चट्टान को तराश कर बनाया गया कैलाश मंदिर
मैं महाराष्ट्र में औरंगाबाद से लगभग 30 किमी की दूरी पर एलोरा गुफाओं में था। हालांकि एलोरा की गुफाओं में अनेक बौद्ध, जैन व हिन्दू स्मारक मौजूद हैं, जिन्हें मैं अनेक बार देख चुका हूं, लेकिन इस बार मेरी दिलचस्पी विशेषरूप से यहां स्थित कैलाश मंदिर को देखने में थी। ऐसा अकारण न था। कैलाश मंदिर दुनिया का एकमात्र शिव मंदिर है, जो केवल एक पत्थर से बना हुआ है। इस मंदिर में किसी भी प्रकार का सीमेंट, सरिया का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जोकि इस मंदिर को खास बनाता है। लेकिन कैलाश मंदिर की विशेषताएं सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं हैं।
गौरतलब है कि एलोरा की गुफाएं यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल हैं। इनका निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में हुआ था यानी यह 1200 साल पुरानी हैं। इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार इनके निर्माण में 18 वर्ष लगे। बहरहाल, पर्यटकों के बीच मशहूर कैलाश मंदिर की खासियत यह है कि इसे एक ही चट्टान को तराश करके बनाया गया है। यह कारीगरी का आश्चर्यजनक नमूना है कि 2,00,000 टन की चट्टान को तराश करके इस विशाल शिव मंदिर का निर्माण किया गया है, जोकि भारत की सबसे बड़ी वास्तुकला उपलब्धियों में से एक है। बिना सीमेंट व सरिया के प्रयोग के, इस विशाल मंदिर को बनाना हैरत में डालता है। ‘एनशंट एलियंस’ धारावाहिक में तो यह दावा किया गया है कि इसका निर्माण एलियंस के हाथों से हुआ है। यह दावा सच है या झूठ, कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन सदियों पहले 2,00,000 टन चट्टान का खनन केवल हाथ के औजारों से करके मंदिर का निर्माण करना अचंभित अवश्य करता है।
मेरा मानना है कि यह काम बिना श्रद्धा, भक्ति व दैविक मदद के मुमकिन न था। हैरत इस बात की भी है कि इस मंदिर का निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है, जबकि हम जब भी किसी इमारत का निर्माण करते हैं तो नीचे से ऊपर की ओर करते हैं। कैलाश मंदिर को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि यह हमारे देश की प्राचीन उत्कृष्ट वास्तुकला का प्रतीक ही नहीं है बल्कि हमारी आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। इस मंदिर में केवल शिव महिमा ही नहीं है बल्कि रामायण व महाभारत जैसे महाकाव्यों की कलाकृतियां भी उकेरी गईं हैं, जिससे इस मंदिर को देखने के बाद अलौकिक अनुभव का होना लाज़मी सा हो जाता है। मंदिर बासाल्ट चट्टान को तराश करके बनाया गया है, जोकि बहुत कठोर होती है? मंदिर का निर्माण मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम (757-783) ने कराया था।
कैलाश मंदिर भीतर से कोरा तो गया ही है, लेकिन बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को तराश करके इसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। यह 276 फीट लम्बा व 154 फीट चौड़ा है। अनुमान यह है कि इसका निर्माण करते हुए तकरीबन 40 हज़ार टन भार के पत्थरों को चट्टान से हटाया गया था। इसके निर्माण के लिए पहले खंड अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को भीतर बाहर से काट-काटकर 90 फीट ऊंचा मंदिर बनाया गया। मंदिर के भीतर व बाहर चारों ओर मूर्ति-अलंकरणों से भरा हुआ है। इस मंदिर के आंगन के तीन ओर कोठरियों की पांत थीं, जो एक पुल द्वारा मंदिर के ऊपरी खंड से जुड़ी हुई थीं। अब यह पुल गिर चुका है। सामने खुले मंडप में नंदी है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी व स्तंभ बने हुए हैं।
एक दिलचस्प बात यह है कि मध्य युग की एक मराठी पौराणिक कथा ‘कथा-कल्पतरु’ में बताया गया है कि इस मंदिर का निर्माण क्यों कराया गया। इस कथा के अनुसार स्थानीय राजा को एक गंभीर रोग हो गया था। उसकी रानी ने एलापुरा में भगवान घरिश्नेश्वर (शिव) से प्रार्थना की कि उनके पति को ठीक कर दिया जाये। रानी ने कसम खायी कि अगर उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई तो वह मंदिर का निर्माण करायेगी और जब तक मंदिर का शिखर नहीं देख लेगी, तब तक उपवास से रहेगी। राजा ठीक हो गया तो रानी ने उससे मंदिर तुरंत बनवाने के लिए कहा, लेकिन आर्किटेक्ट्स ने कहा कि शिखर सहित मंदिर के निर्माण में महीनों लगेंगे। कोकासा नामक आर्किटेक्ट ने राजा को यकीन दिलाया कि रानी सप्ताहभर में मंदिर का शिखर देख सकेंगी। उसने चट्टान को तराश करके मंदिर को ऊपर से नीचे की ओर बनाना शुरू कर दिया। उसने एक सप्ताह में शिखर तैयार कर दिया और रानी को उपवास रखने से मुक्ति मिल गई। रानी के नाम पर मंदिर को मनिकेश्वर नाम दिया गया।
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