बांग्लादेश का चिंताजनक घटनाक्रम

वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में लम्बे और खूनी संघर्ष के बाद पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से निजात मिली थी और यह एक आज़ाद देश बांग्लादेश बन गया था। शेख मुजीब-उर-रहमान उस समय बांग्लादेशियों के अति प्रिय नेता बन चुके थे। उनकी पार्टी अवामी लीग को बड़ा समर्थन मिला था। पाकिस्तान की सेना द्वारा बहुत अत्याचार करने के कारण लाखों ही लोग शहीद हो गये थे। वहां हर तरफ बड़ी गड़बड़ फैल गई थी। शेख ने पाकिस्तान की जेल से रिहाई के उपरांत बांग्लादेश पहुंच कर अपनी सूझ-बूझ और दृढ़ता के साथ इस नये बने देश को सम्भालने का पूरा यत्न किया लेकिन वर्ष 1975 में सेना के कुछ अधिकारियों द्वारा ब़गावत करके उनको और उनके परिवार के एक बड़े हिस्से को मार दिया गया था। शेख हसीना विदेश में होने के कारण बच गई थीं। उनकी दूसरी बहन भी बाहर होने के कारण इस हमले का शिकार नहीं हुई थी।
देश वापिस आने के बाद चाहे शेख हसीना ने अपनी पार्टी अवामी लीग की कमान संभाली थी लेकिन फैली बड़ी गड़बड़ और हुए नुकसान को संभालना उनके बस की बात नहीं थी। परन्तु उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा, जबकि कट्टर इस्लाम के आधार पर भी दूसरी कई पार्टियां वहां उठ खड़ी हुई थीं। उनमें बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी भी शामिल थी, जिसकी नेता खालिदा ज़िया शेख हसीना की कट्टर विरोधी समझी जाती रही हैं। समय-समय पर बने सेना के जनरलों ने भी देश के प्रशासन पर कब्ज़ा किए रखा। ़खालिदा ज़िया भी सेना के उस एक जरनल ज़िया-उल-रहमान की पत्नी हैं जिन्होंने लम्बे समय तक देश के प्रशासन पर कब्ज़ा बनाए रखा था, लेकिन पिछले 15 वर्षों से शेख हसीना देश की प्रधानमंत्री थीं। इस समय के दौरान जहां उन्होंने अपने विरोधियों के साथ सख्ती के साथ निपटा, वहीं प्रशासन पर भी अपनी सख्त पकड़ बनाई रखी। इसी कारण उनको तानाशाह प्रधानमंत्री भी कहा जाता रहा है। भारत द्वारा बांग्लादेश की आज़ादी में निभाई गई भूमिका के कारण शेख हसीना हमेशा भावुक तौर पर भारत के साथ जुड़ी रही हैं। भारत की समकालीन सरकारों ने भी समय-समय पर उनकी प्रत्येक ढंग-तरीके से सहायता की थी। नि:संदेह शेख हसीना को भारत की बड़ी सहयोगी माना जाता रहा है, चाहे कि वह अपने देश की आर्थिक मज़बूती के लिए चीन, अमरीका तथा अन्य योरुपीय देशों से भी बड़ी मदद प्राप्त करती रही हैं। 
शेख हसीना के कार्यकाल में जहां बांग्लादेश का विकास हुआ, वहीं उन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी के विरोधियों को भी कड़ी सज़ाएं प्रदान कीं। अब विद्यार्थियों के बड़े आन्दोलन का कारण भी आरक्षण की वह नीति बनी जिसके अंतर्गत बांग्लादेश के लिए लड़ाई लड़ने वाले तथा शहीदी प्राप्त करने वाले सेनानियों के परिवारों को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण जारी रखा गया है। इसके अतिरिक्त पहले ही 10 प्रतिशत आरक्षण 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पीड़ित हुई महिलाओं को तथा 40 प्रतिशत ज़िला स्तर पर गरीब वर्गों को आरक्षण दिया जाता था। सिर्फ 20 प्रतिशत नौकरियां ही मैरिट पर दी जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द करके 93 प्रतिशत नौकरियां मैरिट के आधार पर देने, 5 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनके परिवारों को आरक्षण देने तथा एक प्रतिशत आरक्षण विकलांगों और अल्पसंख्यकों को देने का फैसला किया था, परन्तु आरक्षण की नीति जारी रखी गई थी।
अब देश के बहुसंख्यक युवा इस नीति को जारी रखने के पक्ष में नहीं थे। समय-समय पर वे इसके विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे हैं। परन्तु इस बार आरक्षण की इस नीति को लेकर जून मास में विद्यार्थियों की ओर से शुरू किये गये इस आन्दोलन को भारी समर्थन मिला है। शेख हसीना इस नीति के जारी रहने के पक्ष में डटी रहीं, परन्तु इस कारण हुई प्रतिक्रिया पूरे देश में फैल गई, तथा यह आन्दोलन शांत नहीं हुआ।  पुलिस के साथ हो रही झड़पों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं, परन्तु इस आन्दोलन में विपक्षी पार्टियों ने भी अपना पूरा हिस्सा डाला। इस बात का अनुमान नहीं लगाया जा सकता था कि यह इनता भयानक रूप धारण कर लेगा और घटनाक्रम प्रशासन तथा सेना के लिए सम्भालना मुश्किल हो जाएगा। व्यापक स्तर पर हुई रक्तिम झड़पों के दृष्टिगत अंत में शेख हसीना को अपने पद से त्याग-पत्र देकर देश से निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा। पहले ही अनेक प्रकार की मुश्किलों में फंसे इस देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होने से हालात और भी खराब हो सकते हैं। हमारे देश के निकटतम पड़ोसी होने के कारण तथा अटूट रिश्तों में जुड़े रहने के कारण भारत के लिए भी बांग्लादेश का घटनाक्रम  बेहद चिन्ता वाला कहा जा सकता है, जिसके कारण सरकार को इस पड़ोसी देश के घटनाक्रम को देखते हुए बेहद सचेत होना पड़ेगा, क्योंकि बांग्लादेश की गड़बड़ पूरे क्षेत्र के देशों पर ही किसी न किसी रूप में प्रभाव डाल सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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