टपकेश्वर महादेव जहां शिवलिंग पर टपकता था दूध

उत्तराचंल की राजधानी देहरादून में नगर से साढ़े पांच किलोमीटर की दूरी पर है गढ़ी कैंट स्थित प्राचीन टपकेश्वर महादेव मन्दिर। कहा जाता है कि यहां स्थित शिवलिंग पर प्राचीन काल में पर्वतों से दूध टपकता था। यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था व पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। शिवालिक पर्वतमाला में एक मौसमी झरने के निकट गुफा में स्थित टपकेश्वर महादेव मन्दिर में सावन के महीने में और शिवरात्रि के पर्व पर, काफी भीड़-भाड़ रहती है। मुख्य मन्दिर की ओर जाने के लिये लगभग एक सौ सीढ़ियां उतरना पड़ती हैं। जिस स्थान से सीढ़ियां उतरना शुरू होती हैं, वहां एक विशाल पीपल वृक्ष इस स्थान की प्राचीनता के मूक साक्षी के रूप में विद्यमान है। इसी जगह स्थित है दुर्गा मन्दिर व शाकुम्भरी देवी मन्दिर। शाकुम्भरी देवी मन्दिर के पुजारी जी ने बताया कि यह स्थान महाभारतकालीन है। इन्हीं मन्दिरों के आसपास प्रसाद व खेल-खिलौनों की दुकानें भी लगी हुई थीं। इस स्थान पर सीढ़ियां उतरकर हम मुख्य मन्दिर की ओर बढ़े। इन सीढ़ियों के दायें बायें बरामदे बने हुए हैं। इनमें श्रद्धालुओं द्वारा भण्डारे व प्रसाद वितरण का काम होता है। इन सीढ़ियों के सामने स्थित है भगवान शिव का मन्दिर ! इस स्थान से रास्ता दो तरफ जाता है । बायीं ओर जिधर स्थित है टपकेश्वर महादेव। दायीं ओर जहां एक नदी पार करते ही सामने जा पहुंचते हैं, यहां है भद्रकाली सिद्ध पीठ, हनुमान मन्दिर आदि। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि इस पर्वतमाला का नाम शिवालिक पर्वतमाला है। यहां बहने वाली नदी टोस नदी कहलाती है। दो पर्वतों के बीच इस घाटी में पहुंचकर यहां का सौन्दर्य निहार, सारी थकावट छू-मन्तर हो जाती है। हम सबसे पहले दायीं ओर टपकेश्वर महादेव की ओर बढ़े। वर्षा की रिमझिम बून्दों के बीच, बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारों के साथ हम मन्दिर के द्वार तक पहुंचे। मन्दिर में प्रवेश से पहले जूते चप्पलों के रखने का स्थान बना है। यहीं पर हाथ धोने के लिए पानी की व्यवस्था भी है। एक पर्वत के नीचे गुफानुमा प्राकृतिक मन्दिर है टपकेश्वर महादेव। मन्दिर के बाहर प्रवेश पर गणेश जी की छोटी मूर्ति है। इससे आगे गुफा में दायें बायें छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं। इनमें हैं गौरीशंकर, ओमकारेश्वर, चमकेश्वर भगवान की प्रतिमाएं। अब हम पहुंच जाते हैं टपकेश्वर महादेव के सामने। यहां एक शिवलिंग स्थापित है। पुजारी ने बताया कि इस शिवलिंग के ऊपर पर्वत से किसी समय दूध की बून्दें टपकती थीं। कालान्तर में पानी टपकने लगा जिससे शिवलिंग के ऊपर की तरफ गड्ढा बन गया जो आज भी देखा जा सकता है। बाद में गुफा के अंदर उस छेद को बंद कर दिया गया जहां से पानी टपकता था। (प्राकृतिक रूप से गुफा में पानी टकपने के ऐसे जीवन्त दृश्य आज भी यहां सहस्रधारा क्षेत्र की गुफाओं में देखे जा सकते हैं।) दूध या पानी टपकने के कारण ही इस मन्दिर का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा। मन्दिर की गुफा में सीधे खड़े प्रवेश करना कठिन है। झुककर ही चलना पड़ता है। बस मुख्य शिवलिंग के आसपास ही सीधा खड़ा हुआ जा सकता है। आगे सीढ़ी उतरते हुए हम मन्दिर से नीचे एक बरामदे में पहुंच जाते हैं। बरामदे से फिर दूसरी ओर की सीढ़ियां चढ़ते हैं तो स्वयं को टपकेश्वर मन्दिर से बाहर पाते हैं। अब हम दायीं ओर बढ़े तो बरसात के कारण पर्वतों से गिरे पत्थरों, पेड़ों के कारण बन्द रास्ते को पत्थरों पर चढ़कर ही पार किया जा सका है। सच, आस्था क्या है, यह हमें यहां पर देखने को मिला जब एक वृद्ध महिला को इन पत्थरों पर से रास्ता पार करते हुए देखा। दायीं ओर भद्रकाली शक्ति पीठ है और हनुमान मन्दिर आदि हैं। यह मन्दिर भी पर्वत के नीचे गुफा जैसे स्थान पर ही है। 

—अनिल शर्मा ‘अनिल’