बच्चों के साथ अवकाश का करें सदुपयोग

परीक्षाएं समाप्त हो चुकी हैं। नया शिक्षण सत्र प्रारम्भ हो चुका है। बच्चों से अवकाश के समय आप उन्हें टी.वी. क्रिकेट या अन्य टाइम पास कार्यों की बजाय उनकी रुचि अनुसार कार्यों का प्रशिक्षण देकर उनकी प्रतिभा में चार चांद लगाने में यह समय उपयोग में ला सकते हैं जो उनके लिए स्वावलम्बी बनने में महत्वपूर्ण साबित होता। ऐसे ही कुछ टिप्स नीचे दिए जा रहे हैं, जिन पर आप गौर फरमा सकते हैं।
* हिंसक अंधविश्वास वाली कहानियां व कॉमिक्स पढ़ने से बच्चों को कोई लाभ नहीं पहुंचता, बल्कि उनका आदर्शवाद संकीर्ण होता है। अत: उन्हें महापुरुषों, विज्ञान, धार्मिक ग्रंथों से जुड़ी कहानियां व प्रेरक विचार पढ़ने को दें, ताकि उनका मानसिक विकास हो। आजकल बच्चे सस्ते में उपलब्ध साहित्य चुपचाप खरीदकर पढ़ने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं, जो उनके चरित्र पतन का कारण बनता है। इसका कारण माता-पिता का उन्हें अच्छा साहित्य उपलब्ध नहीं कराना है। अत: माता-पिता विचार करें कि उनके भविष्य के निर्माण के लिए आप खुद जवाबदेह हैं।
* कुछ बच्चों को मंचीय कला प्रदर्शन का शौक होता है जैसे मंच पर कविताएं पढ़ना, नाट्य प्रदर्शन, हास्य प्रतिकृति प्रदर्शन, अत: माता-पिता उन्हें उनकी रुचि अनुसार संबंधित विषय से जुड़ी प्रशिक्षण संस्थाओं में भेजकर उनकी कला को निखार सकते हैं। इससे बच्चों को दो तरह का लाभ पहुंचेगा। (1) आत्मबल बढ़ेगा। (2) कुछ कर दिखाने का जज्बा यानी खोजी प्रवृत्ति उत्पन्न होगी। वे बड़े स्थानों व भीड़ को सम्बोधित करने में हिचक नहीं दिखायेंगे वरना देखा गया है कि बच्चों की तरफ बचपन में ध्यान न देने पर बड़े होने के बाद कहीं संबोधित करने का मौका आने पर लोग पसीना-पसीना हो जाते हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आता है कि हम अपनी बात कहां से शुरू करें और यदि शुरू कर दिया तो बेतुके अंशों के साथ अपनी बात खत्म कर देते हैं। अच्छा वक्ता बनने के लिए आत्मबल का विकास होना आवश्यक होता है। अत: हर माता-पिता अपने बच्चों के हित में उनकी कला, उनकी योग्यता या गुणों को ध्यान दें और प्रतिभा का विकास करने में सहायता पहुंचाने में सहायक बनें।

—सुनील कुमार ‘सजल’