चुनावों के दौरान सुरक्षा बलों को सावधान रहने की ज़रूरत

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि राष्ट्रीय चुनाव के बीच एक के बाद एक धमकियां मिलें और स्कूल, अस्पताल से लेकर हवाई अड्डों तक को निशाना बनाने का दावा किया जाए। 12 मई को ईमेल के जरिए धमकियां मिलीं कि दिल्ली के 20 अस्पतालों और देश के 12 हवाई अड्डों को बम से उड़ा दिया जाएगा। इससे 10 दिन पहले दो मई को दिल्ली के एक सौ से ज़्यादा स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली थी, जिसके बाद पूरी राजधानी में अफरातफरी मच गई थी। हालांकि 12 मई की धमकी भी दो मई की तरह फर्जी निकली है। लेकिन सवाल है कि लोकसभा चुनाव के बीच इस तरह की अफवाहों या फर्जी धमकियों का क्या मतलब है? पुलिस एक पैटर्न की बात कर रही है और कह रही है कि दिल्ली और गुजरात के संस्थानों को निशाना बनाने की बात हो रही है तो इस पहलू से भी जांच होनी चाहिए। गौरतलब है कि पहली धमकी को जितनी गम्भीरता से लिया गया था, दूसरी धमकी को उतनी गम्भीरता से नहीं लिया गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोई आतंकवादी संगठन पहले इस तरह की फर्जी धमकियां देकर सुरक्षा बलों को थकाना या लापरवाह करना चाहता है? इसलिए जांच एजेंसियों को इन्हें गम्भीरता से लेना चाहिए। अगर कोई आतंकवादी संगठन इनके पीछे है तो उसका पता चलना चाहिए और अगर किसी दूसरे मकसद से, जैसे चुनाव प्रभावित करने के लिए इस तरह का काम किया जा रहा है तो उसकी भी जांच करके सचाई सामने लानी चाहिए।
अडाणी-अंबानी पर फंसे मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौथे चरण के मतदान से पहले अंबानी और अडाणी का नाम लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया था लेकिन उनका दांव उलटा पड़ गया। यही वजह है कि उसके बाद उन्होंने दोनों उद्योगपतियों का नाम नहीं लिया। यह माना जा रहा है कि अंबानी-अडाणी का ज़िक्र करना और यह कहना कि कांग्रेस को उनसे बोरे में या टेम्पो में भर कर काला धन मिल रहा है, एक रणनीतिक गलती थी। दरअसल प्रधानमंत्री को भरोसा था कि जैसे वह जब चाहते हैं, तब राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को बदल देते हैं और मीडिया की मदद से अपना नैरेटिव सैट कर देते हैं, वैसे ही इस मामले में भी कर लेंगे, लेकिन यह दांव उलटा पड़ गया। उल्टे देश के चुनिंदा कारोबारियों की सरकार द्वारा मदद और उनके पास काला धन जमा होने की राहुल गांधी की बात इससे सही साबित हो गई। प्रधानमंत्री के बयान से कांग्रेस को तो मौका मिला ही, दूसरी ओर कारोबारी घरानों में भी प्रधानमंत्री को लेकर को लेकर यह संदेश गया कि राजनीतिक फायदे के लिए वह किसी को भी दांव पर लगा सकते हैं। इस मामले में गलती का अहसास होने के बाद भाजपा बैकफुट पर है। प्रधानमंत्री तो कुछ नहीं बोल रहे हैं, उनकी पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओं ने भी इस पर चुप्पी साध रखी है। दूसरी ओर कांग्रेस अंबानी-अडाणी के मामले का अधिकतम लाभ लेने के प्रयास में लगी है। कांग्रेस ने इतना प्रचार किया है कि वह भाजपा के गले की हड्डी बन गया है।
 योगी की घेराबंदी
उत्तर प्रदेश में भाजपा के एक खेमे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घेराबंदी शुरू कर दी है। उन पर परोक्ष रूप से आरोप लगाया जा रहा है कि उनका प्रशासन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की मदद कर रहा है। यह संकेत मिला है प्रदेश भाजपा के एक ट्वीट से, जो उसने 13 मई को चौथे चरण के मतदान के दिन दोपहर करीब दो बजे किया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भाजपा के आधिकारिक हैंडल से किए गए इस ट्वीट में कहा गया, ‘सपाई गुंडों के सामने पुलिस प्रशासन नतमस्तक।’ इस ट्वीट में कन्नौज लोकसभा क्षेत्र को लेकर शिकायत करते हुए लिखा गया, ‘विधूना विधानसभा के बूथों पर सपाई गुंडों के साथ मिल कर पीठासीन अधिकारी और पुलिस के लोग बूथ पर कब्जा कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग उचित कार्रवाई करे।’
 गौरतलब है कि कन्नौज सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़ रहे हैं। अगर इस सीट को लेकर प्रदेश भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि पुलिस और प्रशासन सपा की मदद कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि भाजपा संगठन और सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि योगी आदित्यनाथ को अभी से निशाने पर लिया जा रहा है ताकि चुनाव नतीजे ठीक नहीं आने की स्थिति में उनके ऊपर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से यह चर्चा हवा में है कि चुनाव के बाद योगी को हटाया जा सकता है।
ममता से परेशान भाजपा
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक बार फिर बंगाली अस्मिता का कार्ड चल रही है, जिस पर उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था। गौरतलब है कि 2021 में ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को बाहरी बता कर बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठाया था। उन्होंने जय श्री राम के बरक्स काली पूजा का नैरेटिव भी बनाया था और बांग्ला भाषा का मुद्दा भी उठाया था। उनका वह दांव सफल रहा था। अब लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी इसी तरह का मुद्दा बना रही है। इस बार वह खान-पान के बहाने मोदी को चुनौती दे रही हैं।
 पिछले दिनों ममता बनर्जी ने कहा कि वह तो नरेंद्र मोदी के लिए खाना बनाने को तैयार हैं लेकिन क्या मोदी उनका बनाया खाना खाएंगे? दरअसल ममता यह संदेश देना चाहती हैं कि भाजपा अगर जीत जाती है तो वह बंगालियों के खान-पान की परम्परा को बदलने की कोशिश करेगी। गौरतलब है कि भाजपा और आरएसएस की ओर से वैष्णव विचार को लगातार प्रोत्साहित किया जाता है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के साथ समूचे पूर्वी भारत में मांसाहार का चलन है। पूजा पाठ में भी बलि से लेकर मांस, मछली के इस्तेमाल की परम्परा है। इन इलाकों में शक्ति की पूजा होती है। मछली बंगाली लोगों के भोजन और जीवन शैली का हिस्सा है। हालांकि भाजपा इसे चुनौती नहीं दे रही है, लेकिन ममता बनर्जी के बयान के बाद से प्रदेश भाजपा के नेता परेशान हैं और इसकी काट खोज रहे हैं।