खास ज्योतिषीय गणना के चलते प्रयागराज और हरिद्वार में बदला परंपरा का नियम

प्रयागराज, 10 फरवरी (मोहित सिंगला) - हरिद्वार और प्रयागराज जैसे पवित्र स्थलों पर कुंभ मेले का आयोजन आमतौर पर हर 12वें साल होता है। लेकिन विशेष खगोलीय स्थितियों के चलते यह कुंभ कई बार 11वें वर्ष में भी आयोजित किया गया है। हाल के वर्षों में ऐसा 2021 में हरिद्वार कुंभ और 1977 में प्रयागराज कुंभ के दौरान हुआ।

कुंभ मेले की तिथियां ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होती हैं। सूर्य जब मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब इसका आयोजन किया जाता है। 2021 में यही स्थिति बनी, जिसके चलते यह कुंभ 11वें वर्ष में आयोजित हुआ।
 प्रयागराज महाकुंभ मेंमकर राशि में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के साथ बृहस्पति का मेष राशि में होना मुख्य आधार माना जाता है। 1977 में यह योग 11वें वर्ष में ही बन गया था।जबकि 1965 और 1966 में प्रयागराज में लगातार दो वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन किया गया। यह अद्वितीय स्थिति थी, जिसका आधार भी ज्योतिषीय गणना ही था।  हरिद्वार कुंभ में ऐसी स्थिति 83 साल के अंतराल पर बनती है। इससे पहले 1938 में भी हरिद्वार में कुंभ 11वें वर्ष में आयोजित हुआ था।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र पुत्र जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे। चूंकि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर माना जाता है, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्षों में होता है। लेकिन जब खगोलीय गणना के अनुसार कुंभ योग 12 वर्षों से पहले बन जाए, तो मेला 11वें वर्ष में आयोजित किया जाता है।

धार्मिक और ज्योतिषीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि कुंभ का आयोजन धर्म और खगोलीय गणना का समन्वय है। हरिद्वार और प्रयागराज जैसे तीर्थस्थलों पर जब ग्रहों की विशेष स्थिति बनती है, तो कुंभ 11वें वर्ष में आयोजित करना आवश्यक हो जाता है।

हरिद्वार और प्रयागराज में 11वें वर्ष में कुंभ का आयोजन यह दर्शाता है कि धर्म, परंपरा और ज्योतिष का गहरा संबंध है। ऐसे आयोजन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह परंपरा अपनी अद्वितीयता को बनाए रखती है।

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