कुम्भ का सबसे अहम अनुष्ठान है शाही स्नान

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र सांस्कृतिक पर्व कुम्भ में होने वाले शाही स्नान को सबसे अहम अनुष्ठान और सबसे पवित्र घटना माना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यह स्नान पापों से मुक्ति, आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। शाही स्नान को राजयोग स्नान भी कहा जाता है। शाही स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। इन मान्यताओं के कारण ही शाही स्नान का दिन कुम्भ मेले में सबसे संवेदनशील दिन भी होता है, क्योंकि इस दिन देशभर के 13 अखाड़ों के साधु संत शाही स्नान के लिए एकत्र होते हैं और कई बार किसी छोटे से विवाद पर उनके बीच आपस में खूनी झड़पें तक हो जाती हैं। यही कारण है कि अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज तक प्रशासन के लिए साधु-संतों का शाही स्नान सबसे ज्यादा चिंता का कारण बनता रहा है।
सन् 1820 में हरिद्वार कुम्भ मेले के दौरान हुई भारी भगदड़ और 1954 में इलाहाबाद महाकुम्भ के दौरान विभिन्न अखाड़ों के बीच हुई खूनी झड़पों के कारण कई साधु-संतों की मौत हो गई थी। 18वीं और 19वीं सदी में शाही स्नान के दौरान और भी कई खूनी संघर्ष की घटनाएं दर्ज हैं। यही वजह है कि अंग्रेजों ने 19वीं सदी से ही कुम्भ मेले के प्रबंधन के लिए विशेष व्यवस्थाएं करना शुरू की थीं। आज के समय में कुम्भ की भीड़ का प्रबंधन करने के लिए ड्रोन सर्विलांस, सीसीटीवी कैमरे, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और ग्रीन कॉरिडोर का उपयोग किया जाता है। आगामी 14 जनवरी 2025 से शुरू होने वाला प्रयागराज महाकुम्भ तो शाही स्नान की दृष्टि से इसलिए भी बेहद संवेदनशील है, क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सस्वती का मिलन होता है। इसलिए प्रयागराज के महाकुम्भ के दौरान शाही स्नान का कुछ अलग और विशेष महत्व है। माना जाता है कि संगम में शाही स्नान के दौरान डुबकी लगाने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि शाही स्नान समूचे कुम्भ आयोजन का एक सबसे विशिष्ट हिस्सा होता है। इस दिन विभिन्न अखाड़ों के साधु संत अपनी भव्य शोभा यात्रा के साथ शाही स्नान के लिए स्नान घाट पहुंचते हैं। वहां ये साधु संन्यासी अमृतमयी जल में डुबकी लगाते हैं। पहले कौन स्नान करे, इस बात को लेकर भी अखाड़ों में कई बार बहस छिड़ जाती है और कई बार यह खूनी झड़प तक पहुंच जाती है, इसलिए आजकल कई महीनों पहले से ही प्रशासन अखाड़ा परिषद के बीच बैठकर शांति से यह तय कर लेता है कि कौन अखाड़ा पहले स्नान  करेगा ताकि ऐन मौके पर किसी तरह की गफलत न हो। साधु-संतों के अखाड़ों को प्रशासन भी बड़ी विनम्रता से संभालता है; क्योंकि साधु संत हिंदू धर्म की परम्पराओं और सनातन संस्कृति के संरक्षक माने जाते हैं। इस दिन अलग-अलग अखाड़ों के साधु संत अपनी पारम्परिक वेशभूषा और धर्म-ध्वजा के साथ शाही स्नान के लिए पहुंचते हैं। शाही स्नान को भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय पर्व माना जाता है।
शाही स्नान का महत्व इसलिए भी बहुत है, क्योंकि कुम्भ का आयोजन ब्रह्मांडीय घटनाओं के आधार पर होता है। जब सूर्य, चंद्रमा और गुरु ग्रहों की स्थिति विशिष्ट होती है, उसी समय शाही स्नान आयोजित होता है। यह स्नान आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ जीवन में भी उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए शुभ माना जाता है। यही वजह है कि शाही स्नान के दिन लाखों, लाख भारतीय कुम्भ के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। आमतौर पर नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान के तहत डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि शैव अखाड़े के ये साधु संत हिंदू धर्म के अग्रिम रक्षक है, इसलिए आमतौर पर सबसे पहले स्नान का हक उन्हें ही दिया जाता है लेकिन यह हमेशा ज़रूरी नहीं होता। कई बार किसी दूसरे अखाड़े के संतों को भी पहली डुबकी लगाते देखा जाता है। साल 2017 में यूनेस्को ने कुम्भ मेले को मानवता की अमूर्त्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। यह मान्यता कुम्भ मेले की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली स्वीकृति है।
कुम्भ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जिसमें करोड़ों लोग शामिल होते हैं। यह भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और परंपराओं का अनूठा संगम है। कुम्भ में जाति, धर्म और सामाजिक स्तर विलीन हो जाते हैं। यह सभी को एक मंच पर लाता है। कुम्भ हजारों साल पुरानी परम्पराओं से जुड़ा है। यही वजह है कि इसमें शामिल होने के लिए और इसका अपनी आंखों से दर्शन करने के लिए हर कुम्भ में लाखों, लाख विदेशी सैलानी भी आते हैं। इसे कवर करने के लिए पूरी दुनिया से मीडिया की टीमें और कई हजार पत्रकार आते हैं। कुम्भ के आयोजन से आयोजन स्थलों के लोगों को आर्थिक लाभ होता है। कुल मिलाकर कुम्भ हर पहलू से मानवता की भलाई करता है। आज के समय कुम्भ मेला अपनी भव्यता, दिव्यता और धार्मिक आस्था के कारण सिर्फ भारतीय लोगों के बीच ही नहीं बल्कि विदेशियों के बीच भी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक बन गया है। हर कुम्भ मेले में दुनियाभर के विभिन्न धर्मों के लोग नज़दीक से इसकी आध्यात्मिक अनुभूति के लिए भारत आते हैं।
     अब तक कुम्भ जैसे विशिष्ट आयोजन पर हजारों डाक्यूमेंट्रीज बन चुकी हैं। अलग अलग देशों का मीडिया इसे अपने अपने एंगल से प्रस्तुत करता है और दुनियाभर के लोग हिंदुओं की इस आस्था को बेहद सम्मान से देखते हैं। कुम्भ मेले का चूंकि पुराणों में भी उल्लेख है, महाभारत तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी कुम्भ का बखान है, जिससे साफ  है कि यह सैकड़ों साल से चला आ रहा दुनिया का सबसे भव्यतम धार्मिक आयोजन है। **

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