विश्व को कोहिनूर हीरा देने वाला - गोलकुंडा किला

इस साल फरवरी में मैं तीन दिन के लिए हैदराबाद गया था। मेरा काम तो उम्मीद के विपरीत दो दिन में ही समाप्त हो गया, इसलिए मेरे पास एक दिन खाली था। मैंने सोचा की निजामों की नगरी की सैर करके अपने समय का सदुपयोग किया जाये, लेकिन फिर अचानक मुझे ख्याल आया कि सितम्बर से मार्च तक गोलकुंडा किला देखने का सबसे अच्छा समय है; क्योंकि तब न अधिक गर्मी होती है, न अधिक सर्दी और मौसम भी आनंदमय व खुशगवार होता है। गोलकुंडा किला पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। लिहाज़ा अगली सुबह 8 बजे मैंने अपने बैग में मिनरल वाटर की तीन बोतलों के साथ कुछ खाने का सामान भी पैक किया और आरामदायक कपड़े व जूते पहने, क्योंकि जब भी आप किसी किले को देखने के लिए जायें तो ऐसी तैयारी की एक खास वजह यह होती है कि किले में पैदल बहुत चलना पड़ता है। 
बहरहाल, अपने होटल से निकलने के दस मिनट बाद मैं हुसैन सागर झील पर था, जहां से गोलकुंडा किला लगभग 9 किमी के फासले पर है। मैं एक थ्री व्हीलर में सवार हो गया, रास्ते में ट्रैफिक कुछ खास न था, इसलिए मुझे अपनी मंजिल तक पहुंचने में 20-25 मिनट से अधिक का समय न लगा होगा। मैंने किले में प्रवेश करने के लिए टिकट लिया जो बहुत मामूली 5 रूपये का था (विदेशी पर्यटकों के लिए 100 रूपये का है) और एक गाइड भी हायर कर लिया। ऐतिहासिक इमारतों के बारे में जो बारीक व दिलचस्प जानकारियां गाइड से मिलती हैं वह किताबों से पढ़कर हासिल नहीं की जा सकतीं। 
गोलकुंडा किले का निर्माण 1600 में पूर्ण हुआ था और इसके विख्यात होने की एक वजह यह है कि एक समय में कोहिनूर को यहीं रखा गया था। कोहिनूर ही क्यों, संसार के जो कुछ सबसे मशहूर डायमंड हैं जैसे आइडल्स आई, होप डायमंड, दरिया-ए-नूर आदि यहीं की खदानों की देन हैं। एक अन्य दिलचस्प बात यह है कि अगर आप किले के सबसे निचले हिस्से में खड़े होकर ताली बजायेंगे तो उसकी गूंज किले के ऊपरी हिस्से में सुनायी देगी। दरअसल, गोलकुंडा किले का आर्किटेक्चर, लीजेंड, इतिहास व रहस्य इसके आकर्षण में चार चांद लगा देते हैं और शायद यही कारण है कि हैदराबाद में यह सबसे ज्यादा विजिट किया जाने वाला स्थल है। लेकिन मेरी दिलचस्पी यह जानने में थी कि इस किले का नाम गोलकुंडा क्यों पड़ा? मेरे गाइड ने जो कुछ बताया, उसका सार कुछ इस तरह से है। आज जिस जगह किला है वहां एक चरवाहे को एक मूर्ति मिली थी। इस खोज की जानकारी जल्द ही काकतिया राजा को मिल गई और उन्होंने आदेश दिया कि मूर्ति के चारों तरफ मिट्टी का किला बनाया जाये। यह किला ‘गोल्ला कोंडा’ के नाम से विख्यात हो गया, जिसका तेलगु भाषा में अर्थ है- चरवाहे की पहाड़ी। बाद में अत्याधिक प्रयोग से ‘गोल्ला कोंडा’ गोलकुंडा हो गया। 
काकतिया वंश के तहत गोलकुंडा किले का निर्माण 1143 में हुआ, लेकिन यह अपने रंग में आया 16वीं शताब्दी में कुतुब शाही वंश के शासन के दौरान यानी जब 1518 में कुली कुतुब शाह ने बहमानी सल्तनत से अलग होते हुए अपनी आज़ादी घोषित की। तब इस मिट्टी के किले का विस्तार होना शुरू हुआ और यह इतना विशाल किला बन गया कि इसकी बाहरी दीवार 10 किमी लम्बी थी। मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1686 में इस किले को जीतने का असफल प्रयास किया और फिर आखिरकार नौ माह की लम्बी घेराबंदी के बाद 1687 में मुगल इस किले को जीतने में कामयाब हो सके, जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किला बहुत मज़बूत था और उसे भेदना आसान न था।
गोलकुंडा किला विशाल स्ट्रक्चर है जोकि 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है, जिसकी सर्कमफरेंस 7 किमी है। इसका आर्किटेक्चर हिन्दू-इस्लामिक शैली का सुंदर संगम है। इसकी दीवारों में आठ दरवाज़े और 87 बुर्ज हैं जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई 50-60 फीट है। किले को मज़बूत करने के लिए एक के बाद एक तीन शक्तिशाली दीवारें हैं। दीवार की पहली लाइन में शहर है। दूसरी लाइन दोहरी दीवार है जो पहाड़ी को नीचे से घेरे हुए है, जिसके ऊपर दुर्ग खड़ा है। तीसरी लाइन पहाड़ी के और ऊपर है और दूसरी के भीतर बनाये हुए व प्राकृतिक बोल्डर हैं। मुख्य किले के अंदर रानियों, राजकुमारों आदि के लिए रहने के स्थान हैं।
यह शानदार किला अपने रॉयल अपार्टमेंट्स, परेड ग्राउंड्स, अनेक हॉलों व मस्जिदों के लिए विख्यात है। आठ दरवाज़ों में से फतेह दरवाज़ा मुख्य है, इसमें से ही विजयी मुगलों ने अंदर प्रवेश किया था। यह दरवाज़ा 13 फीट चौड़ा और 25 फीट लम्बा है, जोकि हाथियों से सुरक्षित रहने के लिए स्टील की कीलों से बनाया गया था। बालाहिसार दरवाज़ा नवाबी शैली में बनाया गया था और यह भी शानदार स्ट्रक्चर है। अब पर्यटक केवल पूर्वी दरवाज़े को ही देख सकते हैं। गोलकुंडा किला पहाड़ी के ऊपर स्थित है, जहां शानदार हवा आती है, जिससे शाही परिवारों के लिए गर्मियों में रहना आसान हो जाता था। किला देखने के बाद शाम को मैंने साउंड एंड लाइट शो देखी, जिसका टिकट 140 रूपये का आया। यह शो किले को अतीत के किस्सों से जीवंत कर देता है। किले का शानदार इतिहास समझने में मदद मिलती है। इस शो को किसी पर्यटक को मिस नहीं करना चाहिए। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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