मौत के खिलाफ हर मोर्चे पर खड़े डाक्टर सच्चे नायक

आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर विशेष

हर वर्ष एक जुलाई का दिन एक ऐसा पवित्र अवसर होता है, जब हम समाज के उन नायकों को नमन करते हैं, जिनकी उपस्थिति जीवन और मृत्यु के बीच की सबसे मज़बूत दीवार होती है। वे नायक जो न थकते हैं, न झुकते हैं और न ही हार मानते हैं। ये वे लोग हैं, जो केवल शरीर ही नहीं, टूटती आत्माओं और डर से कांपते मन को भी उपचार देते हैं। डॉक्टर जो हमारे समाज के सच्चे योद्धा हैं, जो सेवा की मूर्त रूप हैं और जो हर दिन मानवीय करुणा, विज्ञान व समर्पण का सबसे बेहतरीन समागम बन जाते हैं।
उन्हीं के सम्मान में मनाया जाता है 1 जुलाई को ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ जो हमारे उन जीवन रक्षकों को श्रद्धांजलि भी है, जिन्होंने न केवल बीमारियों से जूझते लोगों को स्वस्थ किया बल्कि खुद को खोकर भी समाज को संभाले रखा। इस वर्ष यह दिवस ‘मास्क के पीछे, देखभाल करने वालों की देखभाल’ विषय के अंतर्गत मनाया जा रहा है, जो एक अनकही सच्चाई को उजागर करता है कि डॉक्टर भी इंसान होते हैं। उन्हें भी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक सहारे की ज़रूरत होती है। वे केवल इलाज करने वाले नहीं, दर्द को अपने भीतर समेट लेने वाले संवेदनशील मानव हैं। उन्हें भी मुस्कुराने की ज़रूरत होती है, रोने का अधिकार होता है और सहारे की उम्मीद होती है।
डॉक्टरों की यही विशिष्टता उन्हें समाज के हर वर्ग, हर आयु और हर धर्म का संरक्षक बनाती है। जब कोई मरीज अस्पताल के दरवाजे पर आखिरी सांसों से जूझ रहा होता है, तब उसका परिवार जिस आंख से एक आस देखता है, वह डॉक्टर ही होता है। डॉक्टर केवल नब्ज नहीं पकड़ता, वह जीवन की गति को फिर से बहाल करता है। वह केवल शरीर की बीमारी का इलाज नहीं करता, वह परिवार की उम्मीदों का भार भी उठाता है। यह पेशा केवल दवा देने या ऑपरेशन करने का नहीं, यह पेशा सेवा, संवेदना और साहस का है। डॉक्टर का हर दिन किसी युद्ध से कम नहीं होता, हर केस एक नया मोर्चा, हर मरीज एक नई लड़ाई।
भारत में डॉक्टरों को ‘धरती का भगवान’ कहा गया है और यह केवल एक उपमा नहीं बल्कि एक सच्चाई है, जिसे हमने महामारी जैसे संकट के समय प्रत्यक्ष रूप से देखा है। कोरोना की विभीषिका जब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुकी थी, तब डॉक्टरों ने न केवल जीवन बचाया बल्कि मृत्यु के साये से टकराते हुए मानवता को पुनर्जीवित किया। जब चारों ओर ऑक्सीजन की किल्लत, दवा की कमी और अस्पतालों में बिस्तरों की मारामारी थी, तब डॉक्टर बिना किसी भय के दिन-रात ड्यूटी पर डटे रहे। उन्होंने न केवल इलाज किया बल्कि भय, अवसाद और असहायता से घिरे लोगों को सहारा दिया। कई डॉक्टरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, फिर भी उनका समर्पण कम नहीं हुआ। वे उस समय भी डटे रहे, जब अपने परिजन तक उन्हें गले नहीं लगा सकते थे। यही तो है सच्ची सेवा, जो अपने दुखों को परे रखकर दूसरों को जीवन देती है।
भारतीय चिकित्सा इतिहास में जब हम गौरवपूर्ण नामों की बात करते हैं, तब एक नाम सबसे ऊपर आता है ‘डा. बिधान चंद्र रॉय’। उनका जन्म और मृत्यु एक ही दिनए 1 जुलाई को हुआ। इसी दिन को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने न केवल चिकित्सकीय सेवा में असाधारण योगदान दिया बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया और बाद में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य को नया रूप देने का कार्य किया। उन्होंने चिकित्सा और सेवा को जीवन का सार बनाया। डा. रॉय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से मैडीकल की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद लंदन से एमआरसीपी तथा एफआरसीएस जैसी प्रतिष्ठित डिग्रियां प्राप्त की। यह वह दौर था, जब भारतीयों को रंगभेद और पूर्वग्रहों के कारण विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश तक नहीं मिलता था परंतु उनके आत्मबल और प्रतिभा ने वह दरवाजे खोल दिए, जो दूसरों के लिए बंद थे।
डा. रॉय ने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति लाई बल्कि सामाजिक और शहरी योजनाओं में भी नई सोच दी। दुर्गापुर, बिधाननगर, कल्याणी, हबरा जैसे शहर उनकी दूरदृष्टि का परिणाम हैं। उन्होंने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को जनसामान्य की पहुंच तक लाने का कार्य किया बल्कि इंडियन मैडीकल एसोसिएशन और मैडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जीवनभर गरीबों का मुफ्त इलाज किया और कभी अपनी सेवा को स्वार्थ से जोड़ा ही नहीं। 1961 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनकी सेवा भावना का प्रमाण है। आज भी लाखों डॉक्टर उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनके पदचिन्हों पर चलने की कोशिश करते हैं।
इस राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर हमें एक गहन आत्ममंथन करना चाहिए। क्या हम अपने डॉक्टरों को वह सम्मान, वह सुरक्षा और वह सहानुभूति दे पा रहे हैं, जिसके वे वास्तव में पात्र हैं क्या हम उन्हें केवल एक सेवा प्रदाता समझ कर अपने गुस्से, हताशा और असंतोष का साधन बना देते हैं या फिर उनके योगदान की कद्र करते हैं? चिकित्सक दिवस केवल डॉक्टरों को बधाई देने का नहीं बल्कि उन्हें सुनने, समझने और सम्मान देने का दिन है।

#मौत के खिलाफ हर मोर्चे पर खड़े डाक्टर सच्चे नायक