किसानों की कमाई के लिहाज से बहुपयोगी है - शहतूत का पेड़

शहतूत का पेड़ एक मध्यम आकार का पर्णपाती पेड़ है। वैसे यह मूलत: चीन का पेड़ है, लेकिन अपने देश में भी शहतूत का पेड़ करीब-करीब हर जगह पाया जाता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में जहां फल के लिए विशेष रूप से शहतूत की खेती होती है, वहीं पश्चिम बंगाल तथा नार्थ ईस्ट में फलों के साथ-साथ रेशम के कीड़े पालने के लिए भी शहतूत के पेड़ लगाए जाते हैं। जबकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा देश के कई और राज्यों में फल और रेशम के कीड़े पालने यानी दोनों के लिए शहतूत के पेड़ लगाए जाते हैं। शहतूत के पेड़ को, नारियल के बागानों में अंतरफसल के रूप में भी उगाया जा सकता है। कर्नाटक के चन्नापटना, रामानगरम, कनकपुरा और बैंगलोर में नारियल के साथ शहतूत की सह-फसल की जाती है। 
शहतूत का फल काला, बैंगनी, लाल और सफेद रंगों का होता है। शहतूत के फल बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। बाज़ार में शहतूत के फलों की अच्छी खासी मांग है। शहतूत का पेड़ आमतौर पर 10 से 20 मीटर तक लम्बा होता है और कई बार ये 25 से 30 मीटर तक भी लंबा देखा जाता है। शहतूत के पेड़ को कई जगहों पर कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है। शायद इसकी बहुउपयोगिता के लिए उसे यह नाम दिया जाता है। शहतूत का पेड़ उन गिने चुने पेड़ों में से है जिसका हर हिस्सा उपयोगी और काम का होता है। शहतूत के पत्ते दवाओं के बनाने में, सौंदर्य प्रसाधनों में, खास तौर पर काम आते हैं जबकि इसके रस या अर्क से कई तरह की टॉनिक और दूसरे स्वास्थ्यवर्धक पेय बनते हैं। शहतूत के फल में बहुत सारे खनिज तत्व जैसे पोटेशियम, फास्फोरस आदि पाये जाते हैं। लाल शहतूत को मोरस रूब्रा, सफेद शहतूत मोरस अल्बा, काले शहतूत को मोरस नइग्रा कहते हैं।
शहतूत का पेड़ किसानों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। वे इसके फलों को बेचकर तो अच्छी कमाई कर ही सकते हैं, इसकी पत्तियां और छाल भी दवा बनाने के लिए बिक जाती हैं। शहतूत की पत्तियां का पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल होता है, इन्हें मवेशी चाव से खाते हैं। शहतूत की लकड़ी कई तरह के घरेलू उपयोग तथा जलावन के लिए भी इस्तेमाल होती है। शहतूत के पेड़ से लोगों को गर्मियों में छाया मिलती है। शहतूत की पत्तियों में पोषक तत्व होते हैं, जो मिट्टी में विघटित होकर वापस मिट्टी में आ जाते हैं। शहतूत के पेड़ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मददगार होते हैं। शहतूत के पेड़ पानी और मिट्टी के संरक्षण में भी मददगार होते हैं। शहतूत के पेड़ से काफी महंगी लकड़ी मिलती है, जिसे बेचकर किसान अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। शहतूत के पेड़ की पत्तियों आदि से उर्वर खाद भी बनती है साथ ही शहतूत के पेड़ जहां लगे होते हैं, वहां की मिट्टी उर्वर होती है। क्योंकि यह जमीन की उर्वरता बढ़ाने में मददगार होता है। 
शहतूत के पेड़ की लकड़ी काफी महंगी होती है, क्योंकि यह कई तरह के कामों में आती है। इससे फर्नीचर बनता है, यह ईंधन के लिए जलायी जाती है। यह प्लाइवुड बनाने और पैनेलिंग के काम में भी आती है। इसमें नक्काशी भी बहुत अच्छी होती है। इससे खिलौने और चाय की केतलियां भी बनती हैं। कृषि संबंधी कई तरह के उपकरण तथा देसी राइफलों और बंदूकों में शहतूत की लकड़ी के बट इस्तेमाल होते हैं। शहतूत की लकड़ी को अच्छी तरह से पॉलिश किया जा सकता है। इसकी बनावट बहुत अच्छी होती और यह खुद में चमकदार होती है। इसका रंग हल्का पीला होता है और समय के साथ यह भूरे रंग में परिवर्तित हो जाती है।
शहतूत के पेड़ की लकड़ी न सिर्फ कीट प्रतिरोधी बल्कि मौसम प्रतिरोधी भी होती है। इसलिए इसमें खास मौसम में कोई गंध नहीं आती। यह ऊपर से नरम और अंदर से बेहद सख्त और मजबूत होती है। शहतूत के पेड़ की छाल से अच्छे किस्म का कागज बनता है। अंगकोर युग में बौद्ध मंदिरों में भिक्षु लोग शहतूत के पेड़ की छाल से कागज बनाने का काम करते थे। फिर इस तकनीकी को जापान में कोजो (शहतूत के पेड़ का तना) से दुनिया का सबसे पतला कागज कोजोशी बनता है। इस तरह हम देखें तो शहतूत के पेड़ का बहुत उपयोग है। यह सही मायनों में किसान मित्र पेड़ है। जो किसान शहतूत की खेती करना चाहते हैं, उनके लिए जून से जुलाई तक का मौसम इसके पौधे रोपने का सबसे बेहतर समय होता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर