मंडियों में गेहूं और किसानों की बेकद्री

पंजाब की अनाज मंडियों में होती गेहूं की बेकद्री और किसानों की खज्जल-ख्वारी को देख कर प्रदेश की कृषि और कृषि-उपज संबंधी भगवंत मान सरकार के अब तक के किये गये तमाम दावे हवा-हवाई होते दिखाई देने लगे हैं। पंजाब के प्राय: सभी ज़िलों के गांवों में गेहूं की कटाई का मौसम पूरे यौवन पर है। पंजाब में मौसम विभाग की सूचना के अनुसार इस वर्ष अतिरिक्त गर्मी पड़ने की घोषणा और इस दौरान बार-बार हो रही आसमयिक वर्षा, आंधी और भारी ओलावृष्टि के कारण किसानों ने गेहूं की कटाई हेतु अतिरिक्त व्यवस्था करके कार्य में और तेज़ी लाई है। इस कारण प्रदेश भर की मंडियों में गेहूं की आमद में भी तेज़ी आई है, किन्तु सरकार की ओर से गेहूं की तत्काल खरीद और तेज़ी से उठान के अनेकानेक दावों और घोषणाओं में से कोई एक भी पूरा होते दिखाई नहीं दिया है। बहुत स्वाभाविक है कि इससे एक ओर जहां मंडियों में खुले में पड़े गेहूं के बड़े-बड़े ढेर धूप, आंधी, असामयिक वर्षा एवं ओलावृष्टि के कारण खराब हो रहे हैं, वहीं गेहूं से भरी बोरियां भी कृषि-उपज के इस पीले सोने की बेकद्री को ब्यां करते प्रतीत होती हैं। तिस पर मंडियों की दुर्दशा किसानों के लिए रोग-शोक का कारण भी बन रही है। प्रदेश की अधिकतर मंडियों में सफाई का बड़ा अभाव है। जगह-जगह गंदगी के ढेर पड़े हैं। वर्षा और ओलावृष्टि के कारण एक ओर जहां गेहूं की फसल का दाना बेरंग से बदरंग हुआ है, वहीं किसानों को मंडियों में पड़ी अपनी उपज की रक्षा करने हेतु अतिरिक्त परेशानी और कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। 
मंडियों में पड़े गंदगी के ढेरों, खड्डों-गड्ढों में जमा हो गये वर्षा के पानी के जौहड़ों पर पलते मच्छरों ने भी किसान का जीवन मुहाल कर दिया है। इस कारण मलेरिया आदि रोगों की बढ़ती आशंका भी बरकरार है। किसान दिन भर अपनी उपज की सरकारी खरीद की प्रतीक्षा करते हैं, तो रातें मच्छरों की भेंट चढ़ जाती हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनका सम्पूर्ण प्रशासनिक तंत्र बार-बार गेहूं के एक-एक दाने की खरीद करने और असामयिक वर्षा के कारण खराब हुई गेहूं के एक-एक दाने की भरपायी करने की घोषणाएं तो बार-बार करते हैं, किन्तु मुख्यमंत्री को स्वयं को तो चुनावी प्रचार-बुखार से फुर्सत नहीं मिल रही, जबकि अधिकारी केवल उतनी ही देर एड़ियों पर तने होते हैं जब तक वो मंडियों के भीतर होते हैं ताकि उनका फोटो सैशन होता रहे। मंडियों से बाहर निकलते ही सत्ता और शक्ति का वेताल पुन: उनके कंधों पर सवार हो जाता है। 
पंजाब में कृषि उपज की साज-सम्भाल हेतु पहले ही गोदामों और भण्डार-गृहों की भारी कमी पाई जाती है। जो गोदाम हैं भी, वे भी इस अव्यवस्था का शिकार होकर परेशानी को बढ़ाने में ही सहायी हो रहे हैं। मौजूदा गोदामों के बाहर गेहूं की बोरियों से लदे ट्रकों और ट्रैक्टर-ट्रालियों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हैं। इस कारण भी मंडियों में गेहूं की सरकारी खरीद और खरीद के उठान-कार्य में व्यवधान पड़ रहा है। प्रदेश की बड़ी अनाज मंडियों खन्ना, राजपुरा, लुधियाना, पटियाला, जगराओं आदि में गेहूं की खरीद न होने से किसान परेशान हैं। मुख्यमंत्री के अपने मालवा क्षेत्र के संगरूर, नाभा, रामपुरा फूल आदि मंडियों में भी गेहूं के ढेर दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। ममदोट की मंडी से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार साढ़े आठ लाख से अधिक बोरी गेहूं खुले में पड़ा धूप , आंधी और ओलावृष्टि के कारण खराब हो रहा है।
हम समझते हैं कि मौजूदा भगवंत मान सरकार की इस बेरुखी के कारण किसानों के अलावा आढ़ती, पल्लेदार, मजदूर और कई अन्य सम्बद्ध वर्गों के लोग भी परेशान हो रहे हैं। इससे प्रदेश में सामयिक रूप से बेरोज़गारी में भी वृद्धि हुई है। किसानों को अपनी उपज का सही और उचित समय पर भुगतान न मिलने  से व्यापारिक संतुलन और उनका पारिवारिक बजट भी बिगड़ा है। मंडियों में पहुंचने वाले गेहूं की 24 घंटे में खरीद और 48 घंटे में भुगतान के मुख्यमंत्री के दावे किस दिन की बरसात और ओलावृष्टि में धुल गये, यह शायद उनको खुद भी अब पता नहीं होगा। कुल मिला कर किसान आज भी ‘वाउ, झक्खड़, झोलियो’ से प्रभावित होने को विवश है जबकि किसान का बेटा होने का दम भरने वाले मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पूरी तरह से किसान और उनकी नियति के प्रति पीठ मोड़ चुके हैं। मौसम विभाग अभी भी बार-बार भारी वर्षा और ओलावृष्टि के अलर्ट जारी कर रहा है। हम समझते हैं कि ऐसी स्थिति में भगवान ही पंजाब के किसान का वाली-वारिस बन कर हाथ थाम ले, तो बेहतर, वरना इस सरकार से अब न तो कोई उम्मीद बर आते दिखाई देती है, न कोई सूरत ही नज़र आती है।