दूसरा हमला

विश्व भर में पिछला सारा वर्ष कोरोना महामारी का हमला जारी रहा है। इस दौरान इस पर काबू पाने के लिए भिन्न-भिन्न देशों के वैज्ञानिकों की ओर से टीके तैयार करने हेतु भरपूर परिश्रम किया गया। यह सन्तोषजनक बात अवश्य कही जा सकती है कि इनमें से बहुत-सी कम्पनियों के टीके प्रभावशाली सिद्ध हो रहे हैं। इन्हें बड़े स्तर पर लगाना भी शुरू कर दिया गया है। कई देशों में पूरी योजनाबंदी के साथ लागू की गई सावधानियों के दृष्टिगत यह बीमारी घटते हुये दिखाई दी जिससे लोगों में उत्साह भी बना रहा है परन्तु एक वर्ष तक इस बीमारी के चलते रहने के कारण विश्व भर की आर्थिकता भी बड़े स्तर पर नष्ट होते हुये दिखाई दी है। इस चक्की में ़गरीब एवं आम लोग पिसते रहे हैं। बेरोज़गारी में निरन्तर हुई वृद्धि के कारण एक प्रकार से ज़िन्दगी की धड़कन ही खो गई प्रतीत होती रही है। वैसे यदि देश एवं विदेशों में बड़ी संख्या में लोग इस महामारी का शिकार हुये हैं तो अब तक इनमें से बड़ी संख्या में लोग ठीक भी होते रहे हैं। 
परन्तु अब इस बीमारी के दूसरे प्रहार ने एक बार फिर चिन्ता पैदा कर दी है। पहले बड़े झटके के बाद सरकारें एवं लोग उभरे भी नहीं थे कि दूसरा झटका मिलना शुरू हो गया है। एक बड़ी चिन्ताजनक बात यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत इस बीमारी के प्रभाव के कारण कभी 8वें स्थान पर था परन्तु आज यह दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। मरीजों की संख्या के अनुसार इसने दूसरे सबसे बड़े प्रभावित देश ब्राज़ील को भी पछाड़ दिया है। अब केवल अमरीका ही बीमारों एवं मौतों की संख्या में भारत से आगे है। लम्बी होती जा रही इस बीमारी ने लोगों को इसके साथ ही जीना अवश्य सिखा दिया है। पहले की दहशत अब भय में बदल गई प्रतीत होती है। पहले परीक्षण बहुत-सी शिक्षाएं दे सकते हैं। एक बात सिद्ध हो गई है कि इसकी दहशत के कारण ज़िन्दगी की सक्रियता नहीं रोकी जा सकती। बीमारी के डर से भी बड़ा डर भुखमरी एवं रसातल की ओर बढ़ती जा रही आर्थिकता का है। इसलिए यही परिणाम निकाला गया है कि अधिकाधिक सावधानियां बरती जाएं परन्तु ज़िन्दगी के पथ पर चली गाड़ी को अवश्य चलते रहने दिया जाये। पहले भारत में तैयार किये जा रहे एक राष्ट्रीय एवं दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी के टीके क्रमिक रूप से अब तक 10 करोड़ से अधिक लोगों को लगाये जा चुके हैं। एक अच्छी ़खबर यह भी है कि काफी समय पूर्व रूस की ओर से तैयार किये गये स्पूतनिक-वी टीके को भी भारत में प्रयोग करने की योजना बनाई गई है। आगामी महीनों में इसकी 10 करोड़ से अधिक खुराकें देश में उपलब्ध हो जाएंगी। देश में अब तक बड़े नियोजित ढंग से टीकाकरण की प्रक्रिया चली है परन्तु इसके साथ ही टीकों की कमी पैदा होने की आशंका भी बन गई है। इस संबंध में केन्द्र एवं प्रदेश सरकारों को प्रत्येक सम्भव ढंग से बड़ी योजनाबंदी करने की आवश्यकता है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘टीका उत्सव’ मनाने की योजना की घोषणा की है। इसके अन्तर्गत प्रतिदिन 50 लाख लोगों को टीके लगाये जाएंगे। इसके शुरू होने के पहले दिन 30 लाख टीके लगाये गये। इस अभियान को एक चुनौती के रूप में लिया जाना चाहिए क्योंकि लोगों का बचाव टीकाकरण में ही है परन्तु इस बीमारी के हुये दूसरे हमले ने उन राज्यों की चिन्ताओं को अवश्य बढ़ा दिया है जहां इस बीमारी का प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। 
महाराष्ट्र एवं खास तौर पर मुम्बई में इसके निरन्तर तेज़ी से बढ़ते जाने के बाद वहां की सरकार एक बार फिर कठोर तालाबन्दी की ओर बढ़ते हुये दिखाई दी है परन्तु इसके साथ ही यह यत्न भी हर सम्भव ढंग से किया जाना ज़रूरी है कि इससे पूर्व की भांति आम एवं ़गरीब लोगों की ज़िन्दगी बिल्कुल पिस कर न रह जाये। उनकी रोटी एवं रोज़ी की व्यवस्था हर ढंग से किया जाना ज़रूरी है। इस समय यह किसी भी सरकार का सबसे बड़ा कर्त्तव्य बन जाता है। अन्य कई प्रदेशों की भांति पंजाब में भी इसका हमला तेज हुआ है जिसके लिए प्रदेश सरकार को और भी सचेत रूप में सावधानियां बरतने की आवश्यकता होगी। पिछले दिनों पांच प्रदेशों के विधानसभा चुनावों के दौरान जिस प्रकार लोगों की स्थान-स्थान पर भीड़ देखने को मिली, उससे भी इस बीमारी के फैलने का ़खतरा बना हुआ दिखाई देता है। पश्चिम बंगाल में अभी भी चुनावों के चार पड़ाव शेष रहते हैं। इसके साथ-साथ धार्मिक स्थानों पर बड़ी संख्या में जमा हुये लोगों को देख कर भी यही प्रतीत होता है कि आगामी समय में यह बीमारी ला-इलाज बन जाएगी तथा स्थिति नियंत्रण में नहीं रहेगी। इस संबंध में भी केन्द्र एवं प्रदेश सरकारों को सचेत रूप में कठोर एवं पुख्ता योजनाबंदी करने की आवश्यकता होगी तथा अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर सक्रियता दिखानी होगी ताकि इस दूसरे हमले का सचेत रूप में साहस एवं दृढ़ता के साथ मुकाबला किया जा सके। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द