कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में मानवीय सरोकारों की बात

डा. महेन्द्र सिंह रंधावा द्वारा स्थापित की गई पंजाब कला परिषद की पंजाब साहित्य अकादमी प्रत्येक मास बंधनवार क्रम में नये लेखकों की रचनाओं पर विचार-विमर्श करवाती है। इस अवधि के बीच होने वाले अन्य कार्यक्रम भी शिक्षादायक एवं प्रभावी होते हैं। गत सप्ताह के दो दिवसीय कार्यक्रम में मनुष्य से पार के मानवतावादी संदर्भ पर खुल कर बहस हुई। इसमें परिषद के चेयरमैन सुरजीत पातर, पंजाब साहित्य अकादमी की अध्यक्ष सरबजीत कौर सोहल तथा सचिव रवेल सिंह के अतिरिक्त लगभग दो दर्जन चिन्तकों ने भाग लिया जिनमें केन्द्रीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की धारणा के मुख्य नुक्तों का विश्लेषण पेश करके श्रोताओं को हैरान कर दिया। उन्होंने बर्टरंड रसल तथा आर्नल टोइनबी के हवाले से गुरु ग्रंथ साहिब की मूल धारणा पर प्रकाश डालते हुए सिद्ध किया कि जब तक किरत करने, वंड छकने, नाम जपने तथा सरबत का भला के सिद्धांतों से दिशा लेते रहेंगे, मानव जाति को किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं। यदि अपने अस्तित्व के पचास हज़ार वर्षों तक मानुष्य का कुछ नहीं बिगड़ा तो भविष्य में भी कोई खतरा नहीं। 
दो दर्जन वक्ताओं में से आधा दर्जन तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस) से चिन्तित थे, परन्तु अन्य ने इससे सावधान रह कर भविष्य के सृजन का मार्ग दिखाया। कम्प्यूटरों में सोचने, विश्लेषण करने तथा कमाल के फैसले लेने की समर्था लगातार नये आयाम स्थापित कर रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2062 तक कम्प्यूटर लगभग मानवीय दिमाग की भांति योग्यता प्राप्त कर लेगा और समूचे विश्व के कारोबार, राजनीति, युद्ध, दैनिक जीनव कार्य तथा हो सकता है कि मौत को भी नियंत्रित करने में सफल हो जाए। कम्प्यूटर के सीखने, सोचने, समझने, फैसला लेने तथा तेज़ रफ्तार से समस्याओं के समाधान ढूंढने से मनुष्य की योग्यता, शक्ति, मानसिक गतिविधियों की कारगुज़ारी बहुत पीछे रह जाएगी। मनुष्य की याददाशत सीमित हो सकती है, परन्तु मशीन न भूलती है न गलती करती है और उसकी याददाशत को बदामों की ज़रूरत नहीं होती। जो ज्ञान इंटरनैट माध्यम से मुफ्त मिल रहा है, उसकी पृष्ठभूमि में भी राजनीति, कार्पोरेट के छिपे मंसूबे तथा सत्ता प्राप्ति की इच्छा अप्रत्यक्ष रूप में दृष्टिगोचर होती है। 
एलन मस्क तो यह भी मानता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे सपनों, सोच तथा विचारों में तेज़ी से परिवर्तन लाने के समर्थ है। इसलिए चह एटमी हथियारों से भी अधिक घातक हो सकती है। राजनीतिज्ञ तथा कार्पोरेट नियमों को अपने अनुकूल बनाने के साथ-साथ पावर कंट्रोल सैंटर पर कब्ज़ा करने से गुरेज नहीं करेंगे और कब्ज़ा कर भी रहे हैं। उसका विचार है कि जिस मोबाइल फोन को हम सांसों की भांति साथ रखते हैं, वह हर पल हमारी भाषा, सोच, विचार, कार्यशीलता, पसंद-नापसंद, लोकेशन कार्यों, ख्वाहिशों आदि पर निगरानी रखता है। हम प्रत्येक पक्ष से बेपर्दा हैं। यदि आज नहीं तो कल हो जाएंगे। 
इस तरह के माहौल में यह दलील भी पेश हुई है कि मानवतावादी स्थितियों को समझे बिना उत्तर मावनतावादी स्थितियों को नहीं समझा जा सकता। किरत के संकल्प के दोहरे अर्थों पर प्रकाश डाल कर यह भी दर्शाया गया कि एक ओर तो किरत का अर्थ रोटी है, परन्तु दूसरी ओर इसका प्रतिकात्मक अर्थ भी है। यदि नीतशे के महामानव में से हिटलर पैदा होता है तो गुरबाणी के महामानव में से श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की यह धारणा भी सामने आई कि पोस्ट ह्यूमनिज़्म की असल परख किरत तथा किरती के प्रसंग में ही होनी चाहिए। किरत ने बाहरी रूप तो बदला परन्तु इसका भीतरी स्वरूप नहीं बदला। भीतरी स्तर पर आज भी किरती पर अत्याचार जारी हैं और उनका लगातार शोषण हो रहा है। एक परिणाम यह भी निकाला गया कि हमें वर्तमान दौर की चुनौतियों का समाधान अपनी स्थानीय स्थितियों को समझ कर करना पड़ेगी। वर्तमान कार्पोरेटों तथा बाज़ार की नीतियों को समझना पड़ेगा और उसके प्रसंग में ही उत्तर मानवतावाद की परिभाषित किया जा सकता है। इस संदर्भ में डा. जयंती दत्ता ने जगदीश चन्द्र बोस, रामायण तथा जातक कथाओं जैसी पुस्तकों के माध्यम से उत्तर मानवतावाद के मुद्दे को परिभाषित करते हुए बल दिया कि जिस प्रकार का मनुष्य का पेड़ों तथा पशु-पक्षियों के साथ सह-अस्तित्व का रिश्ता इन पुस्तकों में सामने आता है, पोस्ट ह्यूमनिज़्म में इस प्रकार का रिश्ता बनाना ज़रूरी है। मनुष्य द्वारा ब्रह्माड की प्रत्येक नस्ल के साथ एक सुखद रिश्ते में बंध कर ही उत्तर मानववाद के सवाल से निपटा जा सकता है।
यदि पोस्ट ह्यूमनिज़्म के दौर में मनुष्य, पशु-पक्षी एवं मशीन में सुमेल की बात हो रही है तो यह भी मनुष्य के माध्यम से ही की जा रही है। इसलिए मनुष्य को किसी भी दौर में सभ्यता के केन्द्र से खारिज नहीं किया जा सकता। मशीनी बुद्धिमत्ता के दौर में बांट कर छकने के संकल्प पर चर्चा हुई तो गुरबाणी के मिट्ठत, नम्रता, संगीत तथा बौधिकता के एहसास के मुकाबले पर मशीनी बुद्धिमत्ता की योग्यता बारे भी किन्तु-परन्तु किया गया। श्री गुरु नानक देव जी द्वारा दर्शायी सच की उत्तमता का गुणगान तो समूची बहस की कुंजी थी। गुरु ग्रंथ साहिब में दर्शाये धर्म एवं न्याय के संकल्प सहित। 
उत्तर मानवतावाद के इस दौर में यह सिद्धांत प्रत्येक मनुष्य के अस्तित्व का सम्मान करने की प्रेरणा देता है। जीवन के सजीव-निरजीव सभी रूपों के बीच की साझेदारी का प्रेरणास्रोत भी श्री गुरु गं्रथ साहिब ही है। श्री गुरु गं्रथ साहिब मनुष्य को मानववाद तथा उत्तर मानववाद के तहत सूझबूझ तथा जीवन-प्रक्रिया के लिए अमूल्य दिशा उपलब्ध की गई है। 
सारांश यह है कि हमें मनीशी बुद्धिमत्ता के खतरे बताने वालों के भी उतने ही धन्यवादी होने की ज़रूरत है, जितनी मानवीय बुद्धि की शक्ति बताने वालों की। इस प्रकार के सैमीनार होते रहने चाहिएं। 
अंतिका
(मिज़र्ा ़गलिब)
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना।