डिजिटल इंडिया अभियान ने लाये बड़े बदलाव

1990 के दशक में ई-गवर्नेंस परियोजनाओं की शुरुआत के बावजूद भारत लंबे समय तक ‘डिजिटल विभाजन’ से जूझता रहा। तकनीक तक सीमित पहुंच ने आर्थिक असमानता को बढ़ाया और विकास को प्रभावित किया। हालांकि 1 जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए डिजिटल इंडिया अभियान से अभूतपूर्व बदलाव आया है। इस पहल का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना था। डिजिटल इंडिया पहल के 10 साल पूरे होने का जश्न मनाते हुए, भारत जो 2014 तक टेक्नोलॉजी में पिछड़ा माना जाता था, आज वहीं सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रोज़गार के अवसरों के विस्तार के माध्यम से सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करके दुनिया की डिजिटल राजधानी बन गया है। 
डिजिटल अर्थव्यवस्था का उदय
भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले दशक में उल्लेखनीय गति से डिजिटल हुई है, भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत अब अमरीका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है, जो यूके, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देशों को पीछे छोड़ चुका है। 2022-23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीय आय में योगदान 11.74 प्रतिशत था, जो 2024-25 तक 13.42 प्रतिशत और 2029-30 तक लगभग 20 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है— जो कृषि और विनिर्माण को भी पीछे छोड़ देगा। यह तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र समग्र अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है।
डिजिटल भुगतान क्रांति
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) - भारत की एक अनूठी डिजिटल भुगतान प्रणाली - आज यूएई, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्रांस और मॉरीशस सहित 7 देशों में सक्रिय है। फ्रांस में इसका प्रवेश यूरोप में पहला कदम है, जो दर्शाता है कि भारत की तकनीकी दक्षता और डिजिटल इनोवेशन ने सबसे उन्नत पश्चिमी देशों को भी पीछे छोड़ दिया है।
गेट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष, माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर और पूर्व सीईओ बिल गेट्स के शब्दों में, ‘आधार और यूपीआई जैसी भारत की डिजिटल इनोवेशन ने डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए ‘स्वर्ण मानक’ स्थापित किया है, जो अन्य देशों को दिखाता है कि अपने लोगों को बेहतर सेवाएं कैसे प्रदान की जाती हैं।’
ग्रामीण भारत से जुड़ाव 
डिजिटल इंडिया ने भारतनेट परियोजना के तहत 6.92 लाख किमी ऑप्टिकल फाइबर बिछाकर 2.18 लाख ग्राम पंचायतों तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीदिशा) के माध्यम से 4.78 करोड़ ग्रामीण नागरिक डिजिटल साक्षर बने हैं, जिससे उन्हें जानकारी, सेवाओं और अवसरों तक पहुंचने में मदद मिली है। डिजिटल तकनीक ने वित्तीय सेवाओं को दूरदराज के क्षेत्रों के लोगों को करीब ला दिया है, भारत में आधे से अधिक फिनटेक उपभोक्ता अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। एक तिहाई से अधिक डिजिटल भुगतान उपयोगकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। उद्यमशीलता की भावना भारत के दूरदराज क्षेत्रों में भी फल-फूल रही है। 45 प्रतिशत स्टार्टअप टियर 2 और 3 शहरों से आ रहे हैं, जिससे ग्रामीण भारत डिजिटल नवाचार और उद्यमिता का नया केंद्र बन रहा है।
समावेशी सार्वजनिक सेवाएं
ई-गवर्नेंस पहलों ने भारत में सार्वजनिक सेवाओं को नया रूप दिया है। 709 ज़िलों में 4671 ई-सेवाएं उपलब्ध हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कॉमन सर्विस सेंटर 400 डिजिटल सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। प्रामाणिक दस्तावेजों तक डिजिटल पहुंच प्रदान करने के लिए 2015 में शुरू की गई डिजी लॉकर के अब 51.6 करोड़ उपयोगकर्ता हैं। (भारत के लिए भाषा इंटऱफेस), जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत की भाषाई विविधता को जोड़ना है, 1600 से ज्यादा एआई मॉडल और 18 भाषा सेवाओं के साथ 35+ भाषाओं सहायता करता है। इसी तरह वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ओएनओएस) पहल 30 अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों की 13,000 से ज्यादा अकादमिक पत्रिकाओं तक पहुंच प्रदान करके भारत के रिसर्च परिदृश्य को बदल रही है।
सभी के लिए डिजिटल इकोसिस्टम
सार्वजनिक सेवाओं के अलावा सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में भी ई-गवर्नेंस पहल शुरू की है। 2022 में लॉन्च किए गए ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) ने 616 से अधिक शहरों में 7.64 लाख रजिस्टर्ड विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के साथ खरीदारों, विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं, विशेष रूप से एमएसएमई के लिए एक खुला, समावेशी इकोसिस्टम बनाकर भारत में डिजिटल कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाया है। इसके अलावा 2016 में लॉन्च किए गए सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) ने सरकारी विभागों के लिए खरीद को सुव्यवस्थित किया है और देश भर में 22.5 लाख से अधिक विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के साथ 1.6 लाख से अधिक सरकारी खरीदारों को जोड़ा है। 

प्रो. चांसलर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी 
संस्थापक. इंडियन माइनॉरिटी फेडरेशन 

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