अमरीका को किनारे कर निडरता से समझौते करता भारत   

ईरान से चाबहार बंदरगाह समझौता कर भारत ने विश्व पटल पर एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि भारत एक स्वयंभू राष्ट्र है और वह अपने राष्ट्र हितों को आगे रख कर किसी भी राष्ट्र से किसी भी प्रकार के किसी भी समझौते को करने के लिए एक स्वतंत्र संप्रभुता सम्पन्न शक्ति रखता है। पाक अधिकृत कश्मीर पर पाकिस्तानी और लेह-लद्दाख के एक उत्तरी बड़े भाग पर चीन के अनधिकृत कब्जे के कारण ऐतिहासिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच काफी हद तक पाकिस्तान के माध्यम से पारगमन मार्गों पर निर्भर रही है। इसके लिए चाबहार बंदरगाह एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है जो पाकिस्तान को किनारे कर भारत के हितों की प्रतिपूर्ति करता है, जिससे अफगानिस्तान और उससे आगे व्यापार के लिए अपने पड़ोसी राष्ट्र पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए यह प्रतिपूर्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा चाबहार बंदरगाह भारत की ईरान तक पहुंच को बढ़ावा देगा, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का प्रमुख प्रवेश द्वार है, जिसमें भारत, ईरान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच समुद्री, रेल और सड़क मार्ग सम्मिलित हैं।
वस्तुत: चाबहार ईरान की एकमात्र समुद्री बंदरगाह है। यह सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में मकरान तट पर स्थित है। चाबहार में दो मुख्य बंदरगाह हैं, शहीद कलंतरी बंदरगाह और शहीद बेहेश्टी बंदरगाह। शहीद कलंतरी बंदरगाह का विकास 1980 के दशक में किया गया था।
ईरान ने भारत को शहीद बेहिश्ती बंदरगाह विकसित करने की परियोजना की पेशकश की थी। जिसे भारत ने आगे बढ़ कर स्वीकार किया था। दोनों देशों ने 2016 में भारत के लिए बंदरगाह के शहीद बेहेश्टी टर्मिनल को 10 वर्षों के लिए विकसित करने और संचालित करने के लिए एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। हालांकि समझौते के कुछ खंडों पर मतभेद सहित कई कारकों के कारण दीर्घकालिक समझौते को अंतिम रूप देने में देरी हुई है। भारत चाहता था कि किसी विवाद की मध्यस्थता किसी तटस्थ देश में हो, जबकि ईरान अपनी अदालतों या किसी मित्र देश को प्राथमिकता दे रहा था। अब इस मुद्दे को सहमति से हल कर लिया गया है। टैरिफ, सीमा शुल्क निकासी और सुरक्षा व्यवस्था जैसे अन्य मुद्दों पर भी सहमति हो चुकी है।
भारत के लिए चाबहार बंदरगाह का आर्थिक, सामरिक और मानवीय रूप से अत्यधिक महत्व है। आर्थिक लाभ के रूप में चाबहार बंदरगाह भारत को मध्य एशिया के संसाधन-सम्पन्न और आर्थिक रूप से जीवंत क्षेत्र के लिए प्रवेश द्वार प्रदान करती है। यह इन बाज़ारों में भारत के व्यापार और निवेश अवसरों को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकती है जिससे संभावित रूप से भारत में आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन हो सकता है। इसके अतिरिक्त चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश बिंदु के रूप में काम कर सकती है। साथ ही भारत क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान करते हुए अफगानिस्तान को बुनियादी ढांचे के विकास में सहायता और अन्य अनेक प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए इस बंदरगाह का उपयोग कर सकता है।
सामरिक प्रभावों के क्षेत्र में चाबहार बंदरगाह को विकसित और संचालित करके भारत हिन्द महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है जिससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति मज़बूत हो सकती है।
विगत सप्ताह भारत की ओर से रणनीतिक चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद अमरीका ने सोमवार को कहा कि भारतीय कम्पनियों ने ईरान में निवेश को लेकर अमरीकी प्रतिबंधों का खतरा मोल लिया है। अमरीकी विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने मीडिया से कहा कि जो कोई भी ईरान के साथ व्यापारिक समझौतों में शामिल होगा, उन्हें संभावित जोखिमों और प्रतिबंधों के बारे में पता होना चाहिए।
स्मरणीय है कि भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर 10 साल के लिए एक समझौते पर संधि-पत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं, लेकिन इस संधि से अमरीका बौखला गया है। अमरीका ने दुनियाभर के देशों को चेतावनी दी है कि कोई भी तेहरान के साथ सम्बन्ध स्थापित करे तो सोच-विचार ज़रूर करे, नहीं तो अंजाम भुगतने पड़ सकते हैं। अमरीका ने ईरान के साथ समझौता करने पर प्रतिबंधों की धमकी दी है। अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने चेतावनी भरा बयान जारी किया और कहा कि वह भारत सरकार को भी चेता रहे हैं और उन्हें अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों पर सफाई देने का मौका देंगे। बता दें कि भारत के इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन (पीएमओ) के बीच विगत सप्ताह सहमति के बाद सोमवार को चाबहार बंदरगाह को लेकर डील हुई और डील के नियमों पर सहमति के बाद हस्ताक्षर किए गए हैं। स्पष्ट है कि भारत ऐसे अमरीकी प्रतिबन्धों की धमकियों की परवाह नहीं करता है। अमरीकी सीनेट में इतनी हिम्मत ही नहीं किए वह भारत पर 2017 में अमरीकी संसद द्वारा पारित ‘कात्सा कानून’ को थोप सके। अमरीकी प्रतिबन्धों की धज्जियां भारत ने 1998 में परमाणु विस्फोटों और उसके बाद रूसी एस-400 डिफेंस सिस्टम खरीद कर पहले ही उड़ा रखी हैं। आज का भारत दुनिया के किसी भी देश के प्रतिबन्धों से नहीं डरता।
इस सम्बन्ध में अमरीकी धमकी के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों को कहा कि पश्चिमी देशों को लगता है कि उन्होंने 200 वर्षों तक दुनिया को प्रभावित किया है, मगर भारत उनके इस आदेश को मानने वाले रोल में फिट नहीं बैठता है। एस. जयशंकर ने कहा कि वे हमें प्रभावित करना चाहते हैं, क्योंकि इनमें से कई देशों को लगता है कि उन्होंने पिछले 70-80 वर्षों से इस दुनिया को प्रभावित किया है। विदेशमंत्री ने यह भी कहा कि जिन देशों को अपने चुनावों के नतीजे तय करने के लिए अदालत जाना पड़ता है, वे हमें ज्ञान दे रहे हैं।
जयशंकर इससे पहले भी पश्चिमी देशों और अमरीका सहित संयुक्तर राष्ट्र को भी आईना दिखा चुके हैं, जब भारत पर रूस की आलोचना करने का वैश्विक दबाव बनाया जा रहा था। तब जयशंकर ने यूरोप को समझाया था कि यूरोप को लगता है कि उसकी समस्या पूरे विश्व की है जबकि यूरोप के लिए यूरोप से बाहर वैश्विक समस्याएं कोई मायने नहीं रखतीं। ऐसे में हम अपने सम्बन्धों को यूरोप के हितों के लिये नहीं बदल सकते। (युवराज)