पूर्वोत्तर की जीवनधारा है ब्रह्मपुत्र नदी
ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इसका उद्गम तिब्बत में मानसरोवर के पास है। इसे तिब्बत में त्सांगपो कहा जाता है। भारत में यह अरुणाचल प्रदेश से प्रवेश करती है और असम होते हुए बांग्लादेश जाती है। अपनी इस यात्रा के दौरान ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर भारत की कई भौगोलिक संस्कृतियों और आर्थिक भूमिकाओं को रेखांकित करती है। अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर भारत का द्वार है। इसलिए यह अरुणाचल प्रदेश की ही नहीं समूचे पूर्वोत्तर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र को सियांग कहते हैं और जब यह अरुणाचल से असम में प्रवेश करती है, तो इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है। ब्रह्मपुत्र के रूप में ही यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है। ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर की जीवनधारा है। यह यहां के समाज और संस्कृति को गहरे तक प्रभावित करती है। ब्रह्मपुत्र के किनारे रहने वाली समस्त जातियां अपनी जीविका के साधनों के लिए ही नहीं बल्कि अपने सारे सांस्कृतिक क्रियाकलापों और कर्मकांडों के लिए ब्रह्मपुत्र पर निर्भर है। इनकी जिंदगी के हर पहलू पर यह नदी जीवन आधार की तरह शामिल रहती है।
पूर्वोत्तर के लोग खेती के लिए बड़े पैमाने पर ब्रह्मपुत्र के पानी पर निर्भर हैं। इसी नदी से यहां के लोगों को बड़े पैमाने पर मछलियां और पीने का पानी भी हासिल होता है। जीवन के साधनों की तरह ही पूर्वोत्तर के लोगों को अपनी कला, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों का आधार भी ब्रह्मपुत्र से हासिल होता है। नदियां हमेशा से इंसान के जीवन का मूल आधार रही हैं। दुनिया की सारी सभ्यताओं का जन्म नदियों के किनारे ही हुआ। चाहे भारत में सिंधु नदी घाटी की सभ्यता हो या मिस्र में नील नदी घाटी की सभ्यता। सब नदियों किनारे ही पनपी और फूली फली हैं। भारतीय संस्कृति में तो नदियों को मां कहकर संबोधित किया जाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे लिए नदियों का कितना महत्व है। जहां तक ब्रह्मपुत्र के महत्व की बात है तो 2900 किलोमीटर लंबी यह नदी हिमालय से निकलकर पूर्वोत्तर की घाटियों और मैदानों को समृद्ध बनाती है। असम के मैदानों में ब्रह्मपुत्र काफी चौड़ी हो जाती है, जिससे इसकी जलधारण की क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां जैसे-लोहित, दिहांग और दिबांग, अपनी जलराशि से इसे विशाल नद में परिवर्तित कर देती हैं।
हालांकि ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर में अकसर आने वाली बाढ़ का प्रमुख कारण भी बनती है, जो कई बार बहुत विनाशकारी होती है। लेकिन इसके अपने फायदे भी हैं। बाढ़ के चलते क्षेत्र में प्राकृतिक उर्वरता का संचार होता है। दरअसल बाढ़ का पानी अपने साथ तरह-तरह की मिट्टी और पोषक तत्व लेकर आता है, जिससे बाढ़ के बाद बाढ़ वाले क्षेत्र बेहद उपजाऊ हो जाते हैं। असम के मैदानी क्षेत्रों में चावल, सरसों के बड़े पैमाने पर होने वाली शानदार खेती का एक कारण बाढ़ के जरिये उर्वर होने वाली मिट्टी भी है। ब्रह्मपुत्र का सिर्फ पूर्वोत्तर के संदर्भ में ही महत्व नहीं है। समूचे भारत के संदर्भ में भी इसका बहुत महत्व है। असम और अरुणाचल प्रदेश की जनजातियां इस नदी में बहुत गहरे तक समायी हुई हैं। नदी किनारे रहने वाली विशेषकर मिसिमी, निशि और बोरो जातियां ब्रह्मपुत्र को बहुत पवित्र मानती हैं। उनके सभी धार्मिक और सांस्कृतिक क्रिया कलापों में ब्रह्मपुत्र का शामिल होना ज़रूरी है। असम में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध अंबुबासी मेला, कामाख्या मंदिर के परिसर में इसी नदी के तट पर लगता है।
इसी तरह माघ बिहू और रोंगाली बिहू की इंद्रधनुषी छटा भी इस ब्रह्मपुत्र के तट पर बिखरती है। जैसे उत्तर भारत में गंगा नदी की पूजा होती है, वैसे ही पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र की पूजा होती है। गंगा की तरह पूर्वोत्तर के लोग ब्रह्मपुत्र को मां का दर्जा देते हैं। यहां के लोगों के सुख, दुख में गाये जाने वाले गीतों, सुनायी जाने वाली कहानियों और ध्वनित होने वाली संगीत लहरियों में ब्रह्मपुत्र नदी धड़कती है। ब्रह्मपुत्र की पूजा केवल धार्मिक भावनाओं को ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण की भावना को भी दर्शाती है। ब्रह्मपुत्र नदी का इस्तेमाल पूर्वोत्तर में परिवहन के एक बड़े साधन के रूप में भी सदियों से हो रहा है। इसके चलते असम और अरुणाचल प्रदेश के लोग सदियों से आपस में व्यापार करते हैं और एक-दूसरे के यहां सहजता से आवागमन करते हैं। हाल के सालों में भारत सरकार ने इस नदी को एक बेहतर जलमार्ग के रूप में विकसित करने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरु की हैं।
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