पत्रकारिता की भारी व्यस्तताओं के बावजूद संगीत से मोह कभी कम नहीं हुआ : डा. हमदर्द

जालन्धर, 28 जनवरी (जसपाल सिंह ) : पत्रकारिता की भारी व्यस्तताओं के बावजूद डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने न केवल संगीत के साथ अपना मोह बरकरार रखा है, बल्कि अपने संगीतमय सफर को भी जारी रखते हुए अपनी एक अन्य एलबम ‘रूहानी रमज़ां’ संगीत प्रेमियों की झोली में डाली। यह उनकी 11वीं संगीतक एलबम है, जिसमें उन्होंने सिरमौर सूफी शायर बाबा बुल्ले शाह की 8 काफीयों को अपनी सोज़मयी आवाज़ देकर उनको अमर कर दिया है। यह संगीत एलबम उनकी गायकी का शिखर है और इसमें उनके द्वारा अपने विलक्ष्ण अंदाज़ में गाई गईं काफीयां उनके परिपक्व गायक होने का प्रमाण हैं। प्रसिद्ध संगीतकार गुरदीप सिंह की स्वरों से शृंगारी यह एलबम के.एल. सहगम मैमोरियल ट्रस्ट द्वारा सहगल मैमोरियल हाल में करवाए गए एक प्रभावशाली समारोह में प्रमुख शखिस्यतों द्वारा भिन्न-भिन्न चरणों में रिलीज़ की गईं। हालांकि डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द एससे पहले भी अपनी एलबम ‘कसुंभड़ा’ के ज़रिये बाबा बुल्ले शाह की रचनाओं को अपनी आवाज़ देकर अमर कर चुके हैं, परन्तु उनका मानना है कि इस एलबम के बीच की काफीयां उनके मन के बहुत नज़दीक हैं और इनको गाकर उन्हें एक अजीब तरह के सकून और आनंद का एहसास हुआ है। उन्होंने कहा कि बाबा बुल्ले शाह लोगों के मनों की तज़र्मानी करने वाला एक ऐसा शायर है, जो ऩफरतों को मिटाकर समूची मानवता को प्यार और मुहब्बत का प़ैगाम देता है। उनकी रचनाएं जितनी उस समय सार्थक थीं, आज भी मानवीय जीवन में उतनी ही विशेषता रखती हैं। इस अवसर पर डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द की सोज़मयी आवाज़ में गाई गईं काफीयां और शहर के भिन्न-भिन्न प्रमुख कालेजों की छात्राओं द्वारा भावपूर्ण कोरियोग्राफियां भी प्रस्तुत की गईं। छात्राओं की कलात्मक प्रस्तुति की हर व्यक्ति प्रशंसा कर रहा था और यह कोरियोग्राफियां इतनी प्रभावशाली थीं कि संगीत प्रेमी बार-बार तालियां बजाने के लिए मज़बूर हो रहे थे। मंच संचालन मैडम कुलविन्द्र दीप कौर और संगत राम द्वारा किया गया। इससे पूर्व के.एल. सहगल मैमोरियल ट्रस्ट के प्रधान सुखदेव राज के नेतृत्व में समूह पदाधिकारियों द्वारा डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द को पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया गया। इस अवसर पर विभिन्न प्रवक्ताओं ने डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द द्वारा पंजाबी पत्रकारिता और संगीत के क्षेत्र में डाले जा रहे बहुमूल्य योगदान की भरपूर प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने न केवल पंजाबी पत्रकारिता के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं बल्कि अब संगीत के क्षेत्र में भी नई उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने पटड़ी से हटकर पंजाबी गीत-संगीत को नया मुकाम दिया है। उनकी गायकी दिलों को सकून देने वाली है और सचमुच रूहानी रमज़ां की बात करती हुई संगीत प्रेमियों को रूहानीयत के साथ जोड़ती है। उनका यह प्रयास पंजाब की अमीर विरासत और संस्कृति को संभालने तथा नई पीढ़ी तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।संगीत की परम्परा को आगे बढ़ा रहा है के.एल. सहगल मैमोरियल ट्रस्ट डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने के.एल. सहगल मैमोरियल ट्रस्ट के समूह प्रबंधकों का धन्यवाद करते हुए कहा कि यह उनके लिए बड़े सम्मान की बात है कि आज वह अपनी 11वीं एलबम सहगल मैमोरियल हाल में रिलीज़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह गत लंबे समय से संस्था के साथ जुड़े हुए हैं और उनकी हमेशा कोशिश रही है कि संस्था की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ किया जाए। उन्होंने संस्था को शहर की अमीर परम्परा का केन्द्र बताते हुए कहा कि प्रसिद्ध गायक के.एल. सहगल द्वारा अपना अंतिम समय भी इसी धरती पर बिताया गया था और आज उनके नाम पर चल रही यह संस्था अपनी संगीतमय परम्परा को बाखूबी आगे बढ़ा रही है। तेरे गीतां ने जगाए दीवे हनेरा नूरो-नूर हो गया.... समारोह में प्रसिद्ध साहित्यकार डा. सरबजीत कौर संधावालीया ने डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द की गायकी के संबंध में अपनी भावनाओं को एक कविता (रूहानी असीस) के माध्यम से प्रस्तुत करते हुये कहा कि डा. हमदर्द ने पंजाबी संगीत के क्षेत्र में एक नई पहचान बनाई है और उनकी गायकी आज के कलाकारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है। अपनी कविता में जब वह डा. हमदर्द की गायकी बारे कहती हैं कि ‘तेरे गीतां ने जगाए दीवे हनेरा नूरो-नूर हो गिया’ तो वह डा. हमदर्द की गायकी की प्रशंसा करती हुईं नए गायकों को साफ-सुथरी और सांस्कृतिक गायकी के साथ जुड़ने का आह्वान भी करती हैं। संगीत हमेशा मेरे अंग-संग रहा : डा. हमदर्द संगीत एलबम ‘रूहानी रमज़ां’ के रिलीज़ समारोह को संबोधित करते हुए डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने कहा कि संगीत हमेशा उनके अंग-संग रहा है और बचपन का यह शौक कब उनकी रूह की खुराक बन गया, उनको पता ही नहीं लगा और आज उनकी तमन्ना है कि वह सारी ज़िन्दगी संगीत के साथ जुड़े रहें तथा ज़िन्दगी के सफर में संगीत उनका पक्का साथी बना रहे। उन्होंने कहा कि आज का दिन उनके लिए बेहद खास और संतुष्टी वाला है कि वह संगीत के क्षेत्र में अपना छोटा सा योगदान डालने में समर्थ हो सके हैं। उन्होंने कहा कि जब से मैंने होश संभाली है, संगीत हमेशा उनके साथ रहा है और जैसे-जैसे वह बड़े होते गए संगीत उनके मन को और भी सकून देता गया। उन्होंने कहा कि वह स्वयं को बहुत खुशकिस्मत समझते हैं कि कुदरत ने उन पर संगीत की अपार कृपा की है और पत्रकारिता जैसे व्यस्ततम पेशे के बावजूद वह अपने संगीत के शौक को कायम रख सके हैं। उन्होंने कहा कि वह स्वयं हैरान हैं कि पत्रकारिता की व्यस्तताएं और कड़ी ज़िन्दगी के बावजूद संगीत का झरना उनके अंदर किस तरह बहता रहा और उनके दिल के अंदर संगीत लगातार धड़कता रहा। उन्होंने सांसारिक धन-दौलत की अपेक्षा संगीत की अमीरी को सबसे अहम बताते हुए कहा कि आज वह कुदरत की बख्शीश के कारण स्वयं को सबसे धनी व्यक्ति समझते हैं। डा. हमदर्द ने कहा कि उनको रियाज़ करने के लिए कम ही समय मिलता है परन्तु फिर भी उनकी हमेशा यही तमन्ना रही है कि वह सारी ज़िन्दगी संगीत के साथ जुड़े रहें, क्योंकि उत्साह जनक ज़िन्दगी जीने के लिए अच्छा संगीत बहुत ज़रूरी है। डा. हमदर्द ने कहा कि आज उन्हें इस बात की भी संतुष्टि है कि वह न केवल अपने बचपन के शौक को आगे बढ़ा सके हैं, बल्कि अपने दिल के जज़्बात को संगीत के माध्यम से अपने दोस्तों, प्रेमियों और अन्य संगीत प्रेमियों के साथ सांझा कर सकने में भी समर्थ हुए हैं। वर्ष 2003 में उन्होंने अपनी पहली एलबम ‘जज़्बात’ में भी अपनी यही भावनाएं व्यक्त की थीं। साहित्य में उनकी रुचि हमेशा बनी रही है और उन्होंने उर्दू, हिन्दी, अंग्रेज़ी और पंजाबी के साहित्य को बहुत बारीकी से पढ़ने की कोशिश की है। उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने जो भी गाया है, उनके लिए गीतों, गज़लों, काफीयों और अन्य रचनाओं का चयन उन्होंने स्वयं किया है और यह वे रचनाएं हैं, जो उनके दिल के बहुत समीप हैं। उन्होंने इन रचनाओं को महान शायरों द्वारा चुने हुए मोती बताते हुए कहा कि इनको एक संगीतमय माला में पिरो कर उन्हें बेहद खुशी हुई है। उन्होंने कहा कि बाबा बुल्ले शाह और शाह हुसैन उनके पसंदीदा शायर हैं और नई एलबम में भी उन्होंने बाबा बुल्ले शाह की उन काफीयों को प्रस्तुत करने की कोशिश की है, जो उन्हें ज़िन्दगी के ज्यादा करीब लगी हैं। उन्होंने प्रो. मोहन सिंह, अमृता प्रीतम, फैज़ अहमद फैज़, जां निसार, फिराक गोरखपुरी, अब्दुल हमीद अदम, प्रवीन शाकिर और अन्य प्रसिद्ध उस्ताद शायरों की रचनाओं को भी संगीत प्रेमियों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। अपनी ‘लोक गीत’ एलबम का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें उन्होंने प्रसिद्ध लोक गायिका सुरिन्द्र कौर और आशा सिंह मस्ताना जैसे गायकों द्वारा गाए गीतों को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत करने की कोशिश की थी।