शतरंज का नया सितारा वंतिका अग्रवाल
हाल ही में बुडापेस्ट, हंगरी में खेले गये 45वें चेस ओलंपियाड में भारत ने न सिर्फ पुरुष वर्ग में बल्कि महिला वर्ग में भी ऐतिहासिक गोल्ड मैडल जीता था। महिला वर्ग में भारत की सफलता में चौथे बोर्ड पर वंतिका अग्रवाल की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। ‘ऐतिहासिक’ इस वजह से कहा कि चेस ओलंपियाड के दोनों वर्गों में भारत का यह पहला गोल्ड मैडल था और संयुक्त कामयाबी हासिल करने वाली भारत मात्र तीसरी टीम है। बहरहाल, बुडापेस्ट में वंतिका अक्सर खुद को दबाव की स्थिति में पाती थीं। भारतीय टीम ने सात गेम्स के लिए दूसरे बोर्ड पर काले मोहरों के साथ आर वैशाली को खिलाने का फैसला किया था, जोकि इतने बड़े व कड़े मुकाबले के टूर्नामैंट में कठिन कार्य था। जब वैशाली वह गेम्स हार रही थीं, तो टीम को मुश्किल से निकालने का सारा दारोमदार वंतिका के कंधों पर आ रहा था। फिर पोलैंड के विरुद्ध वंतिका भी दबाव में टूट गईं।
वंतिका बताती हैं, ‘जब पोलिश प्रतिद्वंदी के विरुद्ध मैं अपना मैच न जीत सकी तो मेरा वास्तव में दिल टूट गया था। मैं हार को बहुत गंभीरता से लेती हूं। अगर आपने वो मैच देखा हो तो मैं पूरी तरह से जीत रही थी। सामान्य दिनों में अगर मैं उस पोजीशन में होती, तो मैं 10 में से 10 बार जीतती। दबाव में बहुत कुछ गड़बड़ हो जाता है। लेकिन अगले दिन अमरीका के विरुद्ध टीम को सिर्फ ड्रा की ज़रूरत थी और मैंने अपना मैच जीत लिया।’ वंतिका के अनुसार, भारतीय टीम में आयु का अंतर था, लेकिन हर कोई एक-दूसरे से अच्छी तरह से कनेक्ट कर रहा था और आपस में बहुत अच्छी बात हो रही थी। अगर कोई मैच हार जाता तो हर कोई उसे मोटिवेट करता और कहता कि आज ख़राब दिन था तो क्या हुआ, कल अच्छा दिन होगा। वंतिका ने हाल ही में नई दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से अपनी शिक्षा पूरी की है। इस 21 वर्षीय खिलाड़ी ने शतरंज खेलना थोड़ा देर से आरंभ किया था। जिन खिलाड़ियों ने विश्व शतरंज में झंडे गाड़े हैं, उन्होंने आमतौर से बहुत कम आयु में शतरंज खेलना शुरू कर दिया था। वंतिका की मां संगीता अग्रवाल, जो चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेकिन अब फुल-टाइम अपनी बेटी के साथ टूर्नामेंट्स में ट्रेवल करती हैं, ने बताया, ‘जब मैं अपने बच्चों को दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप में लेकर गई, तो वंतिका साढ़े सात साल की थीं और मेरा बेटा विशेष साढ़े दस साल का था। मैंने वहां 3-4 साल के बच्चों को खेलते हुए देखा जो अच्छी शतरंज खेल रहे थे। मैंने सिर्फ विश्वनाथन आनंद का नाम सुना था और तब तक मैं यह समझती थी कि सिर्फ एडल्ट्स ही शतरंज खेलते हैं।’ उस समय संगीता को लगता था कि उनका बेटा उनकी बेटी से बेहतर खिलाड़ी है। इसे लेकर पारिवारिक मेज़ पर हल्का फुल्का मज़ाक भी हुआ करता था। संगीता बताती हैं, ‘मेरे बच्चे जब बड़े हो रहे थे तो मुझे लगता था कि मेरा बेटा सुपर इंटेलीजेंट है। उसकी इंटेलिजेंस व मेमोरी का लेवल एकदम अलग हटकर है। हम मज़ाक में वंतिका को ‘बुद्धू’ कहा करते थे, लेकिन वह प्रेरित रही।’
शुरू में वंतिका को प्रतियोगिताओं में अच्छे नतीजे न मिल सके, लेकिन उसने शतरंज में अपनी दिलचस्पी बनाये रखी और मेहनत करती रही। फिर जब एक कोच के साथ उसने प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया, तो स्थितियां बदलने लगीं। संगीता को याद है कि कैसे वंतिका के पास दिनभर कोच के मैसेज आते रहते थे। 1.0 पॉइंट्स 2.0 पॉइंट्स बन गये और नंबर बढ़ते ही गये कि मां बेटी के साथ टूर्नामैंट में गई। वहां अन्य बच्चों के पैरेंट्स संगीता को मुबारकबाद देने लगे कि उनकी बेटी प्रोडिजी (विलक्षण गुण-सम्पन्न) है। उस समय वंतिका अपने आयु वर्ग की बजाय 13 वर्ष के बच्चों के साथ खेलने लगी। जल्द ही 1200 रेटेड खिलाड़ी 1600 रेटेड खिलाड़ियों को हराने लगी, ओपन कैटेगिरी में, जिसमें लड़कों के साथ लड़कियां भी भाग ले सकती हैं। लेकिन वंतिका की रेटिंग अक्सर ऊपर नीचे होती रहती थी। एक पैटर्न उभरने लगा कि वंतिका अनेक मैच जीतती, लेकिन गोल्ड मैडल से दूर रह जाती। एशियन जूनियर में वह टाई ब्रेकर में गोल्ड हासिल न कर सकी। फिर एक अन्य प्रतियोगिता में उसके पॉइंट्स ज्यादा थे, लेकिन प्रतियोगिता कुल जीत पर आधारित थी, जिससे उसे गोल्ड मैडल न मिल सका। 2019 में वंतिका को 6 रजत पदक मिले थे।
जब 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण ग्लोबली स्पोर्ट्स पर विराम लग गया था, तो शतरंज ने ट्रेंड को तोड़ा और उसकी ख्याति बढ़ती चली गई। खिलाड़ी स्ट्रीमर बन गये और अचानक 1500 साल पुराने खेल में नई जान पड़ गई। महामारी के बाद ओवर-द-बोर्ड शतरंज ने धमाकेदार वापसी की। 2022 से चेस ओलम्पियाड 2024 तक वंतिका ने 28 प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया, संगीता के अनुसार। इस दौरान वह दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी डिग्री भी पूरी कर रही थीं और प्रतियोगिताओं की तैयारी भी कर रही थीं। संगीता के अनुसार, ‘अपने छठे सेमेस्टर की परीक्षाओं के दौरान वह टाटा स्टील चेस में भी हिस्सा ले रही थी। हमें मालूम था कि वह एक पेपर मिस करेगी, लेकिन अगर दो मिस करती तो सेमेस्टर दोबारा करना पड़ता। इसलिए मैंने उससे कहा कि वह बस में आते जाते अपनी पढ़ाई करे। उसने परीक्षा दी, जो पेपर मिस किया था, उसे बाद में दिया। दिल्ली की हर लड़की की तरह वह भी 99 प्रतिशत अंक लाने की कोशिश कर रही थी।’ डिग्री पूरी होने के बाद अब वह पूर्णत: शतरंज के लिए समर्पित है। अब अग्रवाल परिवार में सिर्फ शतरंज की बातें होती हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर