मिशन-2024 : बढ़ती जा रही है मतदान न करने वालों की संख्या

पिछले चुनाव में 30 करोड़ मतदाता वोट देने से वंचित रह गये थे, इस बार इनके 50 के पार होने की आशंका है। चुनाव आयोग का नारा है, हर एक वोट ज़रूरी है। उसकी पूरी कोशिश है कि प्रत्येक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करे। इसके लिए वह इतना दृढ संकल्प है कि 14 हज़ार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर जहां महज पांच मतदाता हैं वहां भी उसने पोलिंग बूथ बना, मतदान के समूचे इंतज़ाम किए हैं। वह प्रत्येक मतदाता तक पहुंचे और उसे लोकतंत्र के महापर्व में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करे, इसके लिए भारी संसाधन लगा रखे हैं फिर भी सरकार, विपक्ष और चुनाव आयोग के साथ-साथ राजनीतिक एवं चुनाव विश्लेषक घटते मतदान प्रतिशत को लेकर चिंतित हैं। पर किसी की नज़र इस तरफ नहीं है कि देश के करोडों मतदाता चाहकर भी अपने मताधिकार का प्रयोग करने में क्यों विफल हैं? ऐसे क्या इंतज़ाम किए जाएं कि वे भी चुनाव और मतदान प्रक्रिया में सहज सहभागी बनें और जो मतदान प्रतिशत 60 से 70 प्रतिशत है उसे 80 प्रतिशत से ऊपर पहुंचाया जाए। देश दुनिया के सामने कहा जा सके कि लोकतंत्र और उसकी चुनावी प्रक्रिया में हमारी जनता का भरोसा और भागीदारी सारे संसार में सबसे अधिक है।
इस बार देश के 96.8 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने वाले हैं लेकिन इसमें से 60 करोड़ से ज्यादा मतदाता अपने मतदान केन्द्र पहुंचकर मतदान कर सकें, मुश्किल है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह वह वर्ग है जिसका देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान और राय अहम है। बेशक तकरीबन एक अरब मतदाओं में से कम से कम 45 से 50 करोड़ मतदाताओं का अपने मताधिकार से वंचित रह जाना कोई छोटी-मोटी संख्या नहीं है। वो भी तब जब मताधिकार के इस्तेमाल हेतु मतदाताओं को प्रेरित करने के लिये कई योजनाएं चलाई जा रही हों, अभियान चल रहे हों। मतदाताओं को जागरूक करने की तमाम सामग्री, क्रिकेट खिलाड़ियों, फिल्मी सेलेब्रिटी द्वारा प्रचार, मैराथन दौड़, मेगा इवेंट, रोड शो, नेताओं का आह्वान और विभिन्न प्रेरक प्रोत्साहन, उनको बूथ तक ले जाने के इंतज़ाम जैसी कवायदें और कोशिशें हो रही है परंतु इस समस्या का ये हल कतई नहीं है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को इस समस्या का हल इससे परे तलाशना होगा। राजनीतिक दल जानते हैं कि मत प्रतिशत के एकमुश्त बढ़त की यही कुंजी है।
छत्तीसगढ़ में गांव, शहर छोड़कर देश से गये लोगों को वापस लौकर मतदान करने को प्रेरित करने के लिये एक-एक प्रदेशव्यापी अभियान ‘घर आजा संगी’ चलाया जा रहा है। इसमें प्रवासियों को वीडियो कॉल के जरिए अपने मतदान केंद्र पर आकर मतदान के लिये कहा जा रहा है। अभियान का असर हुआ और चांपा जांजगीर के बहुत से, मुंगेली गांव के सभी प्रवासी मतदाता वापस आए हैं। ऐसा ही अभियान उत्तर प्रदेश के देवरिया, हरियाणा तथा उत्तराखंड के कई हिस्सों में चल रहा है। पर सबको मुंगेली जैसा सुखद परिणाम नहीं मिल रहा। खरगोन के झिरन्या के 20 हजार श्रमिकों के पलायन को देखते हुए प्रशासन को चिंता है मतदान घटेगा। आजीविक हेतु पलायन देश में बहुत बड़ा मुद्दा है। कुछ राज्य इसके लिये कुख्यात हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडीशा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ जैसे और भी कई राज्यों के प्रवासी मतदाता सुदूर शहरों में रहते हैं। बिहार के 45 लाख 78 हजार मज़दूर राज्य से बाहर हैं। यानी हर लोकसभा क्षेत्र से तकरीबन सवा लाख मतदाता अपने क्षेत्र में नहीं हैं। झारखंड के दस लाख मजदूर दूसरे राज्यों में हैं तो दसियों लाख कामकाजी और श्रमिक बंगाल से बाहर हैं।
पिछले कुछ सालों में भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था धीमी हुई है, जिस कारण आने वाले सालों में आंतरिक प्रवासन और बढ़ने की आशंका है। आज भी 60 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। कुछ जगहों से तो हर साल लाखों की संख्या में पलायन हो रहा है। इनमें से अधिकतर 25 वर्ष से 40 साल के लोग हैं जो काम की तलाश में शहरों की ओर जा रहे हैं। जाहिर है ये सभी मतदान योग्य या मतदाता है। इनके वोट अपने गांव कस्बे, छोटे शहरों में दर्ज हैं लेकिन ये राह खर्च, अस्थाई, दिहाड़ी वाली नौकरी, अवकाश और तमाम मजबूरियों के चलते मतदान स्थल पर नहीं जा सकते। कोरोना काल में शहरों से 10 करोड़ से अधिक प्रवासी मज़दूरों का पलायन सबको याद है। उसमें भी बहुत से मतदाता इधर से उधर हो गये। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 के आम चुनावों में इस वर्ग के 30 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मज़दूर ने मतदान नहीं किया था। देश के आंतरिक प्रवासियों की आधिकारिक गणना हुए दस बरस से ज्यादा बीत चुके हैं इसलिए भारत में कितने लोग अपने शहरों, गांवों, राज्यों से बाहर जाकर काम करते हैं इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। 
ऐसे में यह माना जा सकता है कि साठ करोड़ से अधिक प्रवासी मतदाताओं में से अधिकांश मतदान प्रक्रिया में चाहते हुए भी शामिल नहीं हो पाते। देश की अर्थव्यवस्था में प्रवासी मज़दूरों का बहुत अहम योगदान है। श्रमिकों से इतर बहुत से प्रवासी देश की सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन इसके बावजूद ये किसी भी पार्टी के पक्के वोट बैंक नहीं माने जाते। ‘ एक देश एक चुनाव के विचार के साथ यह भी विचारा जाना चाहिये कि देश में कोई मतदाता कहीं भी हो वह वहीं से अपने मताधिकार का सुरक्षित प्रयोग कर सके। संचार क्रांति और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकि के युग में यह नितांत संभव है आवश्यकता बस इच्छाशक्ति की है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर