क्रूर सास का पर्याय बनी ललिता पवार के अनसुने किस्से

बात 1942 की घटना से शुरू करते हैं। फिल्म ‘जंग-ए-आज़ादी’ की शूटिंग चल रही थी। एक सीन में भगवान दादा को फिल्म की लीड हीरोइन ललिता पवार को थप्पड़ मारना था। अपने किरदार में आवश्यकता से अधिक डूबे दादा ने ललिता के इतनी ज़ोर का थप्पड़ मारा कि उनके कान से खून बहने लगा और उनकी आंख के पास की नस फट गई। ललिता को बिना देरी किये अस्पताल ले जाया गया, लेकिन सही ईलाज तब भी न हो सका। गलत ईलाज के कारण उनके चेहरे का दाहिना हिस्सा कुछ वर्षों के लिए लकवाग्रस्त हो गया। ईलाज तीन वर्ष तक चला, जिस वजह से उनका फिल्मी करियर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। ललिता को लीड रोल मिलने बंद हो गये क्योंकि उनकी बाईं आंख हमेशा के लिए डैमेज हो गई थी और मजबूरन उन्हें चरित्र भूमिकाएं करनी पड़ीं, विशेषकर वैम्प या क्रूर सास की। एक इंटरव्यू में ललिता ने बताया था, ‘जंग-ए-आज़ादी की शूटिंग के दौरान एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना की वजह से मेरा लीड एक्टर के रूप में करियर खत्म हो गया था। सीन के मुताबिक मास्टर भगवान को मेरे चेहरे पर एक थप्पड़ मारना था, जो उन्होंने जोश में इतनी ज़ोर से मारा कि मेरे चेहरे पर लकवा हो गया और मेरी बाईं आंख हमेशा के लिए चली गई।’ 
फिल्मों में अभिनेत्री के सुंदर चेहरे का बहुत अधिक महत्व होता है। जब कोई हीरोइन ऐसी दिखायी दे कि जैसे वह एक आंख से कानी हो तो उसे रोल मिलना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाते हैं। इस स्थिति में कोई भी टूट कर हार मान सकता है। लेकिन ललिता अलग ही मिट्टी की बनी हुई थीं। उन्होंने न हार मानी और न अपने घर पर बैठीं। उन्होंने अपनी कमी को ही अपनी खूबी बना लिया। वह वैम्प व क्रूर सास की भूमिकाएं पर्दे पर निभाने लगीं। एक तो उनका दमदार अभिनय और दूसरा उनके चेहरे का असंतुलन, उन्हें पर्दे पर इस हद तक क्रूर दिखाता था कि वह क्रूरता का ही पर्याय बन गईं। अब जब किसी बहू को अपनी सास के जुल्म की कहानी सुनानी होती है तो उसके लिए ‘मेरी सास तो ललिता पवार’ है’ कहना ही पर्याप्त होता है। इस नेगेटिव धारणा से यह अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है कि ललिता कितनी प्रतिभाशाली व प्रभावी अदाकारा थीं। 
ललिता के अभिनय कौशल को एक अन्य मिसाल से बखूबी समझा जा सकता है। वह अपने किरदारों में इस दर्जा जान फूंक देती थीं कि वह हमेशा के लिए दर्शकों के जहन में बस जाते हैं। मसलन, जब भी ‘रामायण’ की दुष्ट चरित्र मंथरा का ज़िक्र आता है, जिसने भगवान राम को 14 बरस के लिए वनवास भिजवाया था तो आंखों के सामने एक ही महिला की तस्वीर आती है और वह हैं ललिता पवार। रामानंद सागर की ‘रामायण’ में ललिता ने ही मंथरा की भूमिका निभायी थी। उनका अभिनय इतना सशक्त था कि लोग उनसे ऩफरत भी करते हैं और उन्हें भूलते भी नहीं हैं। ललिता ने अपनी कमाल की अभिनय क्षमता के कारण हिंदी, मराठी व गुजराती में 700 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘श्री 420’, ‘दहेज’, ‘आंखें’, ‘नेताजी पालकर’, ‘अनाड़ी’ आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई सफल धारावाहिकों में भी काम किया। बहरहाल, पर्दे पर जहां ललिता की क्रूरता से उनके ‘रिश्तेदार व अन्य’ भयभीत रहते थे वहीं वास्तविक जीवन में स्वयं क्रूरता व त्रासदी का शिकार थीं। शूटिंग के दौरान उनकी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के बारे में हम ऊपर बता चुके हैं। अब उनके घरेलू जीवन पर भी एक नज़र डालते हैं। 
करियर में कामयाबी के बावजूद ललिता को निजी ज़िंदगी में किसी गैर से नहीं बल्कि अपनी ही छोटी बहन से धोखा मिला। यह 1930 के दशक के मध्य की बात है जब ललिता ने फिल्म निर्माता गणपतराव पवार से शादी कर ली थी। दोनों के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था। ललिता अपने पति की फिल्मों में भी काम करती थीं। इस बीच ललिता को अपने पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चला। गणपतराव ललिता की छोटी बहन से ही चक्कर चलाये हुए थे। आपत्ति करने पर गणपतराव खुलेआम अपने अफेयर का प्रदर्शन करने लगे। नतीजतन ललिता को अपने वैवाहिक जीवन पर विराम लगाना पड़ा। एक इंटरव्यू में ललिता ने बताया था, ‘अपनी शादी को बचाने के लिए हम छुट्टियां मनाने के लिए दिल्ली-आगरा गये। लेकिन साथ समय बिताने पर भी मेरे पति की दिल फेंक हरकतें कम न हुईं, उनमें कोई बदलाव न आया।’
बाद में ललिता ने एक अन्य फिल्म निर्माता राज कुमार गुप्ता से विवाह किया, जिससे एक बच्चा जय पवार (जो अब फिल्म निर्माता हैं) भी हुआ, लेकिन यह शादी भी सफल न रही। ललिता का जन्म 18 अप्रैल, 1916 को एक सम्पन्न रेशम व्यवसायी परिवार में हुआ था। जन्म पर उनका नाम अम्बा लक्ष्मण राव रखा गया, जिसे बाद में बदलकर ललिता कर दिया गया। ललिता को बचपन से ही अभिनय का शौक था और उन्होंने मात्र 9 साल की आयु में फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ से अपना करियर शुरू किया जो 1988 तक जारी रहा, जब उन्हें मुंह का कैंसर हो गया था। वह मायानगरी छोड़कर पुणे रहने लगी थीं, अकेले। उन्हें लगने लगा था कि फिल्मों में नेगेटिव किरदार निभाने के कारण उन्हें कैंसर के रूप में सज़ा मिली थी। एक दिन उनके बेटे ने उन्हें फोन किया, लेकिन फोन उठा नहीं, तो बेटा पुणे स्थित उनके बंगले पर पहुंचा, जहां जाकर मालूम हुआ कि ललिता ने तो तीन दिन पहले यानी 24 फरवरी, 1998 को अपनी आखिरी सांस ले ली थी।
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