लोगों को ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले राज्य के 1196 उप स्वास्थ्य केन्द्र ‘भगवान भरोसे’

गढ़शंकर, 31 मई (धालीवाल) : राज्य में ज़मीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं का सत्य गांवों में उप-स्वास्थ्य केन्द्रों की हालत से आसानी से देखा जा सकता है, जो स्वयं नाकस प्रबन्धों वाली गम्भीर बीमारी का शिकार हैं। लोगों को ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने सहित मरीज़ के दुखों को प्राथमिक तौर पर काबू करने के उद्देश्य से प्रदेश में लगभग 1196 उप स्वास्थ्य केन्द्र ज़िला परिषद् के अन्तर्गत चल रहे हैं। पंचायत विभाग से सम्बन्धित इन उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का ज़िला स्तर पर समूचा प्रमुख प्रबन्धक अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर (ए.डी.सी.) द्वारा देखा जाता है। इन उप-स्वास्थ्य केन्द्रों में लापरवाही के प्रबन्धों वाली हालत की सत्यता कुछ उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का दौरा करने से ही मिल जाती है, जहां लोगों को भगवान का स्वरूप माने जाते डाक्टर (रूरल मैडीकल अधिकारी) के दर्शन सौभाग्यवश ही होते हैं। एक उप-स्वास्थ्य केन्द्र में एक रूरल मैडीकल अधिकारी, एक फार्मासिस्ट और एक सेवादार का पद स्वीकृत है, जिसके विपरीत इन स्वास्थ्य केन्द्रों में अनेक खाली पदों की मार झेल रहे हैं।रूरल मैडीकल अधिकारियों के 460 पद खाली : एकत्रित आंकड़ों के अनुसार उप-स्वास्थ्य केन्द्रों में कार्य करने वाले रूरल मैडीकल अधिकारियों (डॉक्टरों) के लगभग 460 पद खाली पड़े हैं। 2005 में 1186 रूरल मैडीकल अधिकारियों की भर्ती की गई थी जिनमें अब तक 735 ही कार्य कर रहे बताए जा रहे हैं। यह भी सामने आया है कि एम.बी.बी.एस. डॉक्टर उच्च शिक्षा के लिए तजुर्बे का कोट प्राप्त करने के उद्देश्य से ही उप-स्वास्थ्य केन्द्रों में नौकरी करने की आशा के साथ आते हैं व तय तजुर्बा पूरा करने के बाद रूरल मैडीकल अधिकारी उच्च शिक्षा की और अपना रुख कर रहे हैं, जिस कारण डाक्टरों की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। सेवादार भी देते हैं लोगों को स्वस्थ होने की दवाई : डाक्टरों की कमी के कारण कई स्थानों पर एक डाक्टर के पास तीन से अधिक उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का भी चार्ज है। डाक्टरों की कमी पर गैर-मौजूदगी का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य प्रबन्धों पर पड़ता है। कई स्वास्थ्य केन्द्रों में लोग कई-कई दिन चक्कर काट कर थक जाने से अपना मुंह मोड़ लेते हैं, क्योंकि वहां लोगों को डाक्टर के दर्शन भी नसीब नहीं होते। ऐसे हालातों में उप स्वास्थ्य केन्द्र में मौजूदा जहां फार्मासिस्ट कार्य चलाते हैं, वहां सेवादार भी अपने तजुर्बे के अनुसार लोगों को सिरर्दद, बुखार या मामूली स्वास्थ्य समस्याओं से लोगों को छुटकारा दिलाने के लिए दवाई देने का कार्य करते हैं। उप स्वास्थ्य केन्द्रों में स्वीपर की कमी को भी सेवादार द्वारा ही पूरा किया जा रहा है।
जागरूकता की कमी के कारण निराश लोग बेबस : इन उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का ग्रामीण स्तर पर प्रबंध के लिए सरपंच ज़िम्मेवार हैं। सरपंचों व अन्य पंचायतों के पदाधिकारीयों, गांव के लोगों में जागरुकता की इतनी कमी है कि वे इनका उप-स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रबन्धों में सुधार के लिए प्रयास करने से बेबस हैं। लोगों को इतना भी नहीं पता कि यदि स्वास्थ्य केन्द्र में लगातार डाक्टर नहीं आ रहा, दवाईयां नहीं मिल रहीं, या बंद स्वास्थ्य केन्द्र नित्य क्यों नहीं खुल रहा तो यह मामला उठाना कहां पर है? स्वास्थ्य सुविधाएं ठप्प होने जैसे ऐसे हालातों में निराश लोगों में बेबसी का आलम आम देखा जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के साथ नहीं दूर तक का भी नाता : पंचायत विभाग के ज़िला परिषद् अधीन आते इन उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का स्वास्थ्य विभाग के साथ दूर तक का भी नाता नहीं। पंचायत विभाग द्वारा ही इन स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए रूरल मैडीकल अधिकारियों के शेष स्टाफ की भर्ती की जाती है व वेतन आदि सहित दवाईयां आदि के समूचे प्रबन्ध किए जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग में समायोजित करने के लिए प्रोपोज़ल पूरा नहीं हुआ : पंचायत विभाग के अधीन आते राज्य के उप-स्वास्थ्य केन्द्रों को स्वास्थ्य विभाग में समायोजित करने के लिए 2-3 बार प्रोपोज़ल की गई थी, जो कभी भी पूरी नहीं हुई। इसका मुख्य कारण इन स्वास्थ्य केन्द्रों में कार्य करते रूरल मैडीकल अधिकारियों की यूनियन का विरोध बताया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के साथ जुड़े अधिकारियों का मानना है कि जब तक इन उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का प्रबन्ध स्वास्थ्य विभाग के अधीन नहीं आता, तब तक सुधार असम्भव है।