं करेगी। ठाकरे ने आयोग को चुनौती देते हुए कहा है कि आयोग पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर कार्रवाई करे, जो लगातार धार्मिक भावनाओं को भड़काने और नफरत फैलाने वाले भाषण दे रहे हैं। इस तरह उद्धव ठाकरे ने निर्वाचन आयोग को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्हें ऐसा करने का अवसर इसलिए मिला है, क्योंकि आयोग के रुख पर पहले से प्रश्न-चिन्ह हैं और यह धारणा बन गई है कि आयोग को आचार संहिता की याद सिर्फ विपक्षी नेताओं के मामले में ही आती है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान को तोड़-मरोड़ कर जिस तरह मुस्लिम समुदाय को निशाना साधने वाला भाषण दिया है, उससे एक बार फिर से निर्वाचन आयोग के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई है। निर्वाचन आयोग अगर आचार संहिता के पालन के मामले में सबके प्रति समान नज़रिया नहीं अपनाएगा तो कुछ पार्टियों को उसे चुनौती देने का मौका मिलेगा, जिससे सारी चुनाव प्रक्रिया दूषित हो सकती है। 
अब प्रधानमंत्री को भी सहानुभूति चाहिए
इस समय दो प्रमुख विपक्षी नेता—झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल मे बंद हैं। हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन और अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल दोनों ही लोगों के बीच जाकर अपने पति की गिरफ्तारी के नाम उनकी पार्टी के लिए सहानुभूति अर्जित करना चाहती हैं, जो कि स्वाभाविक भी है। सभी विपक्षी पार्टियां मोदी और उनकी सरकार पर आरोप लगा रही हैं कि केन्द्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करके एक साज़िश के तहत उन्हें फंसाया जा रहा है और चुनाव प्रचार से दूर किया जा रहा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने को साज़िश का शिकार बता रहे हैं। उन्हें भी सहानुभूति चाहिए। वह भी चुनाव प्रचार के दौरान कह रहे हैं कि उनके खिलाफ देश की घरेलू और बाहरी ताकतों ने हाथ मिला लिया है, दुनिया के बड़े लोग उनके खिलाफ साज़िश में शामिल हैं। इसी के साथ वह यह भी कह रहे हैं कि मोदी डरेगा नहीं। सवाल है कि देश के सर्व शक्तिमान प्रधानमंत्री को कौन डरा रहा है? वह तो स्वयं को विश्व मित्र बताते हैं। भाजपा के प्रचार वीडियो में बताया जा रहा है कि मोदी युद्ध रुकवा देते हैं। अमित शाह ने कुछ समय पहले कहा था कि दुनिया में कोई भी बड़ा फैसला मोदी की सहमति के बगैर नहीं होता है। फिर कौन ऐसा बड़ा आदमी दुनिया में पैदा हो गया, जो मोदी के खिलाफ साज़िश कर रहा है और वह जनता के बीच इसका ज़िक्र करके सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
बसपा ने माना कि वह डरी हुई है!
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने बड़ी ईमानदारी से स्वीकार किया है कि उनकी पार्टी भाजपा पर ज्यादा हमला इसलिए नहीं कर रही है, क्योंकि उसे ईडी और सीबीआई का डर है। आमतौर पर इतनी ईमानदारी से यह बात कोई स्वीकार नहीं करता। लेकिन आकाश आनंद ने अंग्रेज़ी के एक अखबार को दिए इंटरव्यू में खुल कर यह बात कही। उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियों के पास पैसे हैं, साधन हैं, लेकिन बसपा के पास सिर्फ अपने समर्थक हैं। आकाश आनंद ने चुनाव लड़ने की रणनीति भी बताई और यह भी कहा कि जहां जैसी ज़रूरत होगी, उसके हिसाब से पार्टियों को निशाना बनाया जाएगा। गौरतलब है कि मायावती का अधिक हमला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन्होंने भाजपा को भी निशाना बनाना शुरू किया है। आकाश आनंद ने माना कि भाजपा पर हमला सीमित होगा और रणनीतिक होगा। माना जा रहा है कि जहां बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार लड़ रहा है, वहां मायावती भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाएंगी। इससे मुस्लिम वोट सपा और कांग्रेस गठबंधन से टूटेगा। इसलिए भाजपा नेता इस बात का बुरा नहीं मानेंगे कि मायावती उनकी पार्टी और नेता पर हमला कर रही हैं। गौरतलब है कि मायावती ने बहुत देर से चुनाव प्रचार शुरू किया और जिस तरह से विधानसभा चुनाव में वे निष्क्रिय रहीं, उसी तरह लोकसभा चुनाव में भी दिख रही हैं। 
बदलना चाहिए चुनाव का समय  
लोकसभा चुनाव के लिए दो चरणों का मतदान हो चुका है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के राज्यों को छोड़ दें तो उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में मतदान का आंकड़ा बहुत उम्मीद जगाने वाला नहीं है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में 49 से लेकर 61 फीसदी मतदान हुआ है, जो 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत कम है। इसका एक कारण भीषण गर्मी है। देश के 11 राज्यों में करीब 45 शहरों में तापमान 43 डिग्री से ऊपर पहुंच गया है। अप्रैल के अंत में ही देश के कई हिस्सों में भारी गर्मी पड़ने के साथ लू के थपेडे चल रहे हैं। बिहार और देश के कई हिस्सों में गर्मी, शादियों और खेती व कारोबार से जुड़ी गतिविधियों की वजह से मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है। इसलिए चुनाव आयोग को इस बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए। गौरतलब है कि पहले 1991 में लोकसभा असमय भंग होने की वजह से चुनाव का चक्र टूटा था और नवम्बर की बजाय मई-जून में चुनाव हुए थे। उसके बाद फिर सर्दियों में चुनाव होने लगे थे। लेकिन 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने समय से पहले चुनाव का फैसला किया तो फिर चक्र टूटा। अगर चुनाव आयोग सचमुच चाहता है कि मतदान प्रतिशत बढ़े और लोकतंत्र के उत्सव में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हो तो उसे कुछ ऐसा प्रयास करना चाहिए कि चुनाव अक्तूबर से मार्च के बीच हों।
भाजपा के खिलाफ गुस्से की लहर
लद्दाख में सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल और उसके बाद उनकी सक्रियता ने इस केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया है। उधर पार्टी ने अपने मौजूदा सांसद जामयांग शेरिंग नामग्याल का टिकट काट कर उनकी जगह ताशी ग्यालसन को टिकट दिया है। इसका बड़ा विरोध हो रहा है। नामग्याल की टिकट कटने पर भाजपा की प्रदेश इकाई में बगावत हो गई है। बड़ी संख्या में पार्टी के नेता भाजपा छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। भाजपा के सामने यह दूसरा संकट है। दिलचस्प बात यह है कि लद्दाख के लोगों के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी लोग पूछ रहे हैं कि नामग्याल का टिकट क्यों कटा? यह इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि कुछ समय पहले नामग्याल और उनकी पत्नी का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें दोनों देश के एक चैनल के उच्च पदस्थ पत्रकार से बातचीत कर रहे थे। इस बातचीत में नामग्याल की पत्नी सोनम वांग्मो ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का बचाव किया था। वह जेएनयू में पढ़ी हैं और जिस समय कथित भारत विरोधी नारेबाजी हुई थी, वह वहां मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि कन्हैया ने कोई भारत विरोधी नारा नहीं लगाया था। उन्होंने यह भी कहा कि कन्हैया के साथ ज़्यादती हुई है। माना जा रहा है कि उनके इस इंटरव्यू ने उनके पति का टिकट कटवा दिया। इसके अलावा कोई कारण नहीं है, क्योंकि नामग्याल ने कुछ समय पहले ही संसद में जो भाषण दिया था, उसके लिए खुद प्रधानमंत्री ने उनकी तारीफ की थी।