धर्मांतरण के बढ़ते मामले नि:संदेह चिंता का विषय

देश में धर्म परिवर्तन के मामले आए दिन खबरों में बने रहते हैं। धर्म परिवर्तन के इन मामलों में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने से लेकर विवाह के लिए धर्म परिवर्तन कराने का मामला आम है। देश में जिस प्रकार जबरन आए दिन धर्म परिवर्तन के मामले सामने आ रहे हैं, वह चिंता का विषय बना हुआ है। यह सही है कि कई सदी पहले मुगल शासन और फिर ब्रिटिश राज के दौरान भारत का जनसांख्यिकीय स्वरूप बदला है। बदलाव का सिलसिला आजादी के बाद भी थम नहीं सका और इस सबके परिणामस्वरूप हिंदू दर्शन से प्रेरित देश के आत्मिक स्वरूप पर आंच आई है।
बीते सितंबर में पंजाब के जिले अमृतसर के एक गांव में ईसाई मिशनरियों का एक कार्यक्रम चल रहा था, जहां कुछ लोग पहुंचे और कार्यक्त्रम का विरोध करने लगे। दो समुदायों के कुछ लोगों के बीच झड़प भी हुई और पुलिस ने 150 लोगों के खिलाफ  मामला दर्ज किया। अकाल तख्त के जत्थेदार ने इसका कड़ा विरोध किया। पंजाब, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर पूर्वांचल के आठ राज्य, उत्तराखंड के कई क्षेत्र, तमिलनाडू और आंध्र ईसाई धर्मांतरण के मुख्य केंद्र बने हैं। 
एसजीपीसी व श्री अकाल तख्त साहिब प्रबंधन ने मतांतरण रोकने के लिए 150 धर्म प्रचार कमेटियों का गठन किया है। इसी तरह राष्ट्रीय सिख संगत ने भी कहा है कि वह मतांतरण रोकने के लिए फिर से अभियान चलाएगी और अखिल भारतीय हिंदू महासभा भी लोगों को जागरूक करने जा रही है। यह समय व मौके की ज़रूरत भी है। पंजाब में ऐसा काफी पहले से होता आ रहा है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि धर्मांतरण क्या है? धर्मांतरण कब आपत्तिजनक हो जाता है? धर्म परिवर्तन के बारे में संविधान क्या कहता है? इसको लेकर भारत में क्या कानून है और अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसके बारे में कानूनी प्रक्त्रिया क्या है? जानकारों के मुताबिक जो लोग मत परिवर्तन करते हैं, उनमें ज्यादातर आर्थिक तंगी का शिकार होते हैं और वे चाहते-न चाहते हुए भी ऐसा करते हैं। जो लोग मतांतरण के लिए प्रेरित कर रहे हैं, वे किस तरह इन अभावग्रस्त लोगों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं, यह देखा जाना चाहिए। जाहिर है कि उन्हें पैसा व अन्य संसाधन मुहैया करवाए जा रहे हैं। इसलिए जिस धर्म या पंथ के लोग मतांतरित हो रहे हैं, उनके लिए यह चिंता के साथ-साथ चिंतन का भी विषय है। 
यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट की मानें तो अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 600-700 चर्च बन चुके हैं, इनमें से 70 फीसदी पिछले पांच वर्षों में ही बने हैं। धर्मांतरण के बढ़ते मामले को देखते हुए वर्ष 2017 में रघुवर सरकार ने झारखंड रिलिजियस फ्रीडम बिल 2017 पास किया था. जिसके तहत भोले-भाले आदिवासियों को ईसाई धर्म में बदलने वाली एनजीओ संस्थाओं पर सख्त कार्रवाई करने की बात कही गई थी। इस बिल को लाने के बाद धर्मांतरण के मामले में कमी जरूर आई लेकिन अभी भी रांची, खूंटी, लोहरडागा और गुमला जैसे क्षेत्रों में धर्मांतरण के मामले देखने को मिल रहे हैं।
भारत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपनाने का अधिकार है और वह किसी भी समय अपना धर्म बदल सकता है। मान लीजिए, अगर कोई सिख है और हिंदू धर्म अपनाना चाहता है, या ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम में जाना चाहता है, तो एक निश्चित प्रक्त्रिया और शिष्टाचार का पालन करके धर्म को बदला जा सकता है, इसे धर्मांतरण कहा जाता है। धर्म परिवर्तन करने के दो तरीके हैं— पहला कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए और दूसरा धार्मिक स्थल पर जाकर उनके निर्धारित शिष्टाचार का पालन करते हुए। अगर कोई अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे अपने जिले के कलेक्टर या किसी अन्य संबंधित अधिकारी को सूचना देनी होगा। 
धर्म बदलने के बाद धर्म गजट कार्यालय में अपना नया नाम और धर्म दर्ज कराना होता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 नागरिकों को अपना धर्म चुनने और प्रचार करने का अधिकार देते हैं। इसका मतलब है कि कोई भी अपनी मर्जी से कोई भी धर्म स्वीकार और उसका पालन कर सकता है। आईपीसी की धारा 295-ए और 298 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को डरा धमकाकर, बहला-फुसलाकर या धोखे से धर्म परिवर्तन कराता है तो उसे एक साल की कैद की सजा हो सकती है। 2011 में अपने एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के धर्म को बदलने का अधिकार नहीं देता है और प्रचार का मतलब कभी भी धर्मांतरण नहीं हो सकता। वर्तमान में केन्द्र में धर्मांतरण विरोधी या धर्म परिवर्तन के खिलाफ  कोई कानून नहीं है। हां, समय-समय पर इसे लेकर कानून बनाने की मांग अवश्य होती रही है। 
भारत के 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद है। यह कानून पहली बार 1967 में ओडिशा में बनाया गया था। उसके बाद इसे गुजरात, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया। हरियाणा विधानसभा द्वारा भी धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया जा चुका है, लेकिन राष्ट्रपति की मुहर लगना अभी बाकी है। उसके बाद ही कानून बनाया जा सकता है। इन सभी राज्यों में कानून का उल्लंघन करने पर सजा और जुर्माने की राशि अलग-अलग है। पंजाब में ऐसा कोई कानून नहीं है।