विकराल होती कूड़े की समस्या

देश की राजधानी दिल्ली में कूड़े-कचरे के ऊंचे होते पहाड़ों और इनके कारण पर्यावरण के प्रदूषित होने की समस्या को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी बेशक बहुत महत्त्वपूर्ण है, किन्तु यह समस्या केवल राजधानी क्षेत्र की नहीं है, अपितु पूरा राष्ट्र कूड़े-कचरे से उत्पन्न होते पर्यावरणीय खतरे और वायु-प्रदूषण की समस्या से प्रभावित हो रहा है। अत: इसे एक राष्ट्रीय समस्या मान कर, पूरे देश में कूड़ा-निस्तारण हेतु कोई व्यापक योजना बनाई जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस समस्या को अति गम्भीर करार देते हुए इसका निवारण एवं निस्तारण न किये जाने पर, समुचित अवधि में अदालत की ओर से कठोर फैसला लिये जाने की भी चेतावनी दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने जन-साधारण को प्रदूषण-युक्त वातावरण में जीने को विवश करने जैसी स्थिति को मनुष्य के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। अदालत द्वारा इस स्थिति के भयावहता की हद तक पहुंच जाने की चेतावनी भी दिल्ली की सरकार और प्रशासन के लिए भारी चिन्ता उपजने वाला मुद्दा समझा जाना चाहिए। सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत की गई इस संबंधी एक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन 3800 टन से अधिक अशोधित कूड़ा-कचरा जमा हो रहा है। यदि यह क्रम इसी प्रकार जारी रहता है तो नि:संदेह देश और दिल्ली की सरकारें विदेशों से आने वाले मेहमानों को कैसे अपना साफ-स्वच्छ चेहरा दिखा पाने के योग्य हो सकेंगी। अदालत द्वारा दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों के दृष्टिगत, ठोस मलबा-कचरे में और वृद्धि न होने देने के लिए कहना भी बड़े गम्भीर अर्थ रखता है। तथापि, अदालत द्वारा इस हेतु शहरी विकास सचिव को अन्य सम्बद्ध विभागों के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करके कोई समुचित निदान तलाश करने हेतु कहना नि:संदेह आस की कोई एक किरण जगाते प्रतीत होता है।
हम समझते हैं कि बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी विशेष रूप से राजधानी दिल्ली क्षेत्र के लिए की है, किन्तु ऐसी स्थिति कमोबेश पूरे देश में मौजूद है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत दुनिया के नक्शे पर इस मामले में बेहद फाडी अर्थात पिछड़ा हुआ है। तथापि देश के भीतर अन्य राज्यों में भी कूड़े-कचरे की सम्भाल हेतु स्थिति कोई अधिक बेहतर नहीं है। पंजाब भी इस मामले में काफी निचले स्थान पर है। पंजाब के कई ज़िलों में कूड़े-कचरे की सम्भाल न हो पाने का मुद्दा अक्सर चर्चा में बना रहता है। पंजाब के जालन्धर, अमृतसर और लुधियाना जैसे महानगर कूड़े-कचरे और वायु-प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह से प्रभावित हैं। कूड़े के ढेर निरन्तर ऊंचे होते जा रहे हैं किन्तु इनके निस्तारण हेतु कोई उपाय अथवा योजनाबंदी प्रदेश सरकार द्वारा नहीं की जा रही। लिहाज़ा कूड़े के ये ढेर शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय आबादियों तक पसरते जा रहे हैं। देश में कूड़ा-समस्या के गम्भीर होते जाने के अनेकानेक कारण हो सकते हैं, किन्तु विकास कार्यों में निरन्तर  बढ़ती तेज़ी के कारण ये ढेर पहाड़ों जैसा रूप धारण करते जा रहे हैं। पर्यावरण संबंधी एक स्विस रिपोर्ट के अनुसार देश की आबादी में अनियोजित वृद्धि भी कूड़े की समस्या के गम्भीर होते जाने का एक बड़ा कारण है। आज़ादी के बाद की पौन सदी में आबादी वाली समस्या की ओर किसी भी सरकार ने कभी किसी ठोस योजनाबंदी का निर्धारण किया हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता।
आज स्थिति यह है कि देश की 140 करोड़ से अधिक की आबादी अत्यधिक प्रदूषण-युक्त वातावरण और विषाक्त होते पर्यावरण में सांस लेने हेतु विवश है। सम्भवत: यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को स्वत:-निरीक्षण के बाद इस प्रकार की कटु टिप्पणी करने पर विवश होना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भी भारत वायु-प्रदूषण के धरातल पर सर्वाधिक पिछड़े देशों में भी तीसरे स्थान पर आता है। राजधानी दिल्ली के विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार होना भी देश की सरकारों के लिए बड़ी लज्जाजनक स्थिति जैसा है। हम समझते हैं कि दु:स्वप्न जैसी इन स्थितियों से उभरने के लिए जहां कूड़े और मलबे के बीच अन्तर पैदा करके इनके अलग-अलग निस्तारण की कोई बड़ी योजनाबंदी किये जाने की प्रबल आवश्यकता है, वहीं कोयले आदि के इस्तेमाल पर अंकुश लगाना भी ज़रूरी होना चाहिए। विकास के धरातल पर निर्माण कार्य ज़रूरी होते हैं, किन्तु उतना ही ज़रूरी इस के मलबे का प्रबन्धन भी होना चाहिए। इस धरातल पर विश्व के बड़े और स्वच्छ माने जाते देशों द्वारा अपनाई गई तकनीकों को परखना भी इस धरातल पर तर्क-संगत हो सकता है। कूड़ा प्रबन्धन हेतु आवश्यक मशीनरी और अन्य उपकरणों की बेहद अनुपलब्धि भी इस समस्या को गम्भीर बनाने हेतु काफी है। हम समझते हैं कि इस अत्यधिक गम्भीर होती समस्या के निस्तारण हेतु जितनी शीघ्र प्रभावी उपाय किये जाएंगे, उतना ही इस देश और यहां के लोगों के हित में होगा।